रांची/ झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके युवा नेता हेमंत सोरेन की बढ़ती लोकप्रियता को कम करने के लिए भारतीय जनता पार्टी सभी प्रकार के हथकंडे अपना रही है। जमीन घोटाले वाला मामला सिरे नहीं चढ़ा तो अब भाजपा के रणनीतिकार, शशिनाथ झा हत्या का मामला एक बार फिर-से खोले की योजना बना रहे हैं।
बता दें कि सोरेन को कथित जमीन रजिस्ट्री के मामले में आरोपी बना कुछ महीने पहले जेल भेजा गया था। हेमंत पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान जेल में रहे। अभी हाल ही में हेमंत जेल से जमानत पर छूट कर आए हैं। आते ही उन्होंने मोर्चा संभाल लिया और अब फिर से प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।
जानकारों की मानें तो हेमंत सोरेन की लोकप्रियता बढ़ रही है। खास कर आदिवासी समाज में उनकी लोकप्रियता सिर चढ़ कर बोल रही है। यही कारण है कि अभी संपन्न लोकसभा के आम चुनाव में झारखंड से सभी आदिवासी सुरक्षित सीट पर झामूमो के नेतृत्व वाला गठबंधन जीता।
भाजपा हेमंत की लोकप्रियता को पचा नहीं पा रही है। इसलिए एक बार फिर पुराने मामलों को उठाने की कोशिश की जा सकती है। इसमें झामुमो के लिए सबसे कमजोर कड़ी शशिनाथ झा हत्या मामला को बताया जाता है। भाजपा के रणनीतिकार इस मामले को उठाने की कोशिश कर सकते हैं।
हालांकि खबर को किसी ने पुष्ट नहीं किया है लेकिन एक केन्द्रीय सूत्र ने बताया कि आने वाले समय में भाजपा झारखंड विधानसभा को केन्द्र में रख शशिनाथ झा हत्या मामले की फाइल एक बार फिर-से खुलवा सकती है।
वैसे कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि दुर्गा सोरेन की मृत्यु का मामला भी उनकी पत्नी सीता सोरेन उठाती रही है। चूंकि अब सीता भाजपा में है, इसलिए इस मामले को भी भाजपा चुनावी मुद्दा बनाने के लिए केन्द्रीय एजेंसी के माध्यम से जांच करवा सकती है।
बता दें कि शशिनाथ झा हत्या का मामला झारखंड का बेहद चर्चित मामला है। शशिनाथ झा, झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के सचिव थे। पहले उनका अपहरण किया गया और उनकी हत्या कर दी गयी। शशिनाथ झा के बारे में बताया जाता है कि वे सोरेन परिवार के बहुत निकट थे और जब शिबू सोरेन राजनीति में व्यस्त रहते तो उनके परिवार का ख्याल झा ही किया करते थे।
इस मामले में शिबू सोरेन को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी लेकिन बाद में उन्हें बरी कर दिया गया। ऐसा बताया जाता है कि शशिनाथ झा को अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही नरसिंह राव सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता सोरेन के बीच हुए कथित सौदेबाजी के बारे में जानकारी थी।
22 मई 1994 को सोरेन के सहायक नंद किशोर मेहता उर्फ नंदू तथा 5 अन्य ने कथित तौर पर झा का अपहरण किया। 24-30 मई 1994 को मुख्य आरोपी नंदू और 3 अन्य ने कथित तौर पर शिबू सोरेन के इशारे पर झारखंड में रांची के निकट जंगल में झा की हत्या कर उसका शव दफना दिया।
2 जून 1994 को पीड़ित के भाई की शिकायत पर नई दिल्ली के संसद मार्ग थाने में मामला दर्ज किया गया। 1 अगस्त 1996 को झा की मां की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई ने मामले की जांच का जिम्मा संभाला।
13 अगस्त 1996 को सीबीआई ने रांची के पिस्का नगरी गांव से झा का कंकाल बरामद करने का दावा किया। 19 जून 1998 को सीबीआई ने सोरेन को नई दिल्ली से गिरफ्तार किया। 10 नवंबर 1998 को सीबीआई ने अपना पहला आरोपपत्र दाखिल किया।
28 नवंबर 2006 को जज बी. आर. केडिया ने सोरेन तथा 4 अन्य को भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत आपराधिक षड्यंत्र, अपहरण और हत्या के तहत दोषी ठहराया। हालांकि 2 अन्य लोगों आशीष ठाकुर और सुनील खवाड़े को बरी कर दिया गया।
5 दिसंबर 2006 को सुनवाई के बाद अदालत ने जेएमएम अध्यक्ष और 4 अन्य दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 23 जनवरी 2007 सुनवाई अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए सोरेन और 4 अन्य दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे। 22 अगस्त 2007 को दिल्ली हाई कोर्ट ने सोरेन और अन्य को बरी कर दिया।
इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने भी झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को उनके निजी सचिव शशि नाथ झा की हत्या के मामले में बरी कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के 22 अगस्त 2007 के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था।
कब क्या हुआ
जुलाई 1993: शिबू सोरेन सहित दूसरे सांसदों पर केंद्र सरकार को बचाने के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने का आरोप लगा।
20 मई 1994: शशि नाथ झा के परिजनों ने इस मामले में जान से मार देने की धमकी मिलने की जानकारी दी।
22 मई 1994: दिल्ली के धौल कुआं इलाके से शशि नाथ झा अपहरण किया गया।
23 मई 1994: शशि नाथ झा को अंतिम बार पिस्का नगड़ी में नंदकिशोर मेहता के घर देखा गया।
18 जून 1994: शशि नाथ झा के भाई अमरनाथ झा ने थाने मेें शिकायत की।
इस मामले में शिबू सोरेन सहित नंद किशोर मेहता, शैलेंद्र भट्टाचार्य, पशुपति नाथ मेहता और अजय कुमार मेहता शामिल थे।