हमारे वर्तमान नेतृत्व में न तो सामूहिकता है न ही अनामिकता

गौतम चौधरी  ‘‘निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय।’’ आलोचना लोकतंत्र का श्रृंगार है। खासकर नेतृत्व को इसे केवल नाकारात्मक

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