रमजान और महाकुंभ में धर्म और इंसानियत की एकजुटता का एक खास उदाहरण

रमजान और महाकुंभ में धर्म और इंसानियत की एकजुटता का एक खास उदाहरण

नयी दिल्ली/ जहां एक ओर सोशल मीडिया से लेकर आम जीवन तक में सांप्रदायिक जहर फैलाया जा रहा है, वहां कुछ मन को शांति प्रदान करने वाली भी खबरें आ रही है। अभी हाल ही में प्रयागराज महाकुंभ को लेकर बहुत सारी सांप्रदायिक भ्रांतियां फैलायी गयी। वहीं दूसरी ओर कुछ प्रदेशों में एक खास संप्रदाय के कुछ धर्मगुरुओं द्वारा रमजान के मौके हिन्दू व्यापारियों से सामान नहीं खरीदने की एक खबर फैलायी जा रही है। यह दोनों बातें देश की एकता और अखंडता को हानि पहुंचाने वाली है। लेकिन समाज इन दोनों बातों पर ध्यान नहीं दे रहा है। आप चाहे कुछ पूर्वाग्रह से प्रेरित समाचार माध्यम या सोशल मीडिया इन बातों को जितना तूल दे लेकिन आम समाज अभी भी एक-दूसरे से बेहद निकट है। इसके कुछ उदाहरण मैं यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।

कुछ दिनों पहले महाकुंभ के दौरान परेशान श्रद्धालुओं की सहायता करने वाले कुछ मुसलमानों की नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन, प्रयागराज और वाराणसी से कुछ खबरें आई थीं। इस दौरान न केवल मुसलमानों ने मुसीबतजदा श्रद्धालुओं केलिए अपने घर, बाजार, इबादतगाहों के दरवाजे खोल दिए थे, बल्कि उनके खाने पीने का भी इंतजा किया था।

अब इस रमजान में सौहार्द बढ़ाने वाली एक तस्वीर दिल्ली से आई, जब कि हिंदू महिला खुशी से अपने इलाके की मस्जिद और मदरसे को सजाने के लिए आर्थिक मदद देने के लिए आगे आई। हालांकि यह रकम बहुत बड़ी नहीं थी, पर यह घटना साबित करती है कि देश की गंगा-जमुनी तहजीब को नुक्सान पहुंचाने की चाहे कितनी कोशिश की जाए, पर भारत की इस भाईचारे वाली संस्कृति को दरकाया नहीं जा सकता है।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हाल ही में एक दिल छूने वाली घटना ने समाज में हिंदू-मुस्लिम एकता और धार्मिक सहिष्णुता की मिसाल पेश की है. यह घटना दिल्ली के सीलमपुर इलाके की है, जहां एक हिंदू महिला ने रमजान के मौके पर अपनी सांप्रदायिक संवेदनशीलता को दरकिनार करते हुए मस्जिद के साज-सज्जा के लिए आर्थिक सहायता दी।

इस कार्य ने न केवल समाज में धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया, बल्कि एक मजबूत संदेश दिया कि भारत की विविधता में एकता ही इस देश की सबसे बड़ी ताकत है।

दिल्ली के सीलमपुर में मुस्लिम बहुल इलाके में एक हिंदू महिला का इस तरह का कदम उठाना न केवल सराहनीय है, बल्कि इसने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि हमारे देश में धर्मों के बीच प्रेम और एकता कभी भी कमजोर नहीं हो सकती।

इसका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वीडियो में देखा गया कि एक यूट्यूबर मुस्लिम बहुल इलाके में रमजान की तैयारी पर चर्चा कर रहा था। इसी दौरान यह जानकारी मिली कि एक हिंदू महिला मस्जिद के लिए दान देने आई है। यूट्यूबर ने महिला से पूछा कि क्या वह मस्जिद को सजाने के लिए दान कर रही है, तो महिला ने सहजता से जवाब दिया, ‘हां, इसमें गलत क्या है? हम यहां रहते हैं और साथ रहते हैं।’

यह जवाब न केवल उसकी इंसानियत को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि भारत में धर्मों के बीच विश्वास और सहयोग की लंबी परंपरा है।

इस घटना को लेकर यूट्यूबर और आसपास के लोग हैरान थे, और इसने सभी को यह समझाया कि भारत की जमीनी संस्कृति में धर्म और जाति से ऊपर इंसानियत की भावना हावी है। यह तस्वीर एक सशक्त संदेश बन गई, जिसे देशभर में साझा किया गया। खासकर सोशल मीडिया पर यह घटना तेजी से वायरल हो गई, जहां लोगों ने इसे एक आदर्श उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया।

वायरल वीडियो में मुस्लिम युवक और दो मौलवी भी दिखाई देते हैं, जो इस दान को लेकर खुश और आभारी थे। यही नहीं, उन्होंने यह भी बताया कि उनकी नजर में कोई भेदभाव नहीं है। सभी लोग मिलजुल कर रहते हैं, और ऐसे आयोजनों में एक-दूसरे का सहयोग करना ही उनकी पारंपरिक भावना है।

यह भारत के समाज की असली तस्वीर को दर्शाता है, जहां साम्प्रदायिक सौहार्द और भाईचारा न केवल शब्दों में, बल्कि कर्मों में भी दिखता है।

रमजान जैसे पवित्र महीने में इस तरह का दान देना न केवल धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देता है, बल्कि यह यह भी साबित करता है कि हमारे देश में सभी धर्मों के लोग एक दूसरे के सम्मान में रहते हैं। इस घटना से हमें यह भी समझने को मिलता है कि देश में चाहे कितनी भी कोशिशें की जाएं, कोई भी ताकत भारत की गंजागा-जमुनी तहजीब को नुकसान नहीं पहुंचा सकती।

भारत की संस्कृति ही यह कहती है कि विभिन्न धर्मों, जातियों, और संस्कृतियों का सम्मान करना चाहिए. इस तरह की घटनाएं यह साबित करती हैं कि धर्म, जाति, और क्षेत्र की सीमाएं हमारे दिलों के बीच की दीवारें नहीं बना सकतीं। धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक एकता के इस प्रतीक को न केवल आज के समय में, बल्कि आने वाली पीढ़ियों में भी याद रखा जाएगा।

हिंदू महिला द्वारा मस्जिद को सजाने के लिए दान देने की यह घटना हमें एक मजबूत संदेश देती है कि हमारे देश में धर्मों के बीच एकता और भाईचारे का भाव हमेशा मौजूद रहेगा। यह किसी भी तरह की सांप्रदायिक राजनीति से ऊपर उठकर केवल इंसानियत की बात करता है। एक राष्ट्र के रूप में हमें इसी भावना के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है, ताकि समाज में धर्मनिरपेक्षता और मानवता का अनुपालन हमेशा होता रहे।

समाज में इस तरह की घटनाएं हमें यह सिखाती हैं कि हमारी सांस्कृतिक विविधता हमारी ताकत है और यही हमें एकता के सूत्र में बांधने का काम करती है। यह उदाहरण हमें यह समझाता है कि अगर हम अपनी पुरानी परंपराओं और आस्थाओं के साथ चलें, तो एक दूसरे की मदद करने में कोई समस्या नहीं हो सकती. जब हम आपस में मिलजुल कर रहते हैं, तो समाज में कोई भी दीवार हमें अलग नहीं कर सकती।

आखिरकार, भारत की सबसे बड़ी शक्ति उसकी सांस्कृतिक विविधता और सामूहिक एकता में ही निहित है। इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा देने और सम्मान देने से हम अपने देश को एक बेहतर, समृद्ध और एकजुट राष्ट्र बना सकते हैं।

नोट : मूल रिपोर्ट आवाज द वॉयस से लिया गया है। उस रिपोर्ट को हमारे प्रबंधन ने केवल संपादित किया है।

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