प्रेम कहानी/ ‘‘केसरिया बालम’’ गीत, जो आज के राजस्थान की पहचान बन गयी

प्रेम कहानी/ ‘‘केसरिया बालम’’ गीत, जो आज के राजस्थान की पहचान बन गयी

राजस्थान का इतिहास प्रेम, भक्ति, त्याग, शौर्य और बलिदान की गाथाओं से भरा पड़ा है। यहाँ के कण-कण में मीरा के भजन, पन्ना धाय के त्याग, महाराणा प्रताप, गोरा-बादल, चेतक, रामदेव पीर, ढोला-मारू और वीर तेजा जी की कहानियां बसी हुई हैं। आज मैं एक ऐसी नयी प्रेम कहानी लेकर अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत हूं, जिससे निकली गीत आधुनिक राजस्थान की पहचान बन गयी है। सामान्य रूप से प्रेम कहानियों का अंत दुखदायी होता है लेकिन इस राजस्थानी प्रेम कथा का अंत सुखद है। इस कहानी की कई सकारात्मकता है, जो इस कथा को सदियों से जीवंत बनाए हुए है। और हां! एक बात और जो इस कहानी को जन-जन तक पहुंचाया है उसमें उस गीत की भी महत्वपूर्ण भूमिका है, जो राजस्थानी लोकगीत का आधार माना जाता है। तो आइए सीधे-सीधे कथा की दुनिया में उतरते हैं।

ढोला और मारू की कहानी। यह राजस्थान की एक लोकप्रिय लोक कथा है। इसका एक छत्तीसगढ़ी संस्करण भी है, जो राजस्थानी संस्करण से बिल्कुल ही अलग है। दोनों ही राज्यों में यह कहानी मौखिक परंपरा के माध्यम से पीढ़ियों से चली आ रही है। हालांकि आज यह गद्य, कविता और मिश्रित प्रारूपों सहित विभिन्न रूपों में उपलब्ध है।

आज मैं इस प्रेम कथा का राजस्थानी संस्करण प्रस्तुत करता हूं। कहानी तो 12वीं शताब्दी की ही बतायी जाती है लेकिन वर्ष 1617 में जैन भिक्षु, “कुशल लाभ” द्वारा लिखी गई ‘ढोला मारू री चौपाई’ नामक पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि “ढोला और मारू की कहानी बहुत प्राचीन है, जिसमें कुछ पांडुलिपियां 1473 की भी हैं।” इस कहानी को राजपूत इतिहास का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है और इसे राजस्थानी लोक रंगमंच में भी व्यापक रूप से स्वीकार्यता है। इस कहानी को कई भारतीय फिल्मों में भी रूपांतरित किया गया है। मसलन, राजा पिंगल द्वारा शासित पूंगल नामक एक राज्य में मारू नामक एक बेहद रूपवती राजकुमारी रहती थी। कथा के अनुसार मारू जब पैदा ही हुई थी तो उसके पिता ने अपने पड़ोसी राज्य नरवर के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए अपनी बेटी की सगाई राजा नल के पुत्र “ढोला” से करा दी।

धीरे-धीरे ढोला और मारू अपने-अपने राज्यों में बड़े होने लगे। इसी बीच राजा नल का निधन हो जाता है। इधर ढोला भी पिता के जाने के दुःख और शासन की जिम्मेदारियों में घिरकर, अपने बचपन में मारू के साथ की गई विवाह प्रतिज्ञाओं को भूल जाता है। इधर पूगल राज्य में, मारू को सब कुछ याद रहता है और वह ढोला के प्रेम में अकेले ही तड़प रही होती है। इधर ढोला की दूसरी शादी भी करा दी जाती है। हालांकि मारू के पिता (राजा पिंगल) ढोला को कई संदेश भी भेजते हैं, लेकिन ढोला की “मालवणी” नामक एक और पत्नी होती है, जो इन संदेशों को ढोला तक नहीं पहुंचने देती।

इस कहानी में अब थोड़ा रोमांच आता है। इसी बीच भाग्य से मारू के हृदय की पुकार ढोला सुन लेता है। दरसल, एक बार ढोला के राज्य में लोक गायकों का एक समूह आता है, जो गीतों के माध्यम से ढोला के प्रति मारू के अटूट प्रेम की खबर ढोला को देता है। इन विरह गीतों को सुनकर, ढोला का दिल भी मारू से मिलने के लिए तड़प उठता है और वह तुरंत वर्षों से इंतजार में बैठी अपनी पत्नी से मिलने के लिए पूगल राज्य की ओर निकल पड़ता है।

यहां भी उसकी पत्नी मालवणी, ढोला और मारू को किसी भी हाल में नहीं मिलने देना चाहती है। इसलिए वह ढोला को वापस बुलाने की आशा में एक दूत के माध्यम से यह संदेश भिजवाती है कि “उसकी (मालवणी) की मृत्यु हो गई है।” लेकिन ढोला उसके धोखे को समझ जाता है और यह खबर सुनने के बाद भी अपनी यात्रा जारी रखता है। ढोला की यह यात्रा कई चुनौतियों से भरी होती थी। मार्ग में उसका सामना एक कुख्यात दस्यु नेता, उमर सुमार से होता है। जो ढोला को बताता है कि मारू की शादी किसी और से कर दी गई है। ढोला सुमार की चाल को समझ जाता है। दरअसलख् सुमार ऐसा इसलिए करता है, क्यों कि वह खुद भी मारू से प्रेम करता था। हालांकि ढोला उसकी बातों में नहीं आता और अंततः वह पूंगल राज्य में पहुंच जाता है, जहां उसका स्वागत पूरे हर्षाेल्लास के साथ किया जाता है। इसके बाद ढोला और मारू फिर से एक हो जाते हैं और उनका प्यार पहले से भी अधिक मजबूत हो जाता है।

ढोला-मारू की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। जब ढोला, मारू को लेकर वापस अपने राज्य की ओर प्रस्थान करता है तो रास्ते में भी कई प्रकार के संकटों का सामना करना पड़ता है। यहां पर भी दुर्भाग्य उनका पीछा नहीं छोड़ता। नरवर वापस जाते समय रास्ते में ही मारू को एक रेगिस्तानी सांप डस लेता है और उसकी वहीं पर मृत्यु हो जाती है। इस दुःख से अभिभूत होकर ढोला, अपनी पत्नी की चिता पर चढ़कर राजपूत इतिहास में पहला ‘पुरुष सति’ बनने का फैसला करता है लेकिन समय रहते एक योगी और योगिनी उसे बचा लेते हैं। कुछ कथाओं में उन दोनों को स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती बताया गया है। वे दोनों ढोला से वादा करते हैं कि वे मारू को फिर से जीवित कर देंगे।

इसके बाद वे दोनों अपने संगीत वाद्य यंत्र बजाते हैं और मारू फिर से जीवित हो जाती है। लेकिन यह कहानी यहीं पर समाप्त नहीं होती है। कहानी में एक बार फिर से कहानी के पुराने खलनायक उमर सुमार का प्रवेश होता है। वह इस भोले-भाले और नए नवेले जोड़े को एक शाम अपने यहां ठहरने के लिए आमंत्रित करता है। हालांकि, इसी बीच किस्मत से कुछ लोक गायक ढोला और मारू को उसके बुरे इरादों के बारे में चेतावनी दे देते हैं। चेतावनी सुनकर यह दंपति, उमर सुमार को पीछे छोड़कर, जल्दी से अपने ऊंट पर सवार होकर वहां से भाग जाते हैं। आखिरकार एक शुभ घड़ी में ढोला और मारू नरवर पहुंच ही जाते हैं, जहाँ वे दोनों, मालवणी के साथ खुशी-खुशी रहने लगती। आखिरकार यह राजस्थानी लोक कहानी यहीं पर समाप्त हो जाती है।

नोट : ढोला और मारू की प्रेम कथा स्थान, काल और परिस्थितियों के आधार पर थोड़ा-थोड़ा बदल कर बताया, सुना-सुनाया जाता है। इस कथा को राजस्थान के अलावा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी बेहद रोचक तरीके से बताया और सुना जाता है।

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