अशोक कुमार झा
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह स्पष्ट हुआ कि भाजपा को केवल 240 सीटें मिलेंगी। उस समय पीएम मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह और नड्डा ने विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया कि हम विपक्ष में बैठेंगे और गठबंधन के साथियों को फोन कर सूचित किया गया कि आप स्वतंत्र हैं अपना निर्णय लेने के लिए। इंडी अलायंस को शासन करना चाहिए। सबसे पहले चिराग पासवान और शिंदे ने कहा कि हम आपके फैसले में शामिल हैं और हम भी विपक्ष में बैठने के लिए तैयार हैं। ध्यान दें कि मोदी पार्टी कार्यालय में दोपहर चार बजे आने वाले थे लेकिन वे देर शाम आए, इसका कारण यही था।
दिल्ली के सत्ता के गलियारों में घटने वाली यह घटना बेहद नाटकीय और रोमांचक है जो एक आम आदमी की समझ से परे है पर इसे जानना भी जरूरी है। मोदी ने दोपहर में नायडू और नीतीश को फोन किया था ताकि उन्हें यह बता सकें कि आप अपना देख लो, हमें कोई आपत्ति नहीं है। मोदी के इस फैसले को सुनकर दोनों हक्के-बक्के रह गए। दोनों ही ठंडे पड़ गए क्योंकि उन्हें इंडी दलों की स्थिति का पता था। मोदी के इस निर्णय की खबर इंडी दलों को भी पहुंचाई गई।
खडगे, जयराम रमेश को तो झटका ही लगा क्योंकि वे मानसिक रूप से इस स्थिति का सामना करने के लिए तैयार नहीं थे। फिर भी उन्होंने यह खबर बाहर न आने देते हुए केवल शरद पवार को नीतीश और नायडू से बात करने के लिए कहा। उनकी विनती पर पवार ने नीतीश को फोन किया।
नीतीश ने शरद पवार से पूछा कि आपको कैसे पता चला कि मोदी विपक्ष में बैठने को तैयार हो गए हैं? शरद पवार ने नीतीश से कहा कि मुझे यह नहीं पता है। मुझे केवल आपके संपर्क में रहने के लिए कहा गया है। तब नीतीश जी ने शरद पवार को सब कुछ बताया, और यह भी पूछा कि सभी के खाते में 8500 रुपये देने होंगे और संपत्ति का वितरण पिछड़े वर्ग के लोगों को करना होगा, यह दो बड़े वादे कांग्रेस ने लोगों से किए हैं। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि प्रधानमंत्री कौन होगा?
यह सुनकर पवार को समझ आया कि उन्हें अंधेरे में रखा गया है। उन्होंने सबसे पहले अखिलेश यादव को फोन किया और बताया कि भाई, ऐसा हुआ है और कांग्रेस हमें अंधेरे में रखकर कुछ साजिश कर रही है। इतने पर पवार ने खडगे को फोन करके नाराजगी जताई कि आपने मुझे क्यों नहीं बताया कि भाजपा विपक्ष में बैठने को तैयार है? खडगे ने पवार से कहा कि यह खबर उड़ते-उड़ते आई थी इसलिए नहीं बताया। पवार ने कहा कि पहले प्रधानमंत्री तय करें और फिर आगे बढ़ें। इसी बीच अखिलेश यादव ने भी खडगे को फोन करके कहा कि मुझसे पूछे बिना कुछ नहीं करना नहीं तो मैं अकेला अलग बैठ जाऊंगा। यह खबर इंडी गठबंधन में फैल गई जबकि नतीजे आ ही रहे थे, लेकिन हर जगह हड़कंप मच गया।
अब इंडी दलों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि प्रति व्यक्ति 8500 रुपये/माह और अमीर लोगों के पैसे लेकर उनका वितरण पिछड़े वर्ग में कैसे किया जाए क्योंकि कांग्रेस ने जल्द से जल्द पैसे देने का वादा देश के सभी लोगों से किया था।
ऐसे में पर्दे के पीछे जबरदस्त उठा-पटक चल रही थी। इंडी दलों को तो छोड़ें, नायडू और नीतीश कुमार को भी यह उम्मीद नहीं थी कि मोदी और शाह अचानक ऐसा फैसला ले लेंगे। फिर, नीतीश कुमार और चंद्रबाबू ने भाजपा के बड़े नेताओं से फोन पर संपर्क किया और उन्हें आश्वासन दिया कि हम भाजपा के साथ ही रहना चाहते हैं, मोदी को तुरंत सरकार बनानी चाहिए। क्योकि इस समय भाजपा के पास खुद की 240 सीटें थी जो पासवान, शिंदे सहित अन्य छोटे सहयोगियों को मिलाकर संख्या 264 हो जाती थी। ऐसे में इतना मजबूत विपक्ष होते हुए इंडी गठबंधन के साथ गठबंधन करके सरकार बनाना उन्हें सुरक्षित नहीं लग रहा था । इसके साथ ही सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि मोदी और शाह विपक्ष में बैठकर कोई भजन नहीं गाने वाले थे, यह भी निश्चित था।
इधर मोदी और शाह को जयंत चौधरी के माध्यम से इंडी गठबंधन के भीतर के गड़बड़ी का भी पता चल ही गया था। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में मुस्लिम वर्ग में यह अफवाह भी फैलने लगी थी कि कांग्रेस पार्टी की अब सरकार बन गई है और सभी के बैंक खाते में जल्द 8500 रुपये मिलने शुरू हो जाएंगे। इस वजह से बंगलोर और लखनऊ में बैंकों में मुस्लिम महिलाओं की लंबी कतारें लगनी शुरू हो गई थीं।
अब इंडी गठबंधन के नेताओं के बीच यह सवाल खड़ा हो गया था कि अगर हम सरकार बनाते हैं, तो हमें वादे के अनुसार तुरंत 100000 रुपये प्रति वर्ष देने होंगे, भले ही हम समान संपत्ति के वितरण को कुछ समय बाद करने का वादा कर सकते हैं लेकिन यह 8500 रुपये/प्रति माह कैसे देंगे? इस तरह प्रधानमंत्री बनना मतलब पूरी तरह से सूली पर चढ़ने जैसा हो गया था।
क्योंकि महिलाओं की आधी जनसंख्या को ही मानें तो प्रति महिला एक लाख रुपये के हिसाब से साठ लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष हो जाते थे। इधर यह पैसे लेने के लिये कुछ लोग बैंकों में आना भी शुरू कर चुके थे। धीरे धीरे यह हवा फैलती जा रही थी कि बैंक जाओ और अपने पैसे ले लो। इन सारी स्थितियों को देखते हुए आखिर इस पर यह समाधान निकला गया कि फिर ऐसा करें कि नीतीश और नायडू हमें, मतलब इंडी दलों को समर्थन दें जिसमें कांग्रेस भी बाहरी समर्थन दिखाएगी और सरकार में शामिल नहीं होगी जिससे ये पैसे देने और संपत्ति के समान वितरण करने का सवाल ही नहीं उठेगा। कांग्रेस बता सकेगी कि हमारी सरकार नहीं है, हमारी बात नहीं मानी जाती, इसलिए हम सरकार में शामिल नहीं हुए। इससे कांग्रेस फिर से अपनी जनता के बीच अच्छी छवि बनाए रख सकेगी। कांग्रेस एक बार फिर चित भी मेरी पट भी मेरी का खेल खेलना चाह रही थी।
परंतु इस पर नीतीश और नायडू ने साफ कह दिया कि कांग्रेस का बाहरी समर्थन देने का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। उन्होंने ऐसे ही चरण सिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा, गुजराल को बाहरी समर्थन दिया था और फिर अचानक वापस ले लिया था और इन सभी की सरकारें कुछ ही दिनों में गिर गई थीं। इन दोनों ने साफ कह दिया कि हम आपके साथ नहीं आएंगे और वहां इतनी मजबूत विपक्ष होने पर मोदीजी कभी शांत से नहीं बैठेंगे।
इतना ही नहीं, उसके बाद बिहार में भी भाजपा अपना समर्थन वापस लेगी। फिर बिहार में तेजस्वी का मुख्यमंत्री पद का दावा पहले से ही था, जिससे नीतीश कुमार के सामने इधर कुआं तो उधर खाई जैसी स्थिति हो गई थी। चुनाव के नतीजे आने के दौरान इस तरह तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम पर्दे के पीछे से कभी बनता तो कभी बिगड़ता नजर आ रहा था। शायद इसी वजह से नीतीश कुमार और नायडू खुद व खुद ठंडे पड़ गए थे और उन्होंने मोदी और शाह से सरकार बनाने का अनुरोध किया और अपना समर्थन देने का आश्वासन दिया।
यह भी सच है कि टीम मोदी ने जानबूझकर यह सब नाटक किया था क्योंकि उन्हें एक तरफ इंडी दलों और उसके सभी हितधारकों को दिखाना था कि 8500 रुपये प्रति माह और संपत्ति का समान वितरण का उनका वादा कितना फर्जी है। साथ ही, यह दिखाना था कि यह आने वाले इंडी गठबंधन सरकार के लिए कैसे खुद व खुद गले की फांस बन गई है। इसके अलावा एनडीए के दो प्रमुख घटक दल नीतीश और नायडू की बार्गेनिंग पॉवर को भी उसे कम करनी थी, इसलिए उसने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाने का यह नाटक किया था जिसका एक उद्देश्य नीतीश और नायडू का दिमाग भी ठिकाने पर लाना था, जो सफल रहा। फिर अमित शाह ने दूसरा बम फेंका कि सीसीएस यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी पूरी तरह भाजपा की होगी, जिसका मतलब गृह, वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय हमारे पास रहेंगे। अब मरता क्या न करता बाली स्थिति इन दोनों की हो चुकी थी । ऐसे में इन दोनों के पास सहमति देने के सिवा और कोई चारा ही नहीं बचा था ।
उसके बाद रात साढ़े सात बजे नरेंद्र मोदी भाजपा कार्यालय पहुंचे और उन्होंने सरकार बनाने का ऐलान किया। मोदी का भाषण कितना आत्मविश्वास से भरा था, यह हम सबने देखा है। इसी तेज राजनीतिक घटनाक्रम की वजह से नीतीश कुमार बार-बार एनडीए की बैठक में यह कहते हुए नजर आये कि सरकार जल्दी बनाओ और 9 जून की बजाय 8 जून को शपथ लो और हमारा टेंशन दूर करो।
इन सारे घटनाक्रम के बाद, शाम को इंडी गठबंधन की बैठक में यह निर्णय हुआ कि हम कोई फोड़-फोड़ न करें, नहीं तो हमें लोकक्षोभ का सामना करना पड़ेगा और बदनामी होगी और फिर जनता हम पर दुबारा कभी विश्वास नहीं करेगी। खासकर राहुल गांधी की खटाखट खटाखट 8500 रुपये वाली घोषणा उसके लिये बड़ी विपत्ति बन गई थी । इसलिए खडगे ने अंत में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि हम सही समय आने पर भाजपा सरकार को हराएंगे और हम अभी कोई सरकार नहीं बनाएंगे।
अब गठबंधन की सरकार होने के कारण आने वाले दिनों में इस सरकार की किस तरह की चुनौतियाँ होगी और उसका मुक़ाबला वह किस रूप में करेगी यह तो आने बाला समय ही बता पायेगा पर इतना तो तय है कि सरकार यह अटल और आडवाणीजी की भाजपा सरकार नहीं है और फिलहाल मोदी पूरी ताकत के साथ एक्शन के मूड में दिख रही हैं।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)