गौतम चौधरी
लगभग एक वर्ष पहले इस्लामिक चरमपंथी संगठन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। केन्द्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित होने से पहले पीएफआई की हिंसक गतिविधि को लेकर कई प्रदेश सरकारों ने भी उसे प्रतिबंधित कर दिया था। पीएफआई पर प्रतिबंध के एक वर्ष से अधिक होने जा रहा है। इस दौरान यदि कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो इस प्रतिबंध का बेहद सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। यदि सुरक्षा एजेंसियों की मानें तो देश की सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव पर इसके सकारात्मक प्रभाव पड़े हैं। यही कारण है कि सरकार के इस निर्णय की सराहना भी हो रही है।
पीएफआई पर प्रतिबंध के बाद, हिंसक हमलों में काफी कम आने की रिपोर्ट आई हैं। पीएफआई पर प्रतिबंध के बाद भारतीय मुसलमानों की छवि में भी गुणात्मक सुधार देखने को मिल रहा है। यह स्वीकार करना आवश्यक है कि पीएफआई की गतिविधियां देश में मुसलमानों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रही थीं, क्योंकि संगठन मुसलमानों का सकारात्मक प्रतिनिधित्व नहीं करता था। इस बात पर जोर देना जरूरी है कि मुस्लिम युवाओं को ऐसे संगठनों से दूर रहना चाहिए जो उन्हें खतरनाक असहिष्णु रास्ते पर ले जा सकते हैं।
यहां प्रतिबंध के सकारात्मक परिणामों पर विचार करने से पहले, उस पृष्ठभूमि को समझना महत्वपूर्ण है जिसके खिलाफ सरकार के द्वारा यह महत्वपूर्ण कार्रवाई की गयी। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) कट्टरपंथी और विशिष्टतावादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए कुख्यात रहा है, जो भारत में बहुसंख्यक मुसलमानों की सोच के खिलाफ है। उनके कार्यों के गंभीर परिणाम हुए, अक्सर हिंसक झड़पें हुईं और ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे भारतीय मुसलमानों की छवि को खराब किया। पीएफआई की गतिविधियों का सबसे हानिकारक पहलू देश में मुसलमानों की धारणा पर इसका नकारात्मक प्रभाव था। हिंसा और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में उनके शामिल होने से न केवल सांप्रदायिक सद्भाव को खतरा पैदा हुआ, बल्कि भारत में पूरे मुस्लिम समुदाय पर भी इसका असर हुआ। यह स्पष्ट था कि पीएफआई भारतीय मुसलमानों के विशाल बहुमत के मूल्यों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, जो शांति, एकता और प्रगति चाहते हैं। भारत के मुसलमान अपने देश से प्रेम करते हैं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि असहिष्णु विचार किसी कीमत पर उन्हें प्रगति और बढ़िया जीवन प्रदान नहीं करेगा। पीएफआई लगातार भारतीय मुसलमानों को और खासकर युवकों को विशिष्टतावाद की ओर ढ़केर रहा था। इसके कारण समाज में संघर्ष का माहौल बनने लगा था। इस संगठन पर प्रतिबंध लगने के कारण इस दिशा में कई गतिविधि कमजोर पड़ गयी है।
पीएफआई पर प्रतिबंध लागू होने के बाद से हिंसक घटनाओं और झड़पों में उल्लेखनीय गिरावट आई है। इसने उन क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा के माहौल में योगदान दिया है, जहां पीएफआई की गतिविधियां प्रचलित थीं। प्रतिबंध के लिए सरकार का तर्क, संगठन को देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिए हानिकारक बताया गया और पीएफआई को सिमी, जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश और इस्लामिक राज्य इराक और सीरिया जैसे आतंकवादी समूहों से जोड़ा गया। खुफिया संस्थाओं के द्वारा जांच के दौरान सामने आए सबूतों से इन आरोपों की पुस्टि हुई। इसके अलावा, प्रतिबंध को पीएफआई के आठ सहयोगी संगठनों तक बढ़ा दिया गया है, जिनमें राष्ट्रीय महिला मोर्चा (एनडब्ल्यूएफ) और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) शामिल हैं।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और अन्य जांच एजेंसियों द्वारा ऑपरेशन ऑक्टोपस में किए गए व्यापक अभियानों और उसके बाद की छापेमारी के परिणामस्वरूप कई पीएफआई नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है, जिससे समूह की गतिविधियों के किसी भी संभावित पुनरुत्थान को रोका जा सके। इसके अलावा, पीएफआई पर प्रतिबंध ने भारतीय मुसलमानों को एक ऐसे संगठन से दूर कर दिया जो न तो इस्लाम की मुकम्मल मान्यताओं को तरजीह दे रहा था और न ही देश के हित में काम कर रहा था।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले से भारत की शांति, सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव को महत्वपूर्ण लाभ मिला है। प्रतिबंध के बाद हिंसक घटनाओं और झड़पों में गिरावट इस कदम की बुद्धिमत्ता का प्रमाण है। यह मुस्लिम युवाओं को जो संदेश देता है वह भी उतना ही महत्वपूर्ण है, उन्हें ऐसे संगठनों में शामिल होने से बचना चाहिए जो उनके समुदाय के सच्चे मूल्यों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। याद रहे यह एकता, शांति और प्रगति का समय है और पीएफआई पर प्रतिबंध सही दिशा में उठाया गया कदम है। एक विविध और बहुलवादी राष्ट्र के रूप में, भारत तभी फलता-फूलता रहेगा, जब इसके सभी नागरिक सामूहिक भलाई के लिए मिलकर काम करेंगे। देश के सभी युवाओं की तरह मुस्लिम युवाओं की भी एक सामंजस्यपूर्ण और समृद्ध भारत को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। इसके लिए हम सब को एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। यदि ऐसा करते रहे तो हम केवल आसन्न चुनौतियों का न केवल सामना करने में सक्षम होंगे अपितु साम्राज्यवादी शक्तियों का भी मुकाबला करने सफल होंगे।
हमें इतिहास से सीखना चाहिए। हम जब-जब एकता और राष्ट्रीय भावना के साथ खड़े हुए हैं, तब-तब हमारी जीत हुई है और साम्राज्यवादी शक्तियां पराभूत हुई। आपसी फूट के कारण हम पलासी, चैसा, श्रीरंगपट्टनम और 1857 का गदर हार गए। जब एक होकर लड़े तो 1947 में फिरंगियों को न केवल देश से भगाया अपितु पूरे एशिया से खदेर दिया। इसलिए हमें एक साथ रहना होगा। इसके लिए विभेदकारी और विशिष्टतावादी शक्तियों से सावधान रहना पड़ेगा। सरकार का प्रतिबंध सही दिशा में लिया गया निर्णय था, जो एक वर्ष में साफ दिखने लगा है।