कलीमुल्ला खान
अभी हाल ही में रमजान का महीना बीता। ईमान वालों के लिए इस महीने की क्या अहमियत है, यह किसी से छुपी नहीं है। औरों की तो मैं नहीं जानता लेकिन हमारे लिए रमज़ान और ईद आध्यात्मिक प्रतिबद्धता, करुणा और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। जैसे-जैसे हम इन पवित्र अवसरों के महत्व पर गौर करते हैं, यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका सार न केवल व्यक्तिगत भक्ति है, अपितु यह शांति, सम्मान और भाईचारे की सामूहिक प्रदर्शन का उत्सव है। इस्लामिक चंद्र कैलेंडर का नौवां महीना रमजान का होता है। रमजान के महीने में रोजा रखने की परंपरा है। रोजा इस्लाम के पांच मुख्य कर्मकांडों में से एक है। इस्लामिक मान्यता के आधार पर रमज़ान का पालन करने में सुबह से सूर्यास्त तक उपवास करना, भोजन, पेय और सांसारिक सुखों से परहेज करना, साथ ही पूजा, दान और आत्म-चिंतन के कार्यों में संलग्न होना शामिल है।
रमजान, अपने व्यक्तिगत पहलुओं से परे, सामुदायिक भावना, सहानुभूति और दूसरों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है। रमज़ान के लोकाचार के केंद्र में पड़ोसी के अधिकारों का सम्मान करने की अवधारणा सन्निहित है। इस महीने मुसलमानों को न केवल प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अपने पड़ोसियों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए बाध्य हों। इसमें वे न तो पड़ोसियों की आस्था देखते हैं और न जाति, यही नहीं इस मौके पर एक सच्चा इमान वाला पड़ोसियों की आर्थिक स्थिति को भी नजरअंदाज कर उसे सहयोग करने की पूरी कोशिश करता है। इसमें देर रात की प्रार्थनाओं के दौरान मर्यादा बनाए रखना, पड़ोसियों को न्यूनतम व्यवधान सुनिश्चित करना और भोजन और प्रावधानों को साझा करने के माध्यम से दयालुता के कार्य करना शामिल है। इन सिद्धांतों को अपनाकर, व्यक्ति समावेशी समुदायों के निर्माण में योगदान करते हैं, जिससे आपसी सम्मान और समझ पैदा होती है।
इस मामले पैगंबर मोहम्मद से जुड़ी एक कथा का उल्लेख करना यहां बेहतर होगा। दअसल, साहब जहां रहते थे वहीं पास में एक गैर मजहब को मानने वाली बूढ़ी महिला निवास करती थी। वह पैगंबर को भली-भांति जानती थी लेकिन अपने आदत से लाचार थी। जब कभी मोहम्मद पैगंबर उसके घर के पास से गुजरते वह उनके उपर कचरा डाल दिया करती थी। खास कर जब वे नमाज पढ़ने मस्जिद जाते वह ऐसा जरूर करती थी। इतना कुछ होने के बाद भी मोहम्मद ने अपना धैर्य और संयम नहीं खोया और महिला के इस कृत्य को हंस कर टालते रहे। एक दिन वह मोहम्मद के उपर कचरा डालने नहीं आयी। मोहम्मद को इस बात की चिंती हुई और उन्होंने उस महिला से मिलने का फैसला किया और उसके घर पहुंच गए। पैगंबर की चिंता और दयालुता के भाव से वह महिला केवल आश्चर्यचकित ही नहीं हुई अपितु प्रभावित भी हो गयी। उस पल, उन्हें पैगंबर मुहम्मद के असली चरित्र का एहसास हुआ, जिन्होंने उनकी शत्रुता का जवाब करुणा और सद्भावना से दिया था। उसकी ईमानदारी और सहानुभूति से प्रभावित होकर, वह बूढी महिला बहुत प्रभावित हुई। जानकार बताते हैं कि बाद में उस महिला ने इस्लाम में अपनी आस्था व्यक्त की। यह घटना विपरीत परिस्थितियों में भी पैगंबर मुहम्मद के अनुकरणीय आचरण का एक प्रभावशाली उदाहरण है। पैगंबर साहब ने आक्रोश पालने या बदला लेने के बजाय, उक्त महिला से दयालुता और करुणा के साथ पेश आए। इसका परिणाम सकारात्मक निकला।
उनके कार्यों ने न केवल पड़ोसियों की धारणा को बदल दिया बल्कि विश्वास या पृष्ठभूमि में मतभेदों की परवाह किए बिना दूसरों के साथ सम्मान और सहानुभूति के साथ व्यवहार करने के महत्व को भी प्रदर्शित किया। अंततः, इस मुलाकात से पड़ोसी के रवैये में सकारात्मक बदलाव आया, क्योंकि वह पैगंबर मुहम्मद को अब सम्मान और प्रशंसा के साथ देखने लगे थे। यह दयालुता की परिवर्तनकारी शक्ति को उजागर करता है और विपरीत परिस्थितियों में भी करुणा और समझ के साथ दूसरों तक पहुंचने के महत्व को अभिव्यक्त करता है।
ईद-उल-फितर, रमज़ान के अंत का प्रतीक है और दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा बड़े उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाता है। हालांकि, इसका दूसरा पक्ष भी बेहद महत्वपूर्ण है। यह त्योहर उल्लास के बीच शांति, सद्भाव और भाईचारे के मूल्यों की भी अभिव्यक्ति है। ईद मनाने की विभिन्न शर्तों में से ये तमाम अनिवार्य रूप से शामिल हैं। सच पूछिए तो ईद सांस्कृतिक और धार्मिक मतभेदों से परे, पड़ोसियों और समुदायों के साथ संबंधों को मजबूत करने का एक अवसर है। दयालुता, उदारता और करुणा के कार्यों के माध्यम से, व्यक्ति समावेशिता और पारस्परिक सम्मान के माहौल को बढ़ावा देने एक अवसर है। इसमें सामुदायिक इफ्तार और ईद समारोहों का आयोजन शामिल है, जहां विविध पृष्ठभूमि के व्यक्ति न केवल एक साथ भोजन करते हैं अपितु एक-दूसरे के साथ खाद्य पदार्थों को साझा भी करते हैं। रमनाज और ईद हमें दयालुता के कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है। पड़ोसियों से मिलना, घर का बना खाना साझा करना, या कठिनाई का सामना कर रहे लोगों को सहायता प्रदान करना, ईदा का संदेश है। ईद और रमजान के अवसर पर हमें इस मूल चिंतन को आत्मसात करना चाहिए। हमें सदा यह याद रहे इस्लाम न तो ताकत से फैला है और न ही धन के जोर पर। इस्लाम समानता और भाईचारे के बल पर आज दुनिया का सबसे बड़ी जनसंख्या के बीच लोकप्रिय है।
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