गौतम चौधरी
दावत-ए-इस्लामी (डीईआई), एक पाकिस्तानी बरेलवी सुन्नी मुसलमानों का एक समूह है। इसी समूह के प्रभावित दो युवाओं ने अभी हाल ही में उदयपुर में एक हिन्दू दर्जी की हत्या कर दी। उक्त दर्जी पर कथित तौर पर आरोप लगाया गया कि उसने भाजपा की निष्कासित नेत्री नूपुर शर्मा वाले मामले में एक तथ्य को अपने सोशल मीडिया वाले पेज पर साझा किया था। हालांकि बाद में जब जांच हुई तो पता चला कि उस दर्जी को सोशल मीडिया से कोई लेना-देना नहीं था और उसके बेटे ने भावनावश ऐसा किया था। परंतु इस्लाम के चरमपंथ में विश्वास करने वाले दो युवकों ने दर्जी की कथित तौर पर बेरहमी से हत्या कर दी।
हत्या में शामिल व्यक्तियों और (डीईआइ) के बीच संबंध सामने आने के बाद भारत की जांच एजेंसिया सकते में है। जो नहीं जानते हैं उनके लिए उदयपुर मामले के आरोपी डीईआई के संस्थापक मौलाना इलियास अत्तर कादरी के नाम पर अपने नाम में अटारी शीर्षक का प्रयोग करते हैं। जिस मौलाना से प्रेरित होकर हत्यारों ने हत्या को अंजाम दिया वह हत्यारों की प्रेरणा के स्रोत पर कई सवाल खड़े करता है। पाकिस्तान में देवबंदी समूहों के बढ़ते प्रभाव के सामने बरेलवाद को मजबूत करने के प्रयास के रूप में 1981 में पाकिस्तान में मुहम्मद लयस अत्तर कादरी द्वारा डीईआई की स्थापना की गई थी। इस संगठन के बारे में थोड़ी जानकारी जरूरी है। ईशनिंदा के आरोप में पाकिस्तान के गवर्नर पंजाब, सलमान तासीर का अपने अंगरक्षक मुमताज कादरी द्वारा हत्या के बाद डीईआई का नाम चर्चा में आया था। इसके बाद डीईआई के साथ मुमताज कादरी के गहरे जुड़ार का खुलासा तब हुआ जब डीईआई की राजनीतिक साखा तहरीक-ए-लब्बैक (टीआईपी) ने कादरी को मुक्त करने के लिए पूरे पाकिस्तान में धरना और प्रदर्शन आयोजित करने लगा। उस समय तो उस आन्दोलन को दबा दिया गया लेकिन बाद में इमरान सरकार को तहरीक-ए-लब्बैक के सामने घुटने टेकने पड़े। कादरी को फांसी दिए जाने के बाद अन्याय के नारे से टीएलपी तेजी से बढ़ने लगा। टीएलपी के कट्टरपंथी उदाहरण ने सुनिश्चित किया कि बरेलवाद हिंसा का पर्याय है। यही नहीं यह भी साबित किया कि इस संगठन में सूफी घटक अब काफी कमजोर पर चूका हैं। इधर भारत में भी पाकिस्तान के तर्ज पर संगठन खड़ा करने की कोशिश हुई है। 1992 में डीईआई का भारतीय माॅड्यूल खड़ा किया गया। मुंबई में मोहम्मद शाकिर एएच नूरी ने सुन्नी बरेलवियों का एक संगठन खड़ा किया और उसका नाम दावत-ए-इस्लामी रखा। उदयपुर की घटना की भारत के लगभग सभी प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने निंदा की लेकिन नूरी के संगठन का आधिकारिक निंदा आना बाकी है। यह साबित करता है कि पाकिस्तान की तरह, भारत में भी कट्टर बरेलवियों का एक संगठन देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा उत्पन्न करने की फिराक में है।
उदयपुर की हत्या ने यह साबित कर दिया है कि वैचारिक रूप से प्रेरित और पथभ्रष्ट व्यक्ति अपने अहंकार को तुष्ट करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। यह तब्लीगी जमात (टीजे) नामक कट्टर मुसलमानों की टोली की तरह ही काम करता है। टीजे के बारे में कई बातें हम समझ चुके हैं लेकिन डीईआई के बारे में आम भारतीयों का ज्ञान अभी कम है। डीईआई भले बरेलवियों का संगठन हो लेकिन अब इस संगठन में सूफीवादी तत्व अब बेहद कमजोर हो चुके हैं। यह भी दुनिया के अन्य कट्टरपंथी मुसलमान संगठनों की तर्ज पर आम मुसलमानों को मिलिटराई कर रहा है।
भारत में टीजे यानी तब्लीगी जमात के कई कारनामें सामने आए हैं। वैसे तो टीजे अपने आप को आध्यात्मिक सुधारवादी आन्दोलन बताता है लेकिन सलमान तासीर की हत्या के बाद जिस प्रकार पाकिस्तान में डीईआई का कट्टरपंथी चेहरा उजागर हुआ उसी प्रकार 9/11 के हमलों के बाद टीजे का कट्टरपंथी चेहरा भारत में सामने आया। लस्कर-ए-झांगवी के साथ टीजे का जुड़ाव जगजाहिर है। भारत में टीजे और पाकिस्तान में डीईआई का जुड़ाव भी अब सामने आने लगा है। भारत में काम करने वाला कट्टर सुन्नी मुसलमानों का समूह लब्लीगी जमात अपनी अंतरराष्ट्रीय पहुंच और दुनिया के अन्य देशों में बड़ी संख्या में आनुयायियों के कारण डीईआई से आगे निकल चुका है। जिस प्रकार डीईआई ने अफगान-सोवियत युद्ध में भाग नहीं लिया, उसी प्रकार टीजे से जुड़े पाकिस्तानियों ने भी ऐसा ही किया था। टीजे के संबद्ध समूह जैसे-लश्कर-ए-झांगवी, सिपाह-ए-सहाबा और तालिबान को भी पाकिस्तान और कश्मीर में हिंसक गतिविधियों में शामिल होने के लिए जाना जाता है।
पाकिस्तानी सुन्नी तहरीक ने इन दिनों कई नारे गढ़े हैं। मसलन, ‘‘जवानियां लुटायेंगे मस्जिदन बचायेंगे’’, ‘‘तौहीन रसलत की एक ही साजा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा’’ आदि नारे तहरीक की जमात में बेहद फेमस हो रहा है। डीईआई के बढ़ते खतरे को पाकिस्तान ने सलमान तासीर की हत्या के बाद भी नजरअंदाज किया और अब संगठन इस हद तक बढ़ गया है कि इसके नेताओं पर इस्लामाबाद द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद इसके अनुयायियों ने इस्लामाबाद पर कब्जा करके पाकिस्तानी सरकार को प्रतिबंध वापस लेने के लिए मजबूर तक कर दिया। मतलब साफ है, अब पाकिस्तान की इस्लामिक सरकार भी इस तहरीक के सामने घुटने टेक चुकी है। भारत, यदि उसी गलती को दुहराता है और बरेलवी जानकर इस संगठन को छूट दी जाती है तो फिर भारत का भी वही हस्र होगा जो इन दिनों पाकिस्तान का हो रहा है। उदयपुर की घटना ने देश को रास्ता दिखाया है। भारत में डीईआई जैसा एक बेहद खतरनाक माॅड्यूल आकार ले रहा है। इसके प्रति सहानुभूति रखने वालों की पहचान की जानी चाहिए और युवाओं के कट्टरपंथ को रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही, वैचारिक रूप से प्रेरित संगठनों जैसे-टीजे, तहफ्फुज-ए-नमूस-ए-रिस्लाट आदि पर भी भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को नजर रखनी चाहिए, ताकि कट्टरता की किसी भी घटना को जड़ से खत्म किया जा सके।