तीन पश्चिमी देशों का एतिहासिक फैसला, ब्रिटेन-कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को दी मान्यता

तीन पश्चिमी देशों का एतिहासिक फैसला, ब्रिटेन-कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को दी मान्यता

नयी दिल्ली/ ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने रविवार को ऐलान किया कि ब्रिटेन ने फिलिस्तीन को एक आजाद देश के तौर पर औपचारिक मान्यता दे दी है। इसके साथ ही कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने भी फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश की मान्यता देने की घोषणा कर दी। इसे एतिहासिक बताया जा रहा है। इस घोषणा के बाद मध्य-पूवर में स्थाई शांति स्थापित होने की संभावना प्रवल हो गयी है।

ब्रिटेन का कहना है कि यह कदम इजराइल के अवैध कब्जे को खत्म करने और शांति लाने में मदद करेगा। इसके तहत एक नई फिलिस्तीनी सरकार, जिसमें हमास का कोई प्रभाव न हो, इजराइल के साथ मिलकर काम करेगी।

बता दें कि भारत-चीन सहित अब तक दुनिया के 140 से ज्यादा देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। स्टार्मर ने कहा है कि फिलिस्तीन को मान्यता देना किसी भी तरह से हमास की जीत नहीं है। उनका कहना है कि भविष्य में फिलिस्तीन के शासन में हमास की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।

स्टार्मर ने जुलाई में कहा था कि ब्रिटेन फिलिस्तीन को मान्यता तभी देगा, जब इजराइल और हमास के बीच सीजफायर हो, गाजा में मानवीय मदद पहुंचाई जाए, इजराइल पश्चिमी तट पर कब्जे से पीछे हटे और शांति प्रक्रिया के लिए तैयार हो।

यानी ऐसा समाधान हो जिसमें इजराइल और फिलिस्तीन दोनों अलग-अलग देशों के रूप में साथ रह सकें। लेकिन जुलाई के बाद हालात और बिगड़े हैं, खासकर कतर पर हमले के बाद। ऐसे में अब सीजफायर की संभावना और कम हो गई है।

ब्रिटिश पीएम यह फैसला ऐसे समय में ले रहे हैं, जब अमेरिका के कई राजनेता ब्रिटेन पर ऐसा न करने का दबाव डाल रहे हैं। उनका कहना है कि इससे न सिर्फ इजराइल की सुरक्षा पर असर पड़ेगा, बल्कि गाजा में हमास के कब्जे में बंधक बनाए गए लोगों के परिवारों की स्थिति भी और कठिन हो जाएगी।

पिछले हफ्ते ब्रिटेन की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी साफ कहा था कि फिलिस्तीन को मान्यता देने को लेकर उनकी राय ब्रिटेन से मेल नहीं खाती। दूसरी तरफ, इजराइल ने इस कदम की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि फिलिस्तीन को मान्यता देना असल में आतंकवाद को इनाम देने जैसा है।

ब्रिटेन और फ्रांस का यह फैसला इसलिए अहम है क्योंकि ये न सिर्फ ग्रुप7 (ळ7) में शामिल हैं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य भी हैं। मिडिल ईस्ट की राजनीति में ब्रिटेन और फ्रांस की भूमिका ऐतिहासिक रही है। पहले विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद दोनों देशों ने इस क्षेत्र को अपने हिस्सों में बांट लिया था। तब ब्रिटेन को फिलिस्तीन पर अधिकार मिला था।

1917 में ब्रिटेन ने ही बाल्फोर घोषणापत्र जारी किया था, जिसमें यहूदियों के लिए उनका देश बनाने का समर्थन किया गया। लेकिन घोषणापत्र का वह हिस्सा, जिसमें फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की रक्षा की बात कही गई थी, कभी गंभीरता से लागू नहीं हुआ। इसे लेकर डिप्टी पीएम डेविड लैमी ने कहा कि यह ब्रिटेन की तरफ से एक ऐतिहासिक अन्याय था, जिसका असर आज तक दिखता है।

ब्रिटेन लंबे समय से टु स्टेट सॉल्यूशन का समर्थन करता रहा है, लेकिन उसकी शर्त यही रही है कि फिलिस्तीन को मान्यता शांति योजना के हिस्से के रूप में ही दी जानी चाहिए। अब ब्रिटेन के अधिकारियों को डर है कि ऐसा समाधान लगभग नामुमकिन होता जा रहा है।

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