पिछले 7 जनवरी से अमेरिका के कैलिफ़ॉर्निया राज्य स्थित लॉस एंजिल्स शहर के बाहरी हिस्सों में बसे जंगलों में आग लगी है। यह आग पिछले 5 दिनों में शहर और आसपास के क्षेत्रों में कहर बरपा रही है। लॉस एंजिल्स शहर के बाहर क़रीब छह अलग-अलग जगहों पर जंगल और इसके आस-पास सटे खलिहान और रिहायशी इलाक़े आग की चपेट में आ चुके हैं। इन छह स्थलों में विशेषकर पैलिसेड्स और इटॉन कैनयन में आग बेहद भयावह रूप ले चुकी है। अमेरिकी मीडिया रिपोर्टों की माने तो लॉस एंजिल्स के पश्चिम में स्थित पैलिसेड्स इलाक़े का क़रीब 22,000 एकड़ क्षेत्रफल आग की चपेट में आ चुका है। वहीं लॉस एंजिल्स से उत्तर-पूर्व में स्थित इटॉन कैनयन में आग क़रीब 14,000 एकड़ क्षेत्रफल तक फ़ैल चुकी है। इन इलाक़ों में आग लगने के कारण बड़ी संख्या में वन्य जीव मारे गए हैं, साथ ही वन्य क्षेत्रों का एक बड़ा हिस्सा झुलस चुका है। इस अगलगी की घटना में अब तक प्राप्त ख़बरों के मुताबिक 16 लोग मारे गये हैं और दर्ज़नों घायल हुए हैं। कई घर व खलिहान जलकर ख़ाक हो गये हैं।
अब जब विभिन्न स्थलों पर लगी आग, तेज़ी से लॉस एंजिल्स शहर की ओर बढ़ रही है, तब यह आशंका जतायी जा रही है कि हताहतों की संख्या अभी और बढ़ेगी। लॉस एंजिल्स के आस-पास के उप-नगरीय इलाक़ों (सब-अर्बन) तक यह आग पहुँच चुकी है। लोग अपने घरों को छोड़कर भागने को मजबूर हैं। बीते 10 जनवरी को लॉस एंजिल्स प्रशासन ने अलग अलग इलाकों से करीब 130000 लोगों को अपना घर छोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर जाने का आदेश दिया है।
परन्तु, आज यह प्रश्न उठता है कि आख़िर लॉस एंजिल्स के निकटवर्ती क्षेत्रों में लगी आग का कारण क्या है? अधिकतर वैज्ञानिक इसे महज़ एक आकस्मिक दुर्घटना न मानते हुए, इस बड़े पैमाने पर लगी आग (वाइल्ड फ़ायर) को जलवायु परिवर्तन से जोड़ कर देख रहे हैं। दरअसल, कैलिफ़ोर्निया जो वन्य सम्पदा की दृष्टि से अमेरिका के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक है, वह पिछले कुछ वर्षों से मौसमों के पैटर्नों में आये बदलाव से जूझ रहा है। कैलिफ़ॉर्निया का औसत तापमान पिछले चार दशकों में क़रीब एक डिग्री तक बढ़ा है। इसके साथ ही भारी बारिश वाले दिनों में भी वृद्धि हुई है। भारी बारिश के बाद वन्य क्षेत्रों में विभिन्न किस्म के पादपों व वनस्पति तेज़ी से उपजते है। लेकिन समस्या तब आती है, जब कई दिनों तक पड़ने वाली तेज़ गर्मी के कारण ऐसे वनस्पति सूख जाते हैं, और बाद में जंगल में लगने वाली आग के लिए ईंधन के रूप में काम करते हैं। जलवायु वैज्ञानिक इस परिघटना को श्हाइड्रोक्लाईमेटिक व्हिपलेशश् का नाम दे रहे हैं। इस परिघटना के वहाँ होने की सम्भावना अधिक होती है, जहाँ अत्यधिक बारिश के मौसम के बाद भीषण शुष्क गर्मी का मौसम आ जाता है। कैलिफ़ॉर्निया राज्य की जलवायु के मामले में ऐसा अक्सर ही हो रहा है। शुष्क गर्मी के दौरान सुखे वनस्पतियों में भड़की छोटी चिंगारी भयावह आग का रूप ले लेती है। चूंँकि, अभी भी दक्षिणी कैलिफ़ॉर्निया से प्रशांत महासागर की ओर बहने वाली शुष्क हवाओं (सांता आना विंड्स) की रफ़्तार कम नहीं हुई है, इसलिए आग का फ़ैलाव इतना विकराल हो रहा है।
एक दूसरा प्रश्न यह भी उठता है कि, जो संयुक्त राज्य अमेरिका विज्ञान व तकनीकी के मामले में दुनिया के उन्नत देशों की फ़ेहरिस्त में पहले नम्बर पर आता है, और जिसकी सामरिक शक्ति की बराबरी दुनिया में कोई देश नहीं कर सकता है, उस अमेरिका की सरकार 5 दिनों के बाद भी आग पर काबू क्यों नहीं पा सकी है! यह इस बात का ज्वलन्त उदाहरण है कि विज्ञान व तकनीकी का इस्तेमाल मानवीय ज़रूरत को पूरा करने व इंसानी ज़िन्दगी को बचाने के साधन के तौर पर नहीं किया जा रहा है। इसकी बजाय इसका प्रयोग चन्द लोगों के मुनाफ़े को बढ़ाने व सामरिक शक्ति को बढ़ाने के नाम पर विनाश के हथियार बनाने में किया जा रहा है। आज यही कारण है कि अमेरिका जैसे देश के पास भी इतने बड़े पैमाने पर लगी आग से निपटने के लिए उचित तकनीक का अभाव है।
लॉस एंजिल्स में लगी आग इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि अगर वक़्त रहते जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना करने के लिए पुख़्ता क़दम नहीं उठाये गये, तो इसके परिणाम विनाशकारी होंगे। मानवीय श्रम व प्राकृतिक संसाधनों की लूट पर टिकी इस पूँजीवादी व्यवस्था के पास मानवता के अस्तित्व पर आसन्न संकट से बचने का कोई समाधान नहीं है।
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