गौतम चौधरी
कर्नाटक से उठा हिजाब कॉन्ट्रोवर्सी देखते ही देखते अखिल भारतीय रूप ग्रहण कर लिया। इसे वैश्विक बनाने की भी कोशिश की गयी है। अभी हाल ही में मुस्लिम देशों के एक प्रभावशाली संगठन ने भारत में हो रहे हिन्दू-मुस्लिम विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। मसलन, इसे वैश्विक रूप देने की भी कोशिश जारी है। यही नहीं चंद मौकापरस्थों और राजनीतिक अवसरवादियों ने कर्नाटक के समाज को दो धड़ों में बंट दिया है। एक पक्ष हिजाब की मुखालफत करता है। वहीं दूसरा खेमा हिजाब का पक्षधर है, उनके साथ अपने को सेक्युलर कहने वाले भी खड़े हो गए हैं। साफ तौर पर कर्नाटक, समाज हिंदू बनाम मुस्लिम में विभाजित हो चुका है। यह हिजाब का विवाद यही नहीं रुक रहा है। अब गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं और ऐसा बहुत कुछ किया जा रहा है जो न केवल एक देश के रूप में भारत की अखंडता और एकता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि सीधे सीधे एक एजेंडे के तहत बदले की राजनीति में परिवर्तित होता जा रहा है।
कर्नाटक पुलिस ने कलबुर्गी जिले के अलंद में बीते एक मार्च को हुए सांप्रदायिक तनाव के बाद 167 लोगों को गिरफ्तार किया है। कर्नाटक में तनाव का ताजा केंद्र कलबुर्गी है, जहां विवाद के केन्द्र में शिवलिंग और दरगाह है। 2022 के मार्च में कर्नाटक के कलबुर्गी में सांप्रदायिक तनाव को 2021 के सांप्रदायिक तनाव से जोड़ा जा रहा है। बता दें कि कलबुर्गी के अलंद में लाडले मशक साहब की एक दरगाह है। उसी परिसर में राघव चैतन्य शिवलिंग भी है। बात नवंबर 2021 की है आरोप लगा था कि मुसलमानों ने शिवलिंग को अपवित्र कर दिया। कलबुर्गी के हिंदूवादी संगठन कथित अपवित्रता के चलते शिवलिंग को शुद्ध करने के लिए 1 मार्च 2022 को विशेष पूजा अर्चना करना चाहते थे। उसी दिन मुस्लिम संप्रदाय ने भी परिसर में मौजूद दरगाह पर शबाब-ए-बारात कार्यक्रम करने की तैयारी कर दी। महाशिवरात्रि का मौका था इसलिए बात आगे न बढ़े और किसी तरह का कोई बवाल न हो इसलिए पुलिस और जिला प्रशासन ने इलाके में 27 फरवरी से 3 मार्च तक धारा 144 लगाकर लोगों के एकसाथ जमा होने पर पाबंदी लगा दी।
सच पूछिए तो कलबुर्गी बेहद शांत क्षेत्र रहा है। इस क्षेत्र को साम्प्रदायिक सहिष्णुता के रूप में पेश किया जाता रहा है। आज यहां के मजार को विवादित बताया जा रहा है लेकिन यह मजार हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रहा है। आज से लगभग 600 साल पहले एक सूफी संत, हजरत शेख अलाउद्दीन अंसारी को एक देशमुख द्वारा कर्नाटक के कलौरगी जिले के अलंद में कुछ जगह उपलब्ध कराई गयी थी। साथ ही संरक्षण भी दिया गया था। सूफी संत यहीं रह गए और लोगों के बीच शांति एवं सद्भाव का प्रचार करने लगे। सूफी संत की ख्याति बढ़ने लगी और दूर-दूर से लोग यहां आने लगे। परिवार जिसने संत को संरक्षण दिया, बाद में वह भी उनका मुरीद हो गया। सूफी संत का कब्रिस्तान भी वहीं बना दिया गया। उनके कब्र पर सालाना कार्यक्रम होने लगे और उनकी लोकप्रियता और बढ़ती चली गयी। सूफी संत स्थानीय लोगों के बीच लाडले मशक के नाम से मशहूर हो गए। कई वर्षों बाद कब्र को दरगाह का रूप दे दिया गया, जहां हर धर्म के मानने वाले पहुंचने लगे। लाडले मशक दरगाह के अलावा, कलबुर्गी जिले में सूफी संत के दरगाहों की अच्छी संख्या है।
इन दरगाहों ने लंबे समय तक हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने में मदद की है। सूफीवाद अपनी शांतिपूर्ण शिक्षाओं के लिए जाना जाता है। सूफियों को शांति, प्रेम के राजदूत के रूप में देखा जाता है। इस्लाम में दया, सद्भाव, धैर्य, सहिष्णुता आदि जो देखने को मिलता है उसमें सूफियों की बड़ी भूमिका है। सूफियों ने हमेशा मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के प्रति समान रूप से नरम और कोमल व्यवहार का प्रदर्शन किया है। सुफियों की सबसे बड़ी खासियत कि वे सबसे उपर मानवता को महत्व देते हैं और सभी सूफियों के लिए माफी और पश्चाताप की संस्कृति को पेश करते हैं। अपने अनुयायियों को मानवता से प्यार करना सिखाते हैं। दूसरों को नुकसान पहुंचाने और आध्यात्मिक सभाओं के माध्यम से उग्रवाद, बुरे विचार, कृत्यों को हतोत्साहित करने की प्रेरणा देते हैं। भारत जैसे बहुसांस्कृतिक देश में, जिसने विभिन्न संस्कृतियों के सार तत्वों को अपने में समावेशित किया है, सूफियों ने इसे अपनी पहचान और परंपरा का अंग बना लिया।
कलबुर्गी के निवासियों को इतिहास से सीख लेनी चाहिए और समझना चाहिए कि साम्प्रदायिक दुराग्रह से सबसे ज्यादा नुकसान आम आदमी को होता है। जरा सोचिए, शांतिपूर्ण माहौल को सांप्रदायिक बनाने से किसे फायदा होगा? इससे सांप्रदायिक ताकतों की योजनाएं सफल होगी। शांति को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी न केवल सूफियों पर है, बल्कि नागरिक समाज पर भी है, जिसे संचार के आधुनिक उपकरणों का उपयोग करके सामूहिक पहल करनी है और लोगों को लामबंद करना है। हमारे समाज की व्यापक भलाई के लिए सभी हितधारकों को एक साथ लाने के लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। हम यदि इस प्रयास में विफल हुए तो हमारी दुर्गति अफगानिस्तान, म्यांमार, इराक और सीरिया जैसे होगी। इसलिए प्रेम और सदभाव से समस्या का समाधान करें। साम्प्रदायिक शक्तियों को हतोत्साहित करें। इसी भी सबका कल्याण है।