मुहम्मद साहब एक कौम के नहीं पूरी मानवता के

मुहम्मद साहब एक कौम के नहीं पूरी मानवता के

अभी ‘‘आई लव मुहम्मद’’ वाले पोस्टर पर विवाद छिड़ा हुआ है। समाचार माध्यम का एक तबता इस मामले को खूब तूल दे रहा है। हालांकि संजीदगी से यदि देखें तो इस पोस्टर में कुछ भी नकारात्मक नहीं है। हर व्यक्ति को अपनी-अपनी आस्था प्रगट करने और उसे प्रचारित करने का अधिकार है। भारत पाकिस्तान या किसी अन्य धार्मिक देशों की तुलना में न केवल लोकतांत्रिक है अपितु यहां का संविधान धर्मनिर्पेक्ष भावना से ओतप्रोत है लेकिन समस्या तब खड़ी होती है जब आस्था राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयुक्त होने लगे। यह किसी भी तरफ से हो सकता है। सच पूछिए जो इस मामले में पहली गलती उन लोगों ने की है जो इस प्रकार के पोस्टर लगाए। फिर दूसरी गलती दूसरे पक्ष के लोग करने लगे। इसलिए इस पोस्टर को उकसावे का पोस्टर भी कहा जा रहा है। मामला संवेदनशील है और इसे तसल्ली से जानने की जरूरत है।

मामले की शुरुआत 4 सितम्बर को रावतपुर, कानपुर से हुई। इसमें मुसलमानों ने ‘‘आई लव मुहम्मद’’ का परचम बुलंद किया। यह एक नई और मैं थोड़ी अटपटी अभिव्यक्ति थी, क्योंकि परम्परागत रूप से मुसलमान लोग हज़रत मोहम्मद की अक़ीदत में सल्ललल्लाहो अलैहि वसल्लम, रसूलुल्लाह, नबी-उल-इस्लाम, मुस्तफ़ा सरीखे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसा पहली बार देखने को मिला इसलिए इसे अटपटा कहा जा सकता है। बहरहाल, अगर नए चलन और नए दौर के मुसलमान अपने नबी के लिए प्रेम का इज़हार करना चाहते हैं तो इसमें भला किसी को क्यों आपत्ति होगी? बेशक़, उन्हें रसूलुल्लाह की मोहब्बत में तसल्ली से डूबने का पूरा हक़ है।

कानपुर में नबी के प्रेम वाला बैनर लगाने पर दूसरे धर्म के कुछ संगठनों ने आपत्ति की थी, जिसे जायज नहीं ठहराया जा सकता है। इसके बाद उस बैनर का स्थान बदला गया। इस मामले में स्थानीय प्रशासन का कहना है कि जिस स्थान पर प्रेम वाला बैनर लगाया गया था वहां इसकी इजाजत नहीं दी गयी थी। अगले दिन बारावफ़ात के जुलूस में कथित रूप से दो वाहनों पर सवार मुसलमान नौजवानों ने दूसरे धर्म के पोस्टरों को फाड़ दिया। इसको लेकर कुल 24 लोगों पर एफ़आईआर दर्ज की गई, 9 पर नामजद और 15 को बेनामी मुदालय बनाया गया। लेकिन यह एफ़आईआर पैग़म्बर के ​लिए मोहब्बत के इज़हार पर नहीं थी। ये धारा 196 और 299 में दर्ज की गई थीं, जो साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने और दूसरों की आस्था को आहत करने के बारे में हैं। इलज़ाम यह भी था कि बारावफ़ात पर बिना अनुमति के जुलूस का रास्ता बदला गया।

बस इतनी-सी बात है। मीडिया का एक तबका इसे तूल दे रहा है। इस मामले को इस तरह उभारने की कोशिश की जा रही है कि इस देश में इसके अलावे और कोई समस्या ही नहीं है। इसके बहाने कुछ स्वार्थी तत्व मुसलमानों के भीतर यह नैरेटिव उभरने की कोशिश कर रहे हैं कि हिन्दुस्तान में उन्हें अपने नबी के लिए प्यार का इज़हार करने से भी रोका जा रहा है और इसके लिए मुस्लिम नौजवानों पर एफ़आईआर दर्ज की जा रही हैं। इस दलील को किसी कीमत पर सही नहीं ठहराया जा सकता है।

इसके बाद बरेली में जुमे की नमाज़ के बाद यह मामला भड़क गया, जब मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान के लापरवाही भरे आह्वान पर जमा हुई मुसलमानों की भीड़ उत्तेजित हो गई और हिंसक प्रदर्शन पर उतारू हो गए। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। जितने भी ज़िम्मेदार मुसलमान हैं, उन्होंने एक सुर में इसकी निंदा की है। निंदा करनी भी चाहिए क्योंकि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में विरोध प्रदर्शन करने का हिंसक तरीका बिल्कुल नाजायज है। इसके बाद हमारे यहां विरोध करने और अपने लिए न्याय मांगने के और कई साधन है।

फ़ेसबुक सहित सोशल मंचों पर कई समझदान मुस्लिम नेताओं ने नेक सलाह देते हुए कहा कि ‘‘हज़रत मोहम्मद साहब’’ के नाम पर हुड़दंग की क़तई इजाजत नहीं दी जा सकती है। इससे तो बेहतर होगा कि नबी की सुन्नतों को अपनाएँ। एक छोटी-सी बात को हवा दी सदर साहब ने और क़ौम के जज़्बाती लोग सड़कों पर आ गए। अब गिरफ्तारियाँ होंगी, माँ-बाप परेशान होंगे, मुक़दमे चलेंगे, जेल होगी और कॅरियर खराब होगा सो अलग।

कुछ दिन बाद सब ठंडा हो जाएगा, लेकिन घर वाले मुक़दमा लड़ते-लड़ते परेशान होंगे। जनाब बरेलवी फिरके से आलिम मुफ्ती तुफैल कादरी साहब फरमाते हैं कि हम अपने नबी के लिए मोहब्बत का इज़हार कर रहे हैं तो हमारा तरीक़ा भी अच्छा और बेहतर होना चाहिए। हज़रत मोहम्मद से अपनी मोहब्बत के इज़हार में भी एक एहतराम और एक शान होनी चाहिए। सड़कों पर इस तरह से उतरना नाजायज है। इस प्रकार के बारदात को हमारे पवित्र ग्रंथ में फितना कहा गया है।

बरेली वाले दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहुत ही कड़े शब्दों में इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कहना ना होगा कि बरेली जैसे वाक़ये भारतीय जनता पार्टी के लिए मुँहमाँगी मुराद जैसे है। इससे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और तेज होगा। चतुर्दिक संकट में उलझी भाजपा को संजीवनी मिलेगी। सच यही है कि जब भी मुसलमान सड़कों पर उतरकर बलवा करता है, भाजपा एक और चुनाव जीतने की ओर क़दम बढ़ा देती है। बिहार-बंगाल सामने हैं, फिर उत्तर प्रदेश की बारी आने वाली है। वैसे में समझदारीभरा क़दम क्या होना चाहिए, ये मुसलमान ख़ुद सोच सकते हैं।

मुसलमानों के दिल में हज़रत मोहम्मद के लिए जो प्यार है, उसको भी समझने की संवेदनशील कोशिश की जानी चाहिए। उनके पास सैकड़ों देवी-देवता नहीं हैं, ले-देकर एक पैग़म्बर ही हैं। पवित्र क़ुरआन हज़रत मोहम्मद के ज़रिये आई, सुन्नतें उनके ज़​रिये प्रचारित हुआ। गैर मुसलमानों को यह समझना होगा। यदि इसी प्रकार छोटी-मोटी बातों पर उलझते रहे तो दुनिया की चुनौतियों का सामना करने में हम पिछड़ते चले जाएंगे। इसलिए दूसरे पक्ष को भी सावधान रहना होगा। यदि इसी मामले में हम ‘‘आई लव मुहम्मद’’ का जबाव मुहम्मद हम सब के लिए प्रिय हैं से देते तो कितना बढ़िया होता। वैसे भी मुहम्मद साहब पूरी मानवता के हैं, वे केवल एक खास के लिए नहीं आम के लिए धरती पर भेजे गए थे।

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