डाॅ. अरविंद मिश्रा
कोरोना महामारी के आरंभ से अब तक के दो वर्षों में ही इसके संबंध में जो विपुल अध्ययन, प्रेक्षण साहित्य हमारे सामने है, वह किसी भी रोग या महामारी के संदर्भ में अभूतपूर्व है और बहुत सी जानकारियां परस्पर विरोधी निष्कर्षों वाली भी हैं। यह भी सच है कि अभी तक भी इस महामारी और विषाणु के बारे में अन्तिम निश्चयात्मक रुप से कुछ भी नहीं कहा जा सका है। यह विषाणु अब तक के सबसे शातिर और छलिया किस्म के रोगाणु के रुप में मानव अस्मिता को ललकार रहा है।
इसके बारे में कुछ भी कहिये, तुरंत उसका प्रतिवाद भी आ जाता है। बहुत से आरंभिक आब्जर्वेशन गलत भी साबित होते लग रहे हैं जैसे यह वायरस विभिन्न सतहों पर न्यूनाधिक समय तक जीवित रह सकता है। अब यह दावा दैनन्दिन अनुभवों के आधार पर खारिज होता दिख रहा है। कम से कम सतहों पर ‘फोमाइट्स‘ के रुप में यह खतरनाक नहीं लगता। अखबार और सब्जी की थैलियों या दरवाजे की कुंडियों, लिफ्ट के स्विच से फैलने की संभावना कम लगती है मगर किसी संक्रमित के रुमाल से आपने नाक ढंक लिया तो? खुद सोचिये।
इसका टार्गेट फेफड़े हैं? जी नहीं, इसे गुर्दों, आहार नाल,आंख, मस्तिष्क यकृत आदि अंगांे को भी टार्गेट करते देखा गया है। अब तक तो यह साठ वर्ष के ऊपर के बड़े बूढ़ों तक को टार्गेट करने के लिए कुख्यात था मगर अब युवाओं को संक्रमित कर रहा है और वे सक्रिय स्प्रेडर बन रहे हैं। ज्यादातर लक्षण विहीन हैं मगर कई लक्षणयुक्त भी देखे जा रहे हैं और कुछ की जान भी जा रही है।
अभी तक इस महामारी का कोई गारंटी वाला शर्तिया उपचार नहीं है। बस लक्षणों का उपचार हो रहा है। विषाणुरोधी दवायें इस पर पूरी तरह कारगर नहीं है। बाबा रामदेव का कोरोनिल महज एक व्यापारिक उत्पाद हैं। उसका सेवन करिये या एक मुट्ठी नीम की पत्ती चबाइये, बात एक ही है। तो क्या जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी कमजोर है वह इस महामारी का आसान शिकार है? हां, कह सकते हैं मगर जानंे तो शर्तियां उनकी जा रही हैं जिनकी इम्यूनिटी बहुत स्ट्रांग या संवेदनशील है जिसे चिकित्सक इम्यूनिटी डिस्आर्डर कहते हैं और जिससे फेफड़े एक स्थिति, ‘साईटोकाइन स्टार्म‘ से चोक हो जाते हैं। वेंटिलेटर पर भी रोगी को बचाया नहीं जा पा रहा है।
यह महामारी सचमुच एक अबूझ पहेली सी है। ऐसे अनेक प्रश्न हैं जिनका कोई निश्चयात्मक उत्तर चिकित्सा जगत के पास नहीं है। देखिये इस महामारी से बचाव अल्पकालिक प्रयासों से युद्ध स्तर पर तैयार तमाम टीकों से पूरी तरह हो पायेगा, बड़ा संशय है। टीके भी खुद सौ फीसदी कारगर होने का दावा नहीं करते। सत्तर फीसदी तक इफेक्टिव होने का दावा है मतलब तीस फीसदी का गैप है। मतलब पूरी तरह ये संक्रमण रोक नहीं सकते। दुबारा संक्रमण हो सकता है। हो भी रहा है। मामले दिखने शुरु हुये हैं जैसा कि काफी पहले भी मैने यह आशंका व्यक्त की थी।
ऐस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड को लेकर रुधिर नलिकाओं, ब्रेन में ब्लड क्लाट के मामलों की रिपोर्ट है। यह एनाफाइलेक्सिस यानी तुरंत घातक रिएक्शन की संभावना भी लिये है हालांकि ये मामले लाखों में एक हैं। इसकी तुलना में कोवैक्सीन निरापद बतायी जाती है मगर क्या वह अपेक्षानुसार कारगर भी है? सीरम इन्स्टीच्यूट आफ इन्डिया पुणे के सीईओ अदार पूनावाला ने तो शुरु में इसे पानी का घोल बता दिया था हालांकि बाद में इस वक्तव्य के लिए उन्होंने माफी मांग ली थी। यह उन्होंने व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के चलते संभवतः कहा था। अब उनके संस्थान की कोविशील्ड की आपूर्ति लड़खड़ाती दिख रही है। डब्ल्यू एच ओ ने कोविशील्ड के पहले से उत्पादित खेपों की एक्सपायरी डेट बढ़ाने के अनुमोदन का प्रस्ताव ठुकरा दिया है। एक अलग विवाद जन्म ले चुका है।
क्या जिसे यह महामारी एक बार हो चुकी है, उसे दुबारा भी हो सकती है? मेरा तो आज तक का अध्ययन यही था कि चेचक आदि कई वायरस एक बार के संक्रमण से जीवन भर के लिये इम्यूनिटी का वरदान दे जाते हैं मगर इनफ्लुएंजा और अब यह सार्स सीवो2 का विषाणु अल्पकालिक इम्यूनिटी देने वाला ही पाया जा रहा है और इनके टीके भी अल्पकालिक इम्यूनिटी देने वाले देखे जा रहे हैं। मुख्य कारण है इनके जीनोम में तीव्र उत्परिवर्तन।
मतलब अल्प अवधि में वायरस का जीनोम आंशिक बदलाव के साथ नवीन गुण दोष ग्रहण कर लेता है और नये कोरोना वायरस में भी यही प्रक्रिया चल रही है। नये नये म्यूटेंट को लेकर जल्दी जल्दी नयी वैक्सीन तो नहीं बन सकती, इसलिये पुरानी एकदम कारगर कैसे हो सकती हैं। आशा यह की जा सकती है कि अपने त्वरित म्यूटेशनों के चलते यह विषाणु खुद अपनी मारकता खो बैठे मगर अभी तो यूके म्यूटेन्ट कोहराम मचाये हुये है जो पहले वाले से कई गुना अधिक संक्रामक और तीव्रता लिये हुये है।
ढ़ेर सारे सवाल, निश्चयात्मक उत्तर नदारद, इसलिये मै भी इस विषाणु की संहारक लीला देखकर चुप साधता गया हूं। बस एक बात समझ में आती है। मास्क मत छोड़िये जबतक यह शातिर वायरस सक्रिय है। वही बचाव का एक भरोसेमंद उपाय है। लोगों से मिलते जुलते वक्त दूरी बनाने का ख्याल रखिये। संपर्क से तत्काल खतरा नहीं है मगर देरतक घनिष्ठ संपर्क आपको संक्रमित कर सकता है। घनिष्ठ सम्पर्क मतलब बाडी टच – गले मिलना, हाथ मिलाना, कंधे पर हाथ रख कर आत्मीयता दर्शाना सब अभी वर्जिये।
(युवराज)