सीमा पासी
आज दलित संगठनों ने भारत बंद बुलाया है और इसकी वजह है सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण में राज्यों को उपवर्गीकरण का अधिकार देना और आरक्षण में क्रीमी लेयर की व्यवस्था लागू करने की सलाह देना। वास्तव में ये प्रदर्शन विरोध जताने के लिए नहीं है बल्कि दलित संगठन अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ क्रीमी लेयर लागू करने के बारे में टिप्पणी की है, न तो कोई आदेश दिया है और न ही सरकार को कोई निर्देश दिया है इसके बावजूद केंद्र सरकार ने क्रीमी लेयर के विचार को ही पूरी तरह से नकार दिया है।
जहां तक उपवर्गीकरण की बात है तो वो भी कोई आदेश नहीं है बल्कि राज्यों को उपवर्गीकरण का अधिकार दिया गया है जो कि पहले सिर्फ केंद्र सरकार के पास था। केंद्र सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है क्योंकि उसके पास तो पहले से ही ये अधिकार है। जिन राज्यों ने उपवर्गीकरण करना है उन्हें इस प्रदर्शन से फर्क पड़ने वाला नहीं है क्योंकि उन राज्यों में दलित वर्ग ही इसकी मांग कर रहा है।
दूसरी बात यह है कि ये प्रदर्शन किसके खिलाफ किया जा रहा है, ये बड़ा सवाल है क्योंकि केंद्र सरकार का इसमें कोई रोल नहीं है और सुप्रीम कोर्ट को ऐसे प्रदर्शनों से फर्क नहीं पड़ता। आरक्षण किसी दूसरे को दिया जाना नहीं है बल्कि दलितों में पीछे छूट गई जातियों को आगे लाने की कोशिश है. आरक्षण न तो कम किया जा रहा है और न ही बढ़ाया जा रहा है तो ये प्रदर्शन क्यों किया जा रहा है। वास्तव में ताकतवर जातियां नहीं चाहती हैं कि कमजोर जातियों को उनका हक मिले, इसलिए वो अपनी ताकत दिखाकर सरकार पर दबाव बना रही हैं। दलितों में ही सवर्ण वर्ग पैदा हो गया है और वो ही सारे आरक्षण का फायदा ले रहा है, वो दूसरों को हक देना नहीं चाहता, इसलिए सरकार को डरा रहा है कि वो आरक्षण में बिल्कुल भी छेड़छाड़ न करे, जैसा चल रहा है वैसा चलने दिया जाए।
विडंबना यह है कि कमजोर जातियों और गरीब दलितों की दलित संगठनों में बिल्कुल भागीदारी नहीं है इसलिए उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। जिनके पास ताकत है वो अपनी ताकत दिखा रहे हैं और जो कमजोर हैं, वो बेचारे चुपचाप बैठे हुए हैं।
लेकिन ये ज्यादा दिन तक चलने वाला नहीं है क्योंकि लोकतंत्र में कमजोर से कमजोर आवाज को भी दबाया नहीं जा सकता। जैसे ही इन लोगों को अपने अधिकारों के छीनने का अहसास हो जाएगा, उस दिन इनकी आवाज दबाना किसी के भी बस में नहीं होगा।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)