‘‘ये आकाशवाणी है, अब आप रामानुज प्रसाद सिंह से समाचार सुनिए’’ करीब तीन दशक तक रेडियो पर गुंजने वाली ये आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई।
रेडियो से बेइंतहा लगाव होने के कारण पत्रकारिता के छात्र के रुप में मैंने सबसे पहले इंटर्नशिप के लिए आकाशवाणी को चुना था। इंटर्नशिप का पहला दिन था, आकाशवाणी के न्यूज सर्विस डिविजन में दिग्गज समाचार वाचकों को कौतुहल भरी नजरों से देख रहा था।
पायजामा-कुर्ता पहने भव्य काया में सामने बैठे एक व्यक्ति ने मेरा नाम और परिचय पूछा। मैंने अपना घर बिहार का समस्तीपुर बताया। उन्होंने छूटते पूछा, ‘‘अरे अपने गांव का नाम बताओ।’’ मैंने अपने गांव का नाम बताया। फिर उन्होंने कहा, ‘‘मैं सिमरिया का रहनेवाला हूं, मेरी एक बुआ तुम्हारे गांव के पास में ही रहती हैं।’’
आवाज कुछ जानी पहचानी लग रही थी, फिर भी मैंने धीरे से उनसे पूछा, ‘‘सर आपका नाम क्या है?’’ उन्होंने कहा, ‘‘रामानुज प्रसाद सिंह।’’ मैंने कहा ‘‘सर, आपको तो बचपन से हम सुनते आ रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘आओ मेरे साथ।’’ फिर अपने साथ मुझे वो उस स्टूडियो में ले गए जहां से बड़े-बड़े दिग्गज समाचार पढ़ते थे। मुझे सहज बनाने के लिए उस कुर्सी पर बिठाया जिस कुर्सी पर बैठकर समाचार वाचक खबरों को पढ़ते थे। उन्होंने मुझे समाचार वाचन की कई बारीकियां समझाई।
कई दिनों बाद न्यूज रुम में ही जानकारी मिली कि वो महान साहित्यकार ‘रामधारी सिंह दिनकर’ के भतीजे हैं। बहुत सहज और सरल व्यक्तित्व के स्वामी थे रामानुज प्रसाद सिंह।
आकाशवाणी के मेरे पहले गुरु को अंतरात्मा से श्रद्धांजलि!
(मनोज मलयानिल के वाॅल से।)