सहदेव की मौत के बाद झारखंड में अब बचे तीन खूंखार माओवादी, पहली बार दलित नेता के हाथ में नक्सली कमान

सहदेव की मौत के बाद झारखंड में अब बचे तीन खूंखार माओवादी, पहली बार दलित नेता के हाथ में नक्सली कमान

नयी दिल्ली/रांची/रायपुर/ हजारीबाग जिले के गोरहर पांतितीरी में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए सहदेव महतो उर्फ सहदेव सोरेन के मारे जाने के बाद अब प्रतिबंधित भारत की कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी केन्द्रीय समिति सदस्यों में केवल 12 ही बच गए हैं। इस मुठभेड़ को बेहद अहम माना जा रहा है। वैसे तो इस मुठभेड़ में तीन माओवादियों के मारे जाने की खबर है लेकिन सहदेव के मारे जाने को बेहद महत्व दिया जा रहा है। दरअसल, सहदेव पर सरकार एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित कर रखी थी। सहदेव सोरेन भाकपा माओवादी केन्द्रीय समिति के सदस्य थे और बेहद शातिर माने जाते थे।

खुफिया सूत्रों की मानें तो अब झारखंड में तीन ही खूंखार शीर्ष नेतृत्व वाले माओवादी बच गए हैं। इन तीनों में एक मिसिर बेसरा हैं, जो फिलहाल माओवादी पॉलित ब्यूरो के सदस्य हैं। मिसिर बेसरा के बारे में बताया जाता है कि ये माओवादियों के वैचारिक कमेटी का नेतृत्व करते हैं। इसके अलावे केन्द्रीय समिति के दो और सदस्य हैं, जिनका ठिकाना आज भी झारखंड को ही बताया जाता है। झारखंड में रहने वाले दो माओवादियों में पहला नाम पतिराम मांझी का है। पतिराम मांझी भी माओवादी केन्द्रीय कमेटी के सदस्य हैं और सरकार ने इनके उपर भी एक करोड़ रुपये का इनाम रखा है। पतिराम मांझी को अनल के नाम से भी जाना जाता है। पतिराम के अलावे मूल रूप से बंगाल के रहने वाले असीम मंडल का भी फिलहाल ठिकाना झारखंड ही है।

सहदेव महतो उर्फ प्रवेश कई माओवादी अभियान में शामिल रहे लेकिन बीते सोमवार को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में उन्हें मार गिराया गया। सहदेव के उपर सरकार ने एक करोड़ रुपये का इनाम रख रखा था।

इधर प्रेक्षकों की मानें तो माओवादी फिलहाल सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। बीते कुछ ही दिन पहले, सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी के एक सदस्य मोडेम बालकृष्णा तेलंगाना में मारे गए और तेलंगाना में ही अपना ठिकाना बना कर रहने वाली दूसरी सदस्य सुजाता ने आत्मसमर्पण कर दिया।

बता दें कि सरकारी दस्तावेज़ों में किसी समय माओवादी केन्द्रीय समिति में 42 सदस्य हुआ करते थे। उसमें से सोमवार से पहले तक 13 सदस्य बचे थे लेकिन सहदेव की मुठभेड़ में मौत के बाद अब केन्द्रीय समिति में केवल 12 सदस्य रह गए हैं।

विगत दिनों छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा था, ‘‘सेंट्रल कमेटी की सदस्य सुजाता के आत्मसमर्पण के बाद, छत्तीसगढ़ में सक्रिय माओवादियों की सेंट्रल कमेटी में अब कुछ ही सदस्य बचे हैं। कुल मिला कर इनका शीर्ष नेतृत्व अब समापन की ओर है।’’

केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2026 तक देश से माओवादियों को पूरी तरह से खत्म करने की समय सीमा तय कर रखी है। यही कारण है कि पिछले 20 महीनों से छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों ने माओवादियों के ख़िलाफ़ सघन अभियान चलाया हुआ है।

छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद से पिछले 25 सालों में माओवादियों के ख़िलाफ़ सुरक्षाबलों का यह सबसे बड़ा अभियान है। इसमें बड़ी संख्या में माओवादी मारे गए और गिरफ़्तार किए गए हैं, या उन्होंने आत्मसमर्पण किया है।

2004 में जब पीपल्स वॉर ग्रुप और एमसीसी का विलय हुआ और सीपीआई माओवादी का गठन हुआ, तब इस संगठन की सेंट्रल कमेटी में 42 सदस्य थे। लेकिन सरकारी दस्तावेज़ों की मानें तो आज की तारीख में इस कमेटी में अब केवल 12 माओवादी बचे हैं।

अकेले इस साल यानी 2025 में अब तक सेंट्रल कमेटी के 7 सदस्य मारे जा चुके हैं। इसी साल जनवरी में रामचंद्र रेड्डी उर्फ चलपति, मई में पुल्लुरी प्रसाद राव ऊर्फ चंद्रन्ना, मई में ही पार्टी के महासचिव नंबाला केशव राव, जून में सुधाकर और गजराला रवि ऊर्फ उदय, फिर मोडेम बालकृष्णा और अब सहदेव की मौत के साथ इस साल मारे जाने वाले माओवादी केन्द्रीय समिति के सदस्यों में 7 लोग शामिल हो गए हैं। अब केवल केन्द्रीय समिति में 12 माओवादी नेता ही बच गए हैं, जिसमें से दो, पतिराम मांझी और असीम मंडल का ठिकाना झारखंड बताया जाता है।

केन्द्रीय समिति के सदस्यों में 8 आमोवादी नेताओं का ठिकाना आंध्र प्रदेश-तेलंगाना में बताया जाता है, जिनमें मुपल्ला लक्ष्मण राव ऊर्फ गणपति, मल्लोजुल्ला वेणुगोपाल ऊर्फ सोनू, तिप्पिरी तिरूपति ऊर्फ देवजी, पसुनुरी नरहरि ऊर्फ विश्वनाथ, कादरी सत्यनारायण रेड्डी ऊर्फ कोसा, मल्ला राजिरेड्डी ऊर्फ संग्राम, पाका हनुमंथु ऊर्फ गणेश और कट्टा रामचंद्र ऊर्फ राजूदादा शामिल हैं।

सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी में छत्तीसगढ़ के दो माओवादियों मज्जीदेव ऊर्फ रामधीर और माड़वी हिड़मा को रखा गया है। पुलिस द्वारा जानकारी में बताया गया है कि बस्तर में माओवादी संगठन अपने अंतिम दौर में है। सुजाता का आत्मसमर्पण इसका उदाहरण है। झारखंड, तेलंगाना और आंध्र में संगठन नाम भर के लिए बचा है और मोडेम बालकृष्णा के मारे जाने के बाद अब ओडिशा में भी माओवादी बेहद कमजोर पड़ गए हैं।

पहली बार दलित नेता के हाथ में माओवाद
छत्तीसगढ़ में एक मुठभेड़ में मारे गए सीपीआई (माओवादी) प्रमुख नाम्बला केशवा राव, जिन्हें बसवराजु के नाम से भी जाना जाता है, के महीनों बाद, तेलंगाना खुफिया विभाग के स्रोतों ने सार्वजनिक करते हुए कहा हे कि प्रतिबंधित पार्टी के सैन्य प्रमुख थिप्पिरी तिरुपति, उपनाम देवुजी को माओवादी संठन का महासचिव नियुक्त किया गया है।

पिछले दो दशकों से, तिरुपति ने सीपीआई (माओवादी) के केंद्रीय सैन्य आयोग, या सेना विंग, का नेतृत्व कर रहे थे। 62 वर्षीय तिरुपति का नाम मई में तब सामने आया जब छत्तीसगढ़ के एक मुठभेड़ में तत्कालिन माओवादी महासचिव बसवराजू मारे गए।

तेलंगाना के जगतियाल जिले, जिसे तब करीमनगर के नाम से जाना जाता था, तिरुपति मदिगा दलित समुदाय से आते हैं। तिरुपति का नेतृत्व महत्वपूर्ण होने वाला है क्योंकि वह एक हाशिए पर रहे समुदाय से आता है और पार्टी के कार्यकर्ताओं, जिसमें आदिवासी भी शामिल हैं, को एकत्रित कर सकता है।

जानकारों का कहना है कि यह पहला मौका है जब एक दलित नेता के हाथ में माओवादी संगठन का कमान आया है। हालांकि इस बात की चर्चा सरकारी खुफिया तंत्र में भी है। जानकारों का कहना है कि तिरुपति बेहद समझदार माओवादी नेता हैं। इनके पास केवल सैन और गुरिल्ला लड़ाई का ही अनुभव नहीं है अपितु राजनीतिक गठजोड़ में भी ये माहिर हैं।

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