मिथिलेश कुमार सिंह
विश्व भर में कोरोना का संकट अभी कोहराम मचा ही रहा था कि एक अन्य वैश्विक संकट के रूप में इसराइल और फिलिस्तीन के बीच में युद्ध भड़क चुका है। जैसा कि हम सबको पता ही है कि विश्व भर की सर्वाधिक ज्वलंत समस्याओं में इसराइल और फिलिस्तीन संकट का नाम सबसे ऊपर की लिस्ट में है, जिनके बीच में कई दशकों से युद्ध चल रहा है। हमास द्वारा प्रशासित गाजा पट्टी के इलाके से राकेट दागे जाने के पश्चात इसराइली सेना ने गाजा पट्टी पर जबरदस्त बमबारी करके समूचे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
पश्चिमी देशों द्वारा आतंकवादी संगठन घोषित हो चुका हमास भला क्यों पीछे रहता और उसने भी कई हजार राकेट इसराइल पर दाग दिए। इसराइल में ढेर सारी लाशें गिर जातीं अगर उसके पास हमलावर राकेटों से रक्षा करने वाली आयरन डोम मिसाइल प्रणाली न होती। वैज्ञानिक रूप से इजराइल का यह बेहद सक्षम आविष्कार है और तकरीबन 90 परसेंट राकेट्स को यह हवा में ही रोक लेता है। ऐसे में इसराइली नागरिक एक हद तक हमास द्वारा फेंके गए राकेट से खुद को सुरक्षित जरूर महसूस करते हैं किंतु इसके बावजूद भी कई नागरिकों की न केवल जान गई है बल्कि कई घायल भी हुए हैं।
ऐसी स्थिति में विश्व के कई देशों ने इस मामले पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दी हैं। इस्लामिक देशों का संगठन ओआईसी भी इस मामले पर बैठक करके इजराइल के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित कर चुका है तो कई अन्य देश इसराइल के आत्मरक्षा के अधिकार का भी समर्थन कर रहे हैं।
इस बीच चीन की भी प्रतिक्रिया आयी जो काफी चर्चित रही है। अपेक्षा के अनुरूप चीन ने सीधे तौर पर अमेरिका को निशाने पर लिया और उसे फिलिस्तीन में नागरिकों की हत्या से मुंह मोड़ने का दोषी करार दिया है। जाहिर तौर पर मानवाधिकारों के प्रबल समर्थक के तौर पर अमेरिका जहां खुद को वैश्विक नेता घोषित करता है। वहीं चीन उसकी इस छवि पर प्रहार करने का मौका भला कैसे चूक जाता। वह भी तब जब चीन में उइगर मुसलमानों के दमन का चीन पर हमेशा इल्जाम लगता रहा है। बहरहाल, अमेरिका अपने कूटनीतिक चैनलों के जरिये कई प्रयास कर रहा है।
विश्व भर के तमाम देश किसी न किसी रूप में इस मामले पर प्रतिक्रिया दे रहे थे और भारत की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कुछ ज्यादा ही हो रही थी क्योंकि भारत अरब देशों के भी नजदीक है और इजराइल को भी अपना एक महत्वपूर्ण डिफेंस पार्टनर मानता है। ऐसी स्थिति में भारत के लिए किसी प्रकार की सीधी प्रतिक्रिया देना इतना सहज नहीं था किन्तु भारत ने जिस तरह से इस समूचे मामले पर प्रतिक्रिया दी है, वह बेहद सार्थक और उसकी छवि के अनुरूप है। भारत ने इस मामले में साफ कहा है कि वह हिंसा का विरोध करता है और यथास्थिति में किसी भी बदलाव का समर्थन नहीं करता है।
भारत सदा से ही अहिंसक रहा है, तो उसने ठीक ही हिंसा की निंदा करते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की महत्वपूर्ण बैठक में यथास्थिति में एकतरफा बदलाव न करने की मजबूत अपील की है। यूनाइटेड नेशन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने साफ तौर पर कहा कि गाजा पट्टी में राकेट से हमले की कड़ी निंदा की एवं दोनों पक्षों से तनाव कम करने व शांति की अपील की है।
विश्व के तमाम शांति एवं न्यायप्रिय देशों की तरह भारत ने ठीक ही पूर्वी यरुशलम में शुरू हुई हिंसा पर चिंता जताई एवं फिलिस्तीन की जायज मांगों का समर्थन भी किया। चूंकि टू नेशन- थ्योरी ही दोनों देशों के बीच एकमात्रा हल है, अतः भारत का इसके लिए वचनबद्ध दिखलाना वैश्विक रणनीति में एक सार्थक कदम है। इसराइल एवं फिलिस्तीन के बीच वार्ता हो, अनुकूल वातावरण बने, इसके लिए भी भारत ने हर संभव प्रयास के समर्थन की बात साफगोई से की है।
यह भी उद््धृत करना उचित रहेगा कि तिरुमूर्ति ने हालिया संघर्ष से भारत को हुए नुकसान को भी सभी के सामने रखा। गौरतलब है कि राकेट हमले में भारत की एक महिला जो इसराइल में परिचारिका के तौर पर काम करती थीं, उनकी मृत्यु हो गयी है। भारत ने इस मामला में जिस तरह से स्पष्ट रूख दिखलाया है, अगर उतनी ही न्यायप्रियता चीन और अमेरिका जैसे देशों में होती तो शायद यह समस्या इतनी बढ़ती ही नहीं पर वैश्विक राजनीति में शह और मात का जैसे खेल चल रहा है। दोनों पक्षों के बीच बढ़ता संघर्ष इस बात का सटीक उदाहरण है कि कोई भी बड़ी महाशक्ति इस समस्या को औपचारिक ढंग से ही देख रही है बजाय इसे सुलझाने के।
ऐतिहासिक रूप से यथास्थिति बनाए रखना ही समय की मांग है और दोनों पक्षों में बातचीत अविश्वास को कम कर सकती है। भारत ने किसी का पक्ष नहीं ले कर न्याय की जो बात की है, इससे उसकी छवि निखर के ही सामने आएगी। चूंकि अभी के हाल में कई देश किसी न किसी गुट में खड़े हैं। ऐसी स्थिति में जब हर कोई गुटबाजी पर उतारू हो गया हो, तब न्याय की उम्मीद भला किस प्रकार की जा सकती है।
किंतु भारत जैसे देश ने क्लियर स्टैंड लेकर कई लोगों को हैरान भी किया है क्योंकि भारत में भाजपा की सरकार है और उसे अपेक्षाकृत इसराइल का करीबी भी माना जाता है। इसराइली पीएम नेतन्याहू के साथ भारतीय प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी की कई तस्वीरें, वह भी मुस्कुराती हुई, इन्टरनेट पर आपको सहजता से मिल जाएगी परंतु जाहिर तौर पर राष्ट्र प्रमुखों के व्यक्तिगत रिलेशन, उनकी पर्सनल केमिस्ट्री के बावजूद, एक हद तक ही दो देशों के म्यूचुअल रिलेशन प्रभावित होते हैं और इन्हें कहीं न कहीं, न्याय के सिद्धांत पर चलना ही पड़ता है। भारत ने भी यही किया है जो एक सार्थक कदम कहा जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस हिंसा को लेकर कई सारी आलोचनाएं सामने आई हैं और कई सारे देश मध्यस्थता की कोशिश भी कर रहे हैं। खबरों की मानी जाए तो अमेरिका इस प्रक्रिया में जोर शोर से लगा हुआ है तो मिश्र भी इस बीच मध्यस्थता कर के बीच का रास्ता निकालने की कोशिश में लगा हुआ है।
हालाँकि इसराइली पीएम नेतन्याहू ने स्पष्ट कर दिया है कि उनका देश आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करेगा और अपने इसी स्टैंड पर चलते हुए नेतन्याहू हमास को अधिक से अधिक नुकसान पहुँचाने की रणनीति पर चल रहे हैं। भारत के रुख से बेशक कई लोगों को आश्चर्य हुआ हो किंतु वक्त की डिमांड देखकर इसे अति उत्तम निर्णय कहा जाएगा। वैसे भी भारत में मोदी सरकार कोरोना के मिसमैनेजमेंट को लेकर भारी दबाव का सामना कर रही है। उससे पहले सीएए, एनआरसी को लेकर भी मोदी सरकार कहीं न कहीं एक हद तक आलोचना के घेरे में आयी थी। यहाँ तक कि भारत के सबसे करीबी देशों में से एक बांग्लादेश तक ने इस मुद्दे पर तेवर दिखलाए थे। ऐसे में भारत के इस स्टैंड को वाजिब कहा जाना चाहिए।
(अदिति)