गौतम चौधरी
देश भर में चल रहे किसान आन्दोलन के बीच एकाएक पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस्तीफा दे कर पूरे देश को चौंका दिया। संभवतः अमरिंदर पर लंबे समय से इस्तीफे को लेकर दबाव डाला जा रहा था। इधर कुछ राजनीतिक विश्लेषक अमरिंदर को लेकर बेहद संजीदा हैं और अपनी राजनीतिक व्याख्या में इस बात को शामिल कर रहे हैं कि पंजाब के आसन्न विधानसभा चुनाव में कैप्टन की नाराजगी कांग्रेस के लिए भारी पड़ेगी। इस विषय में फिलहाल इतना कहा जा सकता है कि कैप्टन जैसे कद्दाबर और मझे हुए नेता की नाराजगी का प्रभाव तो कांग्रेस पर पड़ेगा लेकिन जितनी चर्चा हो रही है उसके बनिस्पत पंजाब के वर्तमान हालात में ऐसा दिख नहीं रहा है। उसके कई कारण है।
पहला कारण तो यह है कि अभी भी पंजाब में कांग्रेस की जड़े मजबूत है। दूसरी बात यह है कि पंजाब में केवल कैप्टन के कारण ही कांग्रेस की स्थिति मजबूत नहीं है। इस विषय को थोड़ा विस्तार से समझने की जरूरत है। पंजाब में सदा से राजनीतिक के तीन पक्ष रहे हैं और तीनों पक्षों में से सबसे मजबूत पक्ष कांग्रेस का रहा है। दूसरा पक्ष अकालियों का है लेकिन अकाली तभी मजबूत होते हैं, जब भाजपा का वोट उनके पक्ष में जाता है, यानी साफ तौर पर जब भाजपा का समर्थन अकालियों को मिलता है, तो अकाली सरकार बनाने की स्थिति में आ जाते हैं, अन्यथा उनकी स्थिति बहुमत वाली नहीं होती है।
एक नजर हमें दलों के वोट बैंकों पर भी डालना चाहिए। अकालियों के पास बड़े पैमाने पर जट सिखों का समर्थन होता है। जट सिखों का वोट पूरे पंजाब में 25 प्रतिशत के करीब है। अकालियों को थोड़ा वोट मजबी सिख यानी अनुसूचित जाति के सिखों का भी मिलता है लेकिन उसका प्रतिशत बेहद कम होता है। उसी प्रकार, जो पिछड़ी जाति के सिख हैं, उसका भी वोट अकालियों को कम ही मिल पाता है लेकिन भाजपा के साथ गठबंधन से हिन्दू वोट ध्रूविकृत हो जाता है और अकाली सरकार बनाने की स्थिति में आ जाते हैं।
दूसरी ओर कांग्रेस के पास पूरे पंजाब के सभी जाति एवं धार्मिक समूहों का वोट है। जट सिखों में भी कांग्रेस की अच्छी पकड़ है। इधर मजबी सिख, कांग्रेस के आधार वोटर माने जाते हैं। अकालियों से त्रस्त हिन्दू वोटर भी इन दिनों कांग्रेस के प्रति आकर्षित हुए हैं। भले ही अकाली शासन में भारतीय जनता पार्टी, सरकार का हिस्सा थी लेकिन आम पंजाबी हिन्दू अपने आप को बेहद कमजोर और असुरक्षित महसूस कर रहा था लेकिन का कांग्रेस शासन आते ही ऐसी बात नहीं रही।
अकाली शासन में हिन्दुओं के कई बड़े नेता मारे गए और पंजाब में आतंकवाद की स्थिति भी भयावह होती चली गयी। सबसे बड़ी बात यह है कि अकाली शासन में हिन्दू नेता के हत्यारों पर कार्रवाई की गति भी धीमी थी। यही नहीं आतंकवाद पर शिकंजा भी कमजोर था लेकिन कांग्रेस के शासन आते ही आतंकवाद के खिलाफ जबरदस्त अभियान देखा गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बड़े नेता ब्रिगेडियर गगनेजा के हत्यारे पकड़े गए और आरएसएस की शाखाओं पर सरकार ने सुरक्षा मुहैया कराई। कांग्रेस शासन काल में हिन्दू व्यापारियों को भी राहत महसूस होने लगी। इसलिए पंजाब के हिन्दू वोटर कांग्रेस के प्रति जबरदस्त सहानुभूति रखते हैं।
इधर पंजाब में किसान आंदोलन चल रहा है। किसान आन्दोलन में पंजाब के किसान ही नहीं पंजाब के मंडी व्यापारी भी शामिल हैं। बता दें कि पंजाब में किसान भले जट सिख हों लेकिन मंडी का व्यापार पूरी तरह हिन्दुओं के हाथ में है। मंडी में बैठे व्यापारियों को इस बात बड़ी चिंता है कि केन्द्र सरकार के द्वारा पारित तीन किसान विधेयकों से केवल किसान ही प्रभावित नहीं होंगे अपितु मंडी व्यापारियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसका भी असर पंजाब के आगामी विधानसभा चुनाव पड़ पड़ेगा।
कांग्रेस ने जिन्हें पंजाब में मुख्यमंत्री बनाया है, वे अनुसूचित जाति समाज से आते हैं। सरदार चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के पहले ऐसे अनुसूचित नेता हैं जो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच पाए हैं। इससे पहले जट सिख ही पंजाब के मुख्यमंत्री होते रहे हैं। पंजाब की राजनीति में इसका बड़ा असर देखने को मिल रहा है। पंजाब में लगभग 35 प्रतिशत वोटर अनुसूचित जाति के हैं। सरदार नवजोत सिंह सिद्धू का भी अपना जनाधार है। इसलिए कैप्टन की नाराजगी का असर पंजाब कांग्रेस पर सिमित पड़ेगा। यदि सिद्धू पार्टी छोड़ गए, जिसकी संभावना कम दिख रही है तो कांग्रेस के स्थान पर आम आदमी पार्टी की स्थिति बेहतर हो जाएगी। फिर पंजाब में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी और आतंकवाद की वापसी की संभावना भी बढ़ जाएगी।
इन तमाम तथ्यों के विश्लेषन से तो सही ज्ञात होता है कि फिलहाल पंजाब में कांग्रेस का पलड़ा भारी है। किसी नेता के चले जाने या फिर आ जाने से पंजाब कांग्रेस को कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। कांग्रेसी आलाकमान ने पंजाब में जो आॅपरेशन किया है उसका आसन्न चुनाव पर तो असर पड़ेगा ही साथ ही हरियाणा, हिमाचल और उत्तर प्रदेश के चुनाव पर भी इसका बड़ा प्रभाव पड़ने जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी को इस बात का अंदाजा नहीं है लेकिन पंजाब का कांग्रेसी ऑपरेशन गुजरात से लेकर जम्मू-कश्मीर तक असर डालेगा।