गौतम चौधरी
भारत का अपना कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। यह एक धर्मनिरपेक्ष देश है। यही नहीं यहां किसी धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र का प्रभाव व्यापक हो ही नहीं सकता है क्योंकि भारत अपने आप में विविधताओं को समेटे हुए है। भारत केवल विविधताओं वाला देश ही नहीं है, यहां की सभ्यता पुरानी है और यह बहुसांस्कृतिक देश है। दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं, जहां इतने प्रकार की संस्कृति हो फिर भी एक-दूसरे के प्रति कोई खास गतिरोध नहीं हो। बहुसांस्कृतिक राष्ट्र से हमारा मतलब भारत का अपना कोई आधिकारिक संस्कृति भी नहीं है। भारत की सत्ता लोकतांत्रिक है और सरकार के द्वारा किसी धर्म के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता है।
दरअसल, अभी हाल ही में सियासत अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र ने ‘हेट ट्रैकर 2022’’ शीर्षक से एक रपट छपी है। उस रपट में देशभर में मुस्लिम विरोधी घटनाओं का जिक्र किया गया है। इस रपट के विश्लेषण में कहा गया है कि देश में वर्ष 2022 के अंत तक धार्मिक असहिष्णुता में बढ़ोतरी हुई है। धार्मिक असहिष्णुता की मानसिकता मजबूत हुई है। इसी से मिलती जुलता एक रपट भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल ने अपने फेसबुक पेज पर भी साझा किया है। इस प्रकार की गतिविधि से यह माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि भारत में अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के प्रति असहिष्णुता में बढोतरी हुई है। अखकर द्वारा प्रकाशित इस प्रकार की नकारात्मक सुर्खियां हमारे संविधानकी मूल अवधारणा पर सवाल खड़ा कर रहा है। ऐसा कैसे हो सकता है? माना कि केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है लेकिन कई बड़े राज्यों में विरोधियों की सरकार है, जिसे मुस्लिम नेता अपनी हिमायती बताते रहे हैं। बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन की सरकार है। झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में भी महागठबंधन की सरकार है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व में भाजपा की घुर विरोधी तृणमूल कांग्रेस की सरकार है। छत्तीसगढ, ओड़िशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश में भाजपा विरोधी दलों की सरकार है। इस प्रकार देशा जाए तो फिलहाल देश के अधिकतर भूभाग पर केन्द्र में सत्ता संभाल रही भाजपा के विरोधियों की सरकार है। भारत के संविधान के अनुसार यह देश केवल लोकतांत्रिक ही नहीं गणतांत्रिक भी है। प्रदेश की कानून व्यवस्था केन्द्र नहीं, राज्य सरकारों के पास है। यदि केन्द्र में सत्ता का संचालन कर रही भाजपा मुस्लिम विरोधी है और इसके कारण देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ माहौल मजबूत हो रहा है तो यह बिल्कुल गलत अवधारणा है। अधिकतर राज्य में दूसरे दलों की सरकार है और ऐसे में यदि देश में मुस्लिम विरोधी माहौल बन रहे हैं तो देश की जनमन को समझने की जरूरत है। यह उन लोगों के लिए भी एक सीख है, जो आगे बढ़कर ऐसे मामले के प्रचार का हथियार बन रहे हैं और देश की छवि को खराब कर रहे हैं। इस रिपोर्ट का कुल लव्वोलुआब यही है कि विविध पार्टियों की सरकार ने भी इस मानसिकता को रोकने का प्रयास नहीं किया है, जो अल्पसंख्यकों के खिलाफ बन रही है। ऐसे में मुखर अल्पसंख्यकवादियों को भी अपने गिरेवांन में झाकना चाहिए।
इन दिनों एक बात और ध्यान में आयी है। खासकर अल्पसंख्यकों के मामले में यदि बात हो तो सकारात्मक खबरों की तुलना में नकारात्मक खबरें ज्यादा चलायी जा रही है। हमें इस मानसिकता की भी पड़ताल करनी चाहिए। ऐसा लगता है कि समाचार माध्यमों के पास नकारात्मक खबरें ही ज्यादा हैं। इन दिनों हत्या, आपसी विवाद, सेक्स, राजनीति, अपराध आदि की खबरें समाचार माध्यमों में खूब सुर्खियां बटोड़ रही है जबकि विकास, मौसम, कृषि, आधारभूत संरचना, शोध आदि की खबरें बेहद सीतिम संख्या में उपलब्ध कराए जाते हैं। इससे यह साबित होता है कि हमारे देश का समाचार माध्यम अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से समझने में नाकाम है। समाचार माध्यमों की समाज और देश के प्रति जो जिम्मेदारी होनी चाहिए उससे वह अपना पिंड छुड़ाता दिख रहा है और केवल टीआरपी व प्रसारन की अंधी दौर में अपना सबकुछ गमाने में लगा है। विशेष रूप से धार्मिक अतिवाद से संबंधित घटनाओं पर समाचार माध्यमों की रिपोर्टिंग बेहद नकारात्मक होती जा रही है। अल्पसंख्यकों के खिलाफ कुछ घटनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है लेकिन इसी प्रकार की घटनाएं बहुसंख्यकों के खिलाफ भी तो हो रही है। यदि झारखंड की घटनाओं का ही ब्योरा प्रस्तुत किया जाए तो चैकाने वाले परिणाम सामने आते हैं। विगत दो वर्षों में 10 से अधिक बहुसंख्यक महिलाओं को एक खास समुदाय के द्वारा बड़ी बेरहमी से हत्या की गयी है। एक खास समुदाय के द्वारा अभी हाल ही में रांची शहर में माॅब लिंचिंग की घटना हुई। हालांकि प्रशासन के द्वारा उसे दबाने की पूरी कोशिश की गयी है, बावजूद इसके उसके परिवार वाले लगातार माॅब लिंचिंग की बात दोहरा रहे हैं। जिस प्रकार सामान्य व्यवहार या एक अपराधी के द्वारा की गयी घटना के रूप में बहुसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को लिया जाता है, उसी प्रकार अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को भी लिया जाना चाहिए। इस मामले में न तो कोई राजनीति होनी चाहिए और न ही पूर्वाग्रह। जब अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यक आबादी के वर्चस्व के बारे में घटनाओं को संकलित और उजागर किया जाता है तो मामले को कट्टरता के साथ जोड़ दिया जाता है लेकिन वही घटना बहुसंख्यकों के खिलाफ अल्पसंख्यकों के द्वारा की जाती है तो उसे सामान्य आपराधिक घटना मानने के लिए बाध्य किया जाता है। यह कैसे हो सकता है। समाचार माध्यमों का मापदंड समान होना चाहिए। रचनात्मक आलोचना को महत्व दिया जाना चाहिए। विनाशकारी आलोचना केवल सामाजिक बुराइयों को जन्म देती है। मीडिया की भूमिका समाज व देश हित में होनी चाहिए। अल्पसंख्यकों को यह विश्वास दिलाने में मदद करनी चाहिए कि भारत का संविधान जब तक जिंदा है तब तक इस देश का प्रत्येक व्यक्ति सुरक्षित है। कुछ गलतियों को आप उदाहरण नहीं बना सकते हैं।
नकारात्मक संदेश केवल युवाओं को गलत निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसके कई उदाहरण हैं। इस बात की चर्चा दुनिया भर में होती है कि भारत विश्व का एक ऐसा राष्ट्र है, जहां किसी भी धर्म को मानने के लिए कोई व्यक्ति दूसरे को बाध्य नहीं कर सकता है। समाज की अधिक सटीक समझ प्राप्त करने के लिए, हमें सफलताओं और असफलताओं दोनों को पहचानना होगा। प्रहरी रहते हुए, मीडिया के पास अब प्रगति और सद्भावना पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका तात्पर्य केवल खुशनुमा कहानियों को प्रस्तुत करना नहीं है, बल्कि समाज में सकारात्मक विकास की कवरेज करना है। नागरिकों के जीवन, समुदायों, समाजों और सरकारों में सर्वोत्तम निर्णय लेने की छमता का भी तसल्ली से प्रचार करने की जरूरत है। पत्रकारिता को इस क्षेत्र में भी अपना काम करना होगा। केवल नकारात्मकता पर ध्यान केंद्रित करके और प्रगति, सहिष्णुता व समाज में बढ़ रही एकता की भावना को नजअंदाज नहीं किया जा सकता है। दरअसल, इससे पत्रकारिता का मूल भाव पत्रकारिता से दूर होता जा रहा है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
हमारे संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है – ‘‘हम भारत के लोग भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में स्थापित करने और अपने सभी नागरिकों के लिए सुनिश्चित करने का संकल्प लेते हैं।’’ संविधान की प्रस्तावना स्पष्ट करता है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और हमेशा बिना किसी भेदभाव के अपने नागरिकों के पक्ष में खड़ा रहता है, चाहे उनका धर्म, भाषा, क्षेत्र, लिंग, जाति कुछ भी हो। अब देश के भीतर स्थित संगठनों और देश के बाहर स्थित लोगों की जिम्मेदारी है कि वे विभाजन एवं पृथकतावादी दृष्टिकोणें को बढ़ावा देने से बचें। ऐसी सामग्री साझा न करें जिससे आपसी वैमनस्यता का विकास हो और धार्मिक सद्भाव तिरोहित हो। हमें समझ लेना चाहिए कि इस तरह की सामग्री केवल देश और उसके नागरिकों के विकास में बाधा पहुंचाने के लिए ही प्रस्तुत किए जाते हैं।