जयसिंह रावत
केन्द्र शासित लद्दाख के बाद अब उत्तराखंड सरकार ने भी भूतापीय ऊर्जा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुये सीमान्त चमोली जिले के तपोवन में राज्य का पहला भू-तापीय ऊर्जा पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर दिया है। इस परियोजना स्थल पर जमीन से फूटने वाला पानी का स्रोत 90 से 100 डिग्री सेल्सियस तक तापमान देता हैं। उम्मीद की जा रही है कि यह प्रोजेक्ट न केवल उत्तराखण्ड बल्कि देश के ऊर्जा उत्पादन स्वावलंबन और पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा क्योंकि हिमालयी राज्यों सहित देश के लगभग एक दर्जन राज्यों में तापीय ऊर्जा उत्पादन की संभावनाएं मानी जा रही है। उत्तराखंड राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट), आइआइटी रुड़की और एनजीआरआइ के सहयोग से इस परियोजना में वैज्ञानिक अध्ययन शुरू हो चुके हैं। यह न केवल विद्युत उत्पादन, बल्कि पर्यटन, जल उपचार, और कृषि के लिए नए द्वार खोलेगा।
भू-तापीय ऊर्जा, जो पृथ्वी की आंतरिक ऊष्मा से प्राप्त होती है, निरंतर उपलब्ध, पर्यावरण सहज, और कम कार्बन उत्सर्जन वाला स्रोत है। भारत में लद्दाख की पूगा घाटी में 2022 में ओएनजीसी के पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 2022 में शुरू हो चुका है। हिमाचल प्रदेश के मणिकरण में हालांकि अभी व्यावसायिक संयंत्र शुरू नहीं हुआ मगर गर्म पानी का उपयोग काफी पहले से हो रहा है। इनके अलावा छत्तीसगढ़ (तत्तापानी) और अन्य क्षेत्रों में इसकी संभावनाएँ मौजूद हैं। यह ऊर्जा सौर और पवन ऊर्जा से अलग, मौसम पर निर्भर नहीं, और जीवाश्म ईंधन की तुलना में स्थायी है। भारत की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए भूतापीय ऊर्जा एक छोटा किंतु महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है, बशर्ते नीतिगत सहायता और तकनीकी उन्नति हो।
राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारत सरकार ने देश के जिन पांच स्थलों को भूतापीय ऊर्जा विकास के लिए प्राथमिकता पर रखा है, उनमें हिमाचल प्रदेश का पग्घी, उत्तराखंड का तपोवन, लद्दाख के मानसरोवर और पामयांग क्षेत्र, छत्तीसगढ़ का तत्तापानी और गुजरात के कच्छ क्षेत्र में स्थित गरमपानी शामिल हैं। ये सभी क्षेत्र पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों की हलचलों से प्रभावित हैं और यहां की सतह के नीचे मौजूद मैग्मा के कारण प्राकृतिक गर्म जल स्रोत उपलब्ध हैं। इन स्थलों का चयन वैज्ञानिकों और ऊर्जा मंत्रालय के संयुक्त सर्वेक्षण के आधार पर किया गया है। भूगर्भ विशेषज्ञों के अनुसार भारत में भूतापीय ऊर्जा की कुल अनुमानित क्षमता 10,000 मेगावाट से अधिक है, जबकि वर्तमान में इस क्षेत्र में कोई व्यावसायिक उत्पादन नहीं हो रहा है।
एक अनुमान के अनुसार उत्तराखंड में कम से कम 60 से अधिक प्राकृतिक गर्म ज्ञात जल स्रोत हैं, जिनमें से कई में पानी का तापमान 70 से 100 डिग्री सेल्सियस के बीच है। इनमें से प्रमुख स्थल हैं तपोवन (नीती घाटी, चमोली), सूर्यकुंड और तप्तकुंड (बद्रीनाथ, चमोली), यमुनोत्री, नारदकुंड, गौचर, फूलचट्टी, हनुमानचट्टी, कुंड (टिहरी), और झूलाघाट (पिथौरागढ़)। इनमें तपोवन और बद्रीनाथ के निकट के जल स्रोत न केवल तीर्थ और स्नान के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से उच्च तापीय संभावनाओं वाले स्थल हैं। तपोवन में प्रस्तावित 2 मेगावाट क्षमता का पायलट प्लांट सफल हुआ तो उत्तराखण्ड सरकार इसे अन्य स्थलों पर 3 से 5 मेगावाट क्षमता तक विस्तारित करने की योजना है।
हिमाचल प्रदेश में कुल्लू और किन्नौर के पग्घी और मणिकर्ण क्षेत्र वर्षों से गर्म जलस्रोतों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। यहां तापमान भी 80 से 95 डिग्री के बीच दर्ज होता है और राज्य सरकार इस संसाधन के दोहन के प्रति संकल्पित है। लद्दाख का भूगर्भीय परिदृश्य भारत में सबसे सक्रिय क्षेत्रों में से एक है। वहां के मानसरोवर और पामयांग क्षेत्रों में चस्मों का तापमान 90 से 110 डिग्री सेल्सियस तक पाया गया है। लद्दाख प्रशासन ने सौर और जल विद्युत के साथ-साथ भूतापीय ऊर्जा को तीसरे स्तंभ के रूप में स्थापित करने की रणनीति बनाई है, जिससे वहां की कठोर जलवायु में निरंतर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।
उत्तराखंड में धामी सरकार की वर्तमान पहल इसलिए भी उल्लेखनीय है, क्योंकि यह राज्य पहले से ही जल विद्युत उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है, परंतु भूतापीय ऊर्जा इसका एक नया, नवाचार-आधारित अध्याय हो सकता है। यह ऊर्जा स्रोत जलवायु और मौसम पर निर्भर नहीं करता, इसलिए पर्वतीय क्षेत्रों में यह सौर और जल विद्युत की तुलना में अधिक निरंतर और विश्वसनीय हो सकता है। इसके अलावा यह पूरी तरह से हरित और शून्य कार्बन उत्सर्जन वाली ऊर्जा है, जो भारत के जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप है। भू-तापीय ऊर्जा का उपयोग न केवल बिजली उत्पादन के लिए सीमित है, बल्कि इसे ग्रीनहाउस खेती, औद्योगिक प्रसंस्करण, दूध उत्पादन इकाइयों, होटलिंग, बर्फबारी वाले क्षेत्रों में सड़क की बर्फ हटाने, और जल चिकित्सा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है। दुर्गम पहाड़ी इलाके जो स्थायी और भरोसेमंद बिजली से वंचित हैं, वहां यह ऊर्जा विकेन्द्रीकृत मिनी-ग्रिड सिस्टम के रूप में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।
दरअसल भारत सरकार द्वारा 2022 में प्रस्तावित नेशनल जियोथर्मल एनर्जी मिशन अभी तक लागू नहीं हो सका है परंतु उत्तराखण्ड जैसे राज्यों की पहल इस दिशा में केंद्र को भी जागरूक कर रही है। विशेषज्ञों की मानें तो यदि उचित नीति, निवेश और तकनीकी सहयोग दिया जाए, तो भारत अगले 10 वर्षों में कम से कम 1000 मेगावाट भूतापीय ऊर्जा उत्पादन प्रारंभ कर सकता है। इससे देश के कई दूरवर्ती और सीमावर्ती क्षेत्रों को स्थायी बिजली आपूर्ति मिल सकती है, जिन तक बड़े ग्रिड पहुंचाने में भारी लागत और समय लगता है। उत्तराखंड की धामी सरकार ने इस दिशा में यूकॉस्ट, आइआइटी रुड़की और एनजीआरआइ जैसे संस्थानों को जोड़कर एक वैज्ञानिक और व्यावहारिक मॉडल की आधारशिला रखी है। इसके साथ ही पर्यटन, जैविक खेती, और स्वास्थ्य क्षेत्र को भी इससे जोड़ा जा सकता है। यदि बद्रीनाथ, यमुनोत्री और तपोवन जैसे धार्मिक स्थलों पर भू-तापीय ऊर्जा आधारित स्नानगृह, वेलनेस सेंटर और ग्रीनहाउस प्रकल्प विकसित किए जाएं तो यह धार्मिक पर्यटन को आधुनिक, टिकाऊ और आय-सृजनकारी रूप दे सकता है।
हिमालयी क्षेत्रों की भूगर्भीय अस्थिरता, भूस्खलन, और तकनीकी अनुभव की कमी जैसी चुनौतियां भी हैं लेकिन ये समस्याएं वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अंतर्राष्ट्रीय अनुभव से हल की जा सकती हैं। आइसलैंड, केन्या और फिलीपींस जैसे देशों ने भू-तापीय ऊर्जा को अपने ऊर्जा मिश्रण में सफलतापूर्वक शामिल किया है। भारत के पास भी वही क्षमता है बशर्ते निवेश और योजना-निर्माण में निरंतरता बनी रहे। इस संदर्भ में धामी सरकार की यह पहल केवल एक राज्यीय परियोजना नहीं, बल्कि भारत की ऊर्जा क्रांति की संभावित दिशा है। यदि यह प्रयोग सफल होता है तो यह अन्य राज्यों को भी प्रेरित करेगा। पर्वतों की गोद से निकलती यह गर्मी अब केवल स्नान तक सीमित नहीं रहेगी,यह ऊर्जा में बदलेगी, गांवों को रोशन करेगी, और विकास की उस लौ को जलाएगी जो जलवायु परिवर्तन से लड़ने की ताकत रखती है।
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