सरनेम पर चर्चा के लिए नहीं है उच्च या निम्न सदन, जनहित के मुद्दों पर बहस कीजिए

सरनेम पर चर्चा के लिए नहीं है उच्च या निम्न सदन, जनहित के मुद्दों पर बहस कीजिए

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण का जबाब राज्यसभा में देते हुए 9 फरवरी,2023 को पीएम नरेन्द्र मोदी ने गांधी परिवार पर नेहरू सरनेम को लेकर भी तंज कसा। पीएम ने कहा-किसी कार्यक्रम में अगर नेहरूजी के नाम का उल्लेख नहीं हुआ तो कुछ लोगों के बाल खड़े हो जाते थे, लहू गर्म हो जाता था। मुझे ये समझ नहीं आता कि अगर नेहरू महान थे, तो उनके परिवार का कोई व्यक्ति नेहरू सरनेम क्यों नहीं रखता? क्या शर्मिंदगी है नेहरू सरनेम रखने में। इतना बड़ा महान व्यक्ति आपको और आपके परिवार को मंजूर नहीं है…और आप हमारा हिसाब मांगते हो।

किस व्यक्ति का क्या नाम होगा,क्या सरनेम होगा- सामान्यतया इस संबंध में निर्णय उसके मां-बाप,बड़े-बुजुर्ग लिया करते हैं। कुछेक मामलों में किसी-किसी व्यक्ति का नाम बचपन में कुछ और होता है और वह किसी और नाम से प्रसिद्धि पाता है। जैसे कि महर्षि वाल्मीकि का मूल नाम रत्नाकर था, या फिर भीष्म पितामह का मूल नाम देवव्रत था, या फिर बुद्ध का मूल नाम सिद्धार्थ था, संत तुलसीदास का नाम रामबोला था। शेरशाह के बचपन का नाम फरीद था, प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था, दिलीप कुमार का मूल नाम युसूफ खान था-वगैरह, वगैरह। किसी का सरनेम भी क्या होगा-यह सामान्यतया पारिवारिक परम्परा के आधार पर तय होता है या फिर वह खुद तय कर लेता है। कई लोग अपना नाम छोटा कर लेने के प्रयास में सरनेम लिखना ही छोड़ दिया-जैसे कि गायक मुकेश का नाम मुकेश चंद्र माथुर था, संगीतकार नौशाद का पूरा नाम नौशाद अली था।

साहित्य-कला-संस्कृति की दुनिया में कई लोगों ने अपने शहर के नाम से अपनी पहचान बनाई, जैसे कि कैफी आजमी,मजरूह सुल्तानपुरी, साहिर लुधियानवी, वसीम बरेलवी, बेढब बनारसी आदि। महाराष्ट्र में तो अपने गांव-शहर का नाम अपने मूल नाम से जोड़ने की सुदीर्घ परम्परा है-लता मंगेशकर, अजीत वाडेकर, सचिन तेंदुलकर, पद्मिनी कोल्हापुरे आदि। ऐसे भी उदाहरण हैं जिसमें जिस नाम से कोई शख्स प्रसिद्ध हुआ, उसका उसके मूल नाम से कोई लेना-देना ही नहीं था, जैसे कि प्रसिद्ध शायर फिराक गोरखपुरी का मूल नाम रघुपति सहाय था, बेढब बनारसी का मूल नाम कृष्णदेव प्रसाद गौड़ था। हरिवंश राय बच्चन के बचपन का पुकारू नाम बच्चन था, इसे उन्होंने अपने नाम और सरनेम-हरिवंश राय-के साथ सरनेम की तरह इस्तेमाल किया. इस तरह वह हरिवंश राय बच्चन हो गए,उनकी बाद की पीढ़ी-अमिताभ बच्चन या अभिषेक बच्चन ने मूल सरनेम राय कभी इस्तेमाल ही नहीं किया। ये तमाम उदाहरण बताते हैं कि किस व्यक्ति का क्या नाम होगा, क्या सरनेम होगा-यह उसका व्यक्तिगत पारिवारिक मसला है, यह सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं हो सकता, नहीं होना चाहिए और कम से कम संसद में इसे चर्चा का विषय बनाने से बचना चाहिए।

जहां तक जवाहरलाल नेहरू के सरनेम का मसला है, उन्होंने अपनी आत्मकथा की शुरुआत में ही बताया है कि उनका परिवार कश्मीरी ब्राह्मण परिवार रहा है,जिनका सरनेम कौल था। अठारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में उनके पुरखे-राज कौल कश्मीर से दिल्ली आकर बस गए। मुगल बादशाह फर्रूखसियर की ओर से उनको एक मकान और छोटी सी जागीर दी गई थी। यह मकान नहर के किनारे था, सो उनका सरनेम नहरू चल निकला तो उस कुटुम्ब ने पहले अपना सरनेम कौल-नेहरू लिखा। आगे चलकर यह सरनेम छोटा हो गया। इसमें कौल विलोपित हो गया और सरनेम सिर्फ नेहरू रह गया।

जवाहरलाल नेहरू ने अपनी इकलौती बेटी का नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी रखा था और इस नाम में नेहरू सरनेम था भी नहीं। घर में सभी इंदिराजी को इंदु कहकर संबोधित करते थे।

इंदिराजी ने अपने पिता जवाहरलाल नेहरू की मर्जी के खिलाफ जाकर एक पारसी फिरोज जहांगीर गांधी से प्रेम-विवाह किया था। तथापि, यह विवाह वैदिक रीति-रिवाज से हुआ था और इंदिराजी ने धर्मपरिवर्तन नहीं किया था। इंदिराजी ने विवाहोपरान्त अपना सरनेम पति फिरोज जहांगीर गांधी की तरह गांधी इस्तेमाल करने लगीं और इस तरह वह इंदिरा प्रियदर्शिनी से इंदिरा गांधी हो गईं। यह बिल्कुल वैसा ही है, जैसे भाजपा नेत्री सुषमा शर्मा स्वराज कौशल से विवाह के पश्चात सुषमा स्वराज हो गईं या फिर जुबिन ईरानी के साथ विवाहोपरान्त स्मृति मल्होत्रा स्मृति ईरानी हो गईं। चूंकि, यह व्यक्तिगत, पारिवारिक फैसला होता है, सो डॉ परकाल प्रभाकर से विवाहोपरान्त भी निर्मला सीतारमण ने अपना सरनेम नहीं बदला, तो वैसी कोई कानूनी बाध्यता तो है नहीं।

इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के दो पुत्र हुए राजीव और संजय। दोनों के नाम के साथ सरनेम गांधी ही रहा। राजीव गांधी ने बड़े होकर इटालियन लड़की सोनिया माइनो से शादी की तो संजय गांधी ने मेनका आनन्द से शादी की। सोनिया और मेनका-दोनों ने अपने-अपने विवाहोपरान्त अपने-अपने सरनेम बदलकर पतियों का सरनेम अंगीकार कर लिया और आज वह सोनिया गांधी और मेनका गांधी हैं।

राजीव गांधी और सोनिया गांधी के एक पुत्र और एक पुत्री हैं- प्रियंका और राहुल। संजय और मेनका के एक पुत्र हैं वरूण। प्रियंका ने रॉबर्ट वाढेरा से शादी के बाद अपना सरनेम बदल कर प्रियंका वाढेरा कर लिया है। राहुल और वरूण माता-पिता की तरह गांधी सरनेम ही इस्तेमाल करते हैं। इन विस्तृत ब्योरों से कहीं से भी स्थापित नहीं हो पाता कि जवाहरलाल नेहरू कितने भी महान क्यों न हों, सोनिया-मेनका या राहुल-वरूण सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से गांधी सरनेम छोड़कर नेहरू सरनेम रखने के लिए बाध्य हैं। नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने भी अपना सरनेम पिता से पाया होगा, नाना से नहीं। सो, राजीव-संजय ने गांधी सरनेम अपने पिता फिरोज जहांगीर गांधी से पाया न कि नाना से। उसी प्रकार, राहुल-वरूण ने गांधी सरनेम अपने-अपने पिता राजीव और संजय से पाया है। मेरी व्यक्तिगत राय है कि नाम और सरनेम का मुद्दा राज्यसभा में चर्चा का विषय होना ही नहीं चाहिए।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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