छोटे शहरों व कस्बों के लिए प्रेरणा है लखनऊ को मिली यूनेस्को की मान्यता

छोटे शहरों व कस्बों के लिए प्रेरणा है लखनऊ को मिली यूनेस्को की मान्यता

हाल में विश्व नगर दिवस के अवसर पर यूनेस्को ने अपने रचनात्मक शहरों की सूची में 58 नए शहरों को शामिल किया है. इस सूची में लखनऊ का होना भारत के लिए गर्व का विषय है। उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ को ‘पाक-कला के सृजनशील शहर’ का दर्जा मिलना न केवल लखनऊ की समृद्ध नवाबी विरासत का प्रतीक है बल्कि इससे हमारे देश की खान-पान की खास परंपराओं पर वैश्विक मुहर भी लगी है। इतना ही नहीं, लखनऊ की शान में लगी इस कलगी से देश के उन छोटे शहर-कस्बों को भी प्रेरणा मिली है जो अपने यहां विशिष्ट स्वाद समेटे हुए हैं।

लखनऊ की पाक परंपरा केवल भोजन नहीं बल्कि समृद्ध खान-पान संस्कृति, इतिहास और भावनाओं का संगम है। वहां की गलियों में महकने वाला स्वाद सदियों पुरानी नवाबी तहजीब की निशानी है। वहां के रसदार कबाब, खास बिरयानी और अन्य खान-पान केवल व्यंजन नहीं बल्कि पीढिय़ों से चली आ रही पाक कला के स्थापित प्रतीक हैं। लखनऊ साबित करता है कि भोजन केवल पेट भरने का साधन नहीं बल्कि एक रचनात्मक अभिव्यक्ति भी है जो समुदायों को जोड़ती है और इतिहास को जीवित रखती है। लखनऊ का यूनेस्को की रचनात्मक शहरों की सूची में शामिल होना केवल एक सम्मान नहीं बल्कि एक अवसर है। इससे जहां शहर को न केवल वैश्विक स्तर पर पहचान मिलेगी वहीं पाक-कला के संरक्षण, नवाचार और पर्यटन को भी नई दिशा मिलेगी। यह दर्जा इस शहर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाक आदान-प्रदान, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और प्रशिक्षण के अवसरों से जोड़ेगा। इससे स्थानीय रसोइयों, छोटे खानपान व्यवसायों और पारंपरिक खाद्य निर्माताओं को भी नई आर्थिक संभावनाएं मिलेंगी।

2019 में हैदराबाद को यह दर्जा मिला था. इसके बाद लखनऊ भारत का दूसरा शहर है, जिसे पाक कला श्रेणी में यह सम्मान मिला है। इससे दुनिया में यह संदेश गया है कि हमारे देश का खानपान केवल विविध नहीं बल्कि नवाचार और परंपरा के संतुलन का एक अद्भुत उदाहरण भी है। लखनऊ की यह उपलब्धि भारत के हजारों गांवों, कस्बों और छोटे शहरों के लिए प्रेरणा बन सकती है। देश के हर क्षेत्र की अपनी कोई न कोई खाद्य पहचान है। आगरा का पेठा, मथुरा के पेड़े, जैसलमेर के घोटिया लड्डू, रेवाड़ी की बर्फी, बीकानेर का भुजिया और रसगुल्ले, जोधपुर की कचौरी समेत तमाम स्थानों की खान-पान संबंधी कोई न कोई पहचान है जिसमें स्थानीय मिट्टी, जलवायु, संस्कृति और श्रम की मिठास मिली है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि ज्यादातर इलाकों के स्वाद की कहानी इन इलाकों तक ही सिमट कर रह गई है। लखनऊ की तरह यदि ऐसे सभी स्थानों की विशेषता को पहचान दिलाने के लिए संगठित प्रयास हों तो ये भी देश और दुनिया के खानपान नक्शे पर जगह बना सकते हैं।

देश के विभिन्न इलाकों के स्थानीय स्वादों की वैश्विक पहचान के लिए बहुत कुछ करना पड़ेगा। यह सही है कि यूनेस्को का दर्जा हर शहर को नहीं मिल सकता लेकिन उस स्तर तक पहुंचने के लिए प्रयास जरूर किए जा सकते हैं। स्थानीय ब्रांडिंग और संरक्षण के तहत हर जिले के विशिष्ट व्यंजन की कहानी और परंपराओं का दस्तावेजीकरण और ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन डिश’ जैसे अभियानों का आगाज इसमें योगदान दे सकता है। पर्यटन विभाग यदि स्थानीय व्यंजनों पर आधारित फूड फेस्टीवल आयोजित करे तो न केवल पर्यटन बढ़ेगा बल्कि स्थानीय रोजगार भी सृजित होंगे।अगर छोटे होटल, स्ट्रीट फूड विक्रेता, गृहिणी उद्यमी और रसोइये मिलकर स्थानीय स्तर पर ब्रांड बनाएं तो इससे ‘मेक इन इंडिया’ का स्वादिष्ट रूप सामने आ सकता है। छोटे शहरों के युवा अपने क्षेत्रीय व्यंजनों को डिजिटल माध्यमों पर प्रस्तुत करें तो बड़ी पहचान मिल सकती है। आज बीकानेर का भुजिया और रसगुल्ले पूरे देश में प्रसिद्ध हैं लेकिन यह पहचान एक दिन में नहीं बनी। यह वहां के रसोइयों और व्यावसायिक उद्यमियों की बरसों की मेहनत का नतीजा है। उन्होंने अपने स्वाद को केवल परंपरा तक सीमित नहीं रखा बल्कि गुणवत्ता और नवाचार के जरिए उसे ब्रांड बनाया है। यही वह राह है जिसे भारत के अन्य छोटे कस्बे और गांव भी अपना कर अपने उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा सकते हैं।

यूनेस्को का रचनात्मक शहर नेटवर्क केवल भोजन तक सीमित नहीं है। इसमें शिल्प, लोक कला, डिजाइन, फिल्म, साहित्य, संगीत और मीडिया कला जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं। भारत के छोटे शहरों में इन सभी क्षेत्रों में अपार संभावनाएं हैं। हमारे देश में जगह-जगह सृजन का संसार है। यदि हम अपने स्थानीय कौशल, परंपरा और नवाचार को जोड़ कर वैश्विक मंच तक ले जाएं, तो भारत का हर शहर ‘रचनात्मक शहर’ बनने की राह पर अग्रसर हो सकता है। लखनऊ की उपलब्धि केवल एक शहर की सफलता नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणा बन सकती है। यह हमें सिखाती है कि अपनी जड़ों से जुड़ कर, अपनी परंपराओं को संजोकर और उन्हें आधुनिकता के साथ प्रस्तुत करके हम दुनिया भर में पहचान बना सकते हैं। हमारे देश के कोने-कोने में जहां अनूठा स्वाद है, वहीं हर क्षेत्र की अपनी सृजनशीलता और संस्कृति भी है। हमारे यहां हर गली में कोई कहानी है, हर रसोई में कोई कला है और हर व्यंजन अपने भीतर कोई न कोई इतिहास समेटे हुए है। जरूरत इन कहानियों को सुनाने और उसे दुनिया तक पहुंचाने की है। लखनऊ ने पहला कदम बढ़ाया है तो बाकी शहर-कस्बों को भी उसके पीछे कदम बढ़ा लेने चाहिए।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।

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