कोर्ट के निर्णय के बाद वक्फ संशोधन विधेयक को मिली और अधिक स्वीकार्यता

कोर्ट के निर्णय के बाद वक्फ संशोधन विधेयक को मिली और अधिक स्वीकार्यता

अभी हाल ही में देश की सर्वोच्च अदालत के एक महत्वपूर्ण निर्णय के बाद बार फिर से वक्फ संशोधन विधेयक 2025 चर्चा के केन्द्र में आ गया है। 2025 का वक़्फ़ संशोधन विधेयक क्यों महत्वपूर्ण है, इसको जानना बेहद जरूरी है। हालांकि इस मामले पर कई टिप्पणियां, आलेख और बहस समाचार के कई माध्यमों पर उपलब्ध हैं, बावजूद इसके इसकी और ज्यादा मिमांसा की जरूरत है। भारत में लगभग 8.72 लाख पंजीकृत वक़्फ़ संपत्तियाँ हैं, जो 38 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैली हुई हैं। ये संपत्तियाँ मूल रूप से सामुदायिक कल्याण के लिए समर्पित हैं। ये संपत्तियां मस्जिदों, दरगाहों, कब्रिस्तानों और धर्मार्थ विद्यालयों जैसी संस्थाओं के माध्यम से पूरे देश भर में फैली हुई हैं लेकिन दशकों से कुप्रबंधन, अतिक्रमण और अधूरी सर्वेक्षण प्रक्रियाओं के कारण इन संपत्तियों का बड़ा हिस्सा या तो बेकार पड़ा है, या फिर विवादों में उलझा हुआ है, जिससे ये अपने असली सामाजिक उद्देश्य पूरे नहीं कर पा रही हैं।

सरकारी रिपोर्टें बताती हैं कि गुजरात और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने अब तक वक़्फ़ संपत्तियों का संपूर्ण सर्वेक्षण पूरा नहीं किया है, जबकि उत्तर प्रदेश का 2014 का सर्वेक्षण अधूरा पड़ा है। इसी अस्पष्टता का फायदा उठाकर निजी पक्षों ने धोखाधड़ी से संपत्तियों का स्थानांतरण और अवैध कब्ज़ा कर लिया। इन चुनौतियों को दूर करने के लिए सर्वाेच्च न्यायालय के अंतरिम आदेशों से समर्थित वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 लाया गया है, जो डिजिटलीकरण, पारदर्शिता और तेज़ कानूनी प्रक्रियाओं के ज़रिए वक़्फ़ संपत्तियों को उनके धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।

इस संशोधन के तहत वक़्फ़ प्रबंधन का आधुनिकीकरण किया जाएगा। संपत्तियों का डिजिटलीकरण अनिवार्य होगा, जिससे एक केंद्रीकृत और पारदर्शी डाटाबेस तैयार होगा और धोखाधड़ी व कुप्रबंधन पर रोक लगेगी। संपत्तियों के नामांतरण (म्यूटेशन) को समय पर पूरा करना अब ज़रूरी होगा ताकि अतिक्रमण और विवादों से बचा जा सके। नियमित ऑडिट भी अनिवार्य होंगे ताकि वित्तीय पारदर्शिता बनी रहे और संपत्तियों का सही उपयोग हो। पहले वक़्फ़ ट्रिब्यूनल का फ़ैसला अंतिम होता था, लेकिन अब नए कानून के तहत 90 दिनों के भीतर हाई कोर्ट में अपील की जा सकेगी। वक्फ़ बोर्डों में अब महिलाओं और विभिन्न मुस्लिम संप्रदायों, जैसे-शिया, सुन्नी और बोहरा के प्रतिनिधियों को शामिल करना अनिवार्य होगा, जिससे जवाबदेही और समावेशिता बढ़ेगी। इन सुधारों से लंबे समय से चली आ रही अपारदर्शिता और बहिष्करण की समस्या खत्म होगी और वक़्फ़ संपत्तियों का उपयोग छात्रवृत्तियों, सामुदायिक आरोग्यशालाओं और मस्जिदों के रखरखाव जैसे कार्यों के लिए किया जा सकेगा।

राज्य स्तर पर उपलब्ध आँकड़े इन सुधारों की ज़रूरत को दर्शाते हैं। कर्नाटक में मार्च 2025 में राज्य के आवास और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ने बताया कि 4,108 वक़्फ़ भूमि अतिक्रमण मामलों की पहचान हुई, जिनमें से 371 एकड़ भूमि मस्जिदों, कब्रिस्तानों और अशूरखानों सहित वापस ली गई। विजयपुरा ज़िले में 1,500 एकड़ के लिए बेदखली नोटिस जारी किए गए, जिन्हें बाद में 11 एकड़ पर संशोधित किया गया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि सटीक रिकॉर्ड कितना ज़रूरी है। इंदौर में 2024 की भूमि पुनर्प्राप्ति कार्रवाई में 150 करोड़ रुपये की कीमत वाली 2.14 एकड़ भूमि वापस ली गई, जिसे “पार्क एवेन्यू” नामक आवासीय कॉलोनी में अवैध रूप से विकसित किया गया था। प्रशासन ने बुलडोज़र चलाकर अवैध ढाँचे हटाए और भूमि को दरगाह ट्रस्ट को सौंपा। तेलंगाना का वक़्फ़ बोर्ड 3,000 एकड़ भूमि से जुड़े 3,500 मुकदमों में उलझा है, जिनमें से कई मामले निज़ाम काल के अप्रमाणित शीर्षकों के कारण हैं। उत्तर बंगाल में, बोर्ड अध्यक्ष जस्टिस एस. मुंशी के नेतृत्व में 2024 में सिलिगुड़ी के सेवक रोड पर वाणिज्यिक अतिक्रमण हटाए गए। केरल में वक़्फ़ बोर्ड ने वायनाड ज़िले के थविंजल गाँव में पाँच परिवारों को नोटिस जारी किए, जिन्होंने 5.77 एकड़ में से 4.7 एकड़ भूमि पर खेती कर रखी थी।

इन उदाहरणों से साफ है कि अपूर्ण सर्वेक्षण, नामांतरण न होना और लंबी मुकदमेबाज़ी वक्फ संपत्ति के नियंत्रण में बाधा उत्पन्न कर रहा है। 2025 का संशोधन इन चुनौतियों को सीधे निशाना बनाता है। डिजिटाइज्ड रजिस्ट्रियों, समयबद्ध ऑडिट और तेज़ ट्रिब्यूनल प्रक्रिया के ज़रिए अब कई काम आसान हो जाएंगे। उदाहरण के तौर पर, कर्नाटक और तेलंगाना में हजारों मामले ट्रिब्यूनल आदेश लागू न होने के कारण अटके हैं उसमें तेजी आएगी। साथ ही इंदौर और सिलिगुड़ी की सफल पुनर्प्राप्तियाँ बताती हैं कि स्पष्ट कानूनी ढाँचे से कितनी बड़ी संभावनाएँ खुल सकती हैं। इंदौर में मात्र कुछ एकड़ वापस लेकर ही करोड़ों की सामाजिक संपदा बहाल हुई। कर्नाटक में पुनर्प्राप्त संपत्ति अब शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च हो रही है। डिजिटलीकरण और नियमित ऑडिट से वक़्फ़ बोर्ड बाज़ार दर पर लीज़ देकर राजस्व बढ़ा सकते हैं और यह पैसा छात्रवृत्तियों, क्लीनिकों और मस्जिदों के रखरखाव में लगाया जा सकता है।

हालाँकि इस संशोधन में केंद्र को अधिक नियम बनाने की शक्ति मिली है लेकिन मुस्लिम समुदाय को इससे पीछे हटने की बजाय कानूनी रास्तों का इस्तेमाल करना चाहिए। समय पर अपील करना, खातों के प्रकाशन की माँग करना, डिजिटल पोर्टल पर प्रविष्टियों को ट्रैक करना और जहाँ लागू हो वहाँ सीएजी या निर्धारित ऑडिट का सहारा लेना चाहिए। इससे ऐसा रिकॉर्ड बनेगा जिसे अनदेखा करना कठिन होगा और छेड़छाड़ करना भी मुश्किल। यह व्यक्तिगत शिकायतों को संस्थागत जवाबदेही में बदल देगा, जिससे वक़्फ़ प्रबंधन करने वालों अधिकारियों, मुतवल्लियों और बोर्ड से जुड़े अन्य एजेंसियों पर निगरानी बढ़ेगी।

निसंदेह, इन सुधारों के क्रियान्वयन में नौकरशाही की देरी और स्वार्थी समूहों का विरोध सामने आएगा। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और संसाधनों की ज़रूरत होगी, साथ ही समुदाय की भागीदारी भी आवश्यक होगी। इंदौर की 150 करोड़ की पुनर्प्राप्ति, सिलिगुड़ी के सर्वेक्षण-आधारित निष्कासन और केरल की कानूनी कार्रवाई जैसी हाल की सफलताएँ दिखाती हैं कि जनता इस प्रक्रिया को स्वीकार कर रही है। आधुनिक जवाबदेही तंत्र और उपकरणों से लैस होकर, 2025 का संशोधन वक़्फ़ बोर्डों में विश्वास बहाल करेगा। इसके लिए पूरे मुस्लिम समाज को एकत्र होकर परिवर्तन को स्वीकार करना चाहिए।

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