गौतम चौधरी
विगत दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बिना किसी वैज्ञानिक आधार के एक बयान जारी कर कहा कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर सिंगापुर के रास्ते भारत में आ सकती है। केजरीवाल ने अपने एक ट्वीट में केन्द्र सरकार को आगह भी किया और कहा कि सिंगापुर की सारी अड़ाने तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिए जाएं। लगे हाथ केजरीवाल साहब ने उस वायरस वेरिएंट का भी नाम बताया जो सिंगापुर में मिला है। अरविन्द केजरीवाल के बयान को भारतीय मीडिया ने हाथोहाथ लिया और देखते ही देखते यह खबर वायरल होने लगी। अरविन्द केजरीवाल का बयान जैसे ही वायरल हुआ, सिंगापुर सरकार सक्रिय हो गयी और इस खबर का खंडन कर दिया। यही नहीं केजरीवाल के बयान पर सिंगापुर के विदेश मंत्रालय ने प्रभावशाली संज्ञान लेते हुए भारतीय उच्चायुक्त को बुलाया और अपनी शिकायत दर्ज करा दी। बताया जाता है कि सिंगापुर के इतिहास में ऐसा कई वर्षों के बाद हुआ है।
इस मामले में सिंगापुर के विदेश मंत्री विवियन बालकृष्णन ने भारतीय नेताओं को नसीहत देते हुए कहा कि वे इस प्रकार के बयानों से बचें और तथ्यों से जुड़े रहे। उन्होंने कहा कि सिंगापुर वैरिएंट जैसी कोई चीज नहीं है। सिंगापुर सरकार की ओर से आए इस बयान के बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी केजरीवाल को फटकार लगाई। उन्होंने ट्वीट कर कहा, सिंगापुर और भारत कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में मजबूत साथी हैं। सिंगापुर ने ऑक्सीजन सप्लायर और ढुलाई के हब के तौर पर किरदार निभाया है। उनकी तरफ से मदद के लिए मिलिट्री एयरक्राफ्ट लगाना हमें बेहतरीन रिश्तों पर बोलने में मदद करता है। इसके बाद सिंगापुर सरकार नरम पड़ी है।
कहने का मतलब यह है कि बिना किसी वैज्ञानिक जानकारी के बयान देना कितना खतरनाक हो सकता है, इसका जीता-जागता उदाहरण दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं। बता दें कि सिंगापुर भारत का बेहद करीबी दोस्तों में से एक है। यही नहीं सिंगापुर की कुल जनसंख्या में भारतीय मूल के लोगों की जनसंख्या लगभग 10 प्रतिशत के करीब है। सिंगापुर का तीसरा सबसे बड़ा समूह भारतीयों का है। हमारे नेता बयान देने के वक्त केवल आपने निजी एवं तात्कालिक राजनीतिक स्वार्थों को ध्यान में रखते हैं। यह भूल जाते हैं कि इसका परिणाम क्या होगा? सिंगापुर में रहने वाले मेरे एक पेशेवर संबंधी ने दूरभाष पर बताया कि जब से भारतीय नेता द्वारा इस प्रकार का बयान आया है सिंगापुर में भारतीय समूह बैकफुट पर आ गया है। कई प्रकार की नस्लीय टिप्पणी सुनने को मिल रही है।
पहले से ही सिंगापुर में इस बात को लेकर आक्रोश है कि भारतीय पेशेवर हमारी नौकरियां छीन ले जा रहे हैं। हमें यह नहीं भूलनी चाहिए कि सिंगापुर पर चीन की गहरी नजर है। हमारा सबसे बड़ा स्पर्धी राष्ट्र चीन हमें सभी दृष्टि से परेशान करने और चतुर्दिक घेरेबंदी में लगा है। सिंगापुर में बड़ी संख्या में चीनी मूल के लोग भी निवास करते हैं। सिंगापुर से भारतीय पेशेवरों को खदेरना चीनी रणनीति का हिस्सा रहा है। ऐसे में हमारे राजनेता तथ्यहीन बयान देकर जाने-अनजाने अप्रत्यक्ष रूप से चीनी कूटनीतिक विस्तारवाद का सहयोग कर रहे हैं। इसपर इन नेताओं को सोचना चाहिए।
रहा-सहा काम हमारी मीडिया कर दे रही है। हमारे समाचार माध्यमों को तीसरी लहर लाने की इतनी जल्दी है कि वे इस प्रकार की खबरों को देखते ही देखते फ्रंट पेज की सुर्खियां बनाने लगते हैं। दूरदर्शन वाहिनियों का तो कुछ कहना ही नहीं है। बिना तथ्यों के पड़ताल के खबरें उरेल देते हैं। खबरों को पड़ोंसने में वे न तो समाज के हितों की चिंता करते हैं, न ही राष्ट्रीय हित की परवाह करते हैं। यहां तक की मीडिया की नैतिक जिम्मबारी तक की तीलांजलि दे देते हैं।
यह खतरनाक संकेत है। कोरोना की दूसरी लहर में कोरोना महामारी के कारण कम और समाचार माध्यमों के द्वारा फैलाए गए भ्रम एवं डर के कारण ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई है। मीडिया की अनड़गल रिपोर्टिंग ने ऐसा माहौल बनाया कि हर एक व्यक्ति दूसरे को संदिग्ध दृष्टि से देखने लगा है। इस प्रकार का माहौल आखिर किस लिए बनाया गया, समझ से पड़े है लेकिन एक बात तो समझ में आ रही है कि अखबार के आधे पन्ने कोरोना को समर्पित करना बिना आर्थिक हितों का ध्यान रखे संभव नहीं है। इसका खामियाजा मीडिया को भी उठाना पड़ा है और इस डर ने मीडिया के भी कई यशस्वी पत्रकारों को हमसे छीन लिया।
कुल मिलाकर हमें कुछ भी बोलने या लिखने से पहले देश व समाज का ध्यान जरूर रखना चाहिए। दूसरे लहर के पूरे कार्यकाल में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की भूमिका बेहद प्रभावशाली कही जा सकती है। विरोधी नेताओं के आरोपों को यदि दरकिनार कर दिया जाए तो कोरोना काल में राहुल एक जिम्मेदार नेता के रूप में उभर कर सामने आए है। राहुल गांधी से केवल विपक्ष को ही नहीं सत्ता पक्ष के नेताओं को भी सीख लेनी चाहिए।