जयसिंह रावत
उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, पिछले तीन वर्षों से एक ऐसी सरकार के नेतृत्व में बदलाव की राह पर है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को न केवल शब्दों में बल्कि कार्यों में भी लागू कर रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 2021 में सत्ता संभालने के बाद से भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने का संकल्प लिया। 2022 से 2025 तक, उत्तराखंड विजिलेंस विभाग ने 150 से 200 से अधिक सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई की जिनमें कई को निलंबित किया गया और कुछ को सलाखों के पीछे भेजा गया। यह मुहिम न केवल उत्तराखंड में सुशासन का प्रतीक बन रही है, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल पेश कर रही है। इस लेख में हम धामी सरकार की इस भ्रष्टाचार विरोधी जंग की उपलब्धियों, प्रमुख कार्रवाइयों, प्रभावों और भविष्य की चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे।
मुख्यमंत्री धामी का यह संदेश साफ है। उनकी सरकार ने छोटे कर्मचारियों से लेकर उच्च पदस्थ अधिकारियों तक को जवाबदेह बनाया। आईएएस रामविलास यादव को आय से अधिक संपत्ति के आरोप में निलंबित किया गया जबकि आईएफएस किशन चंद पर वन विभाग में अनियमितताओं के लिए कार्रवाई हुई। हरमिंदर सिंह बवेजा (उद्यान निदेशक), अमित जैन (आयुर्वेद विश्वविद्यालय), भूपेंद्र कुमार (परिवहन निगम), महिपाल सिंह (लेखपाल) और रामदत्त मिश्र (उप निबंधक) जैसे अधिकारियों पर रिश्वतखोरी और वित्तीय गड़बड़ियों के लिए कठोर कदम उठाए गए।
हरिद्वार भूमि घोटाला इस मुहिम का सबसे बड़ा उदाहरण है जिसमें दो आईएएस, एक पीसीएस सहित 12 लोग निलंबित हुए। नैनीताल में ₹1.20 लाख की रिश्वत लेते पकड़े गए कोषाधिकारी, चमोली में ₹30,000 की रिश्वत के साथ आबकारी इंस्पेक्टर जयवीर सिंह, और बागेश्वर में ₹50,000 की रिश्वत लेते सैनिक कल्याण अधिकारी सुबोध शुक्ला के मामले ने भ्रष्टाचार की गंभीरता को उजागर किया।
नैनीताल में मुख्य कोषाधिकारी और एकाउंटेंट को ₹1.20 लाख की रिश्वत लेते पकड़ा गया। चमोली में आबकारी इंस्पेक्टर जयवीर सिंह को ₹30,000 की रिश्वत के साथ गिरफ्तार किया गया। बागेश्वर में जिला सैनिक कल्याण अधिकारी सुबोध शुक्ला को ₹50,000 की रिश्वत लेते पकड़ा गया, जो सैनिक कल्याण जैसे संवेदनशील क्षेत्र में भ्रष्टाचार की गंभीरता को उजागर करता है। रुड़की में अपर तहसीलदार का पेशकार रोहित ₹10,000 की रिश्वत लेते गिरफ्तार हुआ। इन कार्रवाइयों ने स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार को रोकने में विजिलेंस की सक्रियता को रेखांकित किया। विभिन्न स्रोतों के अनुसार, 150 से 200 से अधिक कर्मचारी और अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए। सोशल मीडिया पर “ धामीक्लीनअपभ्रष्टाचार “ट्रेंड ने इस मुहिम को जनता तक पहुँचाया, जिससे जन जागरूकता में वृद्धि हुई।
धामी सरकार ने भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने के लिए एक बहुआयामी रणनीति अपनाई है। विजिलेंस विभाग को तकनीकी और मानव संसाधनों से सशक्त किया गया। मुख्यमंत्री धामी ने स्वयं विजिलेंस अधिकारियों को टैबलेट्स प्रदान किए, ताकि जांच प्रक्रिया तेज और प्रभावी हो। ष्भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड 1064ष् एप और टोल-फ्री नंबर ने जनता को सीधे शिकायत दर्ज करने का आसान रास्ता दिया। धामी ने निर्देश दिए कि शिकायतों का त्वरित निस्तारण हो और गैर-विजिलेंस मामलों को संबंधित विभागों को भेजा जाए। डिजिटल पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए ऑनलाइन शिकायत पोर्टल और डिजिटल भुगतान प्रणालियों को लागू किया गया, जिसने रिश्वतखोरी की संभावनाओं को कम किया। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कठोर सजा सुनिश्चित की गई, जिसमें कई मामलों में दोषियों को जेल भेजा गया। जन जागरूकता अभियान ने जनता को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित किया। गुप्त सूचनाओं के आधार पर कई कार्रवाइयाँ हुईं, जो इस बात का सबूत हैं कि जनता अब इस मुहिम का हिस्सा बन रही है। धामी ने सोशल मीडिया का भी प्रभावी उपयोग किया। उनके बयान, जैसे ष्देवभूमि में भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहींष्, ने जनता के बीच उत्साह जगाया। “धामीक्लीनअप भ्रष्टाचार “ जैसे हैशटैग ने इस अभियान को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनाया।
धामी सरकार की इस मुहिम का उत्तराखंड में गहरा प्रभाव पड़ा है। सरकारी कार्यालयों में रिश्वतखोरी की घटनाएँ कम हुई हैं और जनता का प्रशासन पर विश्वास बढ़ा है। हरिद्वार भूमि घोटाले में बड़े अधिकारियों के निलंबन ने यह संदेश दिया कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। सख्त भू-कानून और अंकिता हत्याकांड में त्वरित कार्रवाई ने धामी की जवाबदेही और पारदर्शी शासन की प्रतिबद्धता को और मजबूत किया। सोशल मीडिया पर जनता ने इस मुहिम की खुलकर सराहना की। उदाहरण के लिए, एक यूजर ने लिखा, ष्धामी जी ने दिखा दिया कि इच्छाशक्ति हो तो भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सकती है।ष् यह अभियान न केवल उत्तराखंड, बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बन रहा है। डिजिटल उपायों ने सरकारी प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाया जिससे आम जनता को सरकारी योजनाओं का लाभ लेना आसान हुआ।
इस मुहिम की सफलता के बावजूद कई चुनौतियाँ अभी बनी हुई हैं। उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई में समय और संसाधनों की जरूरत होती है। बड़े अधिकारियों के खिलाफ जटिल जांच प्रक्रियाएँ और कानूनी अड़चनें प्रक्रिया को धीमा कर सकती हैं। आंकड़ों की अस्पष्टता भी एक मुद्दा है। कार्रवाइयों की सटीक संख्या और विवरण में कुछ भिन्नता दिखती है, जो पारदर्शिता पर सवाल उठाती है। सरकार को इस दिशा में और स्पष्टता लानी होगी। प्रणालीगत सुधारों की कमी भी एक बड़ी चुनौती है। केवल कार्रवाइयाँ भ्रष्टाचार को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकतीं। डिजिटल प्रक्रियाएँ, प्रशासनिक जवाबदेही और संस्थागत सुधार दीर्घकालिक समाधान हैं। इसके अलावा, जन जागरूकता को और व्यापक करना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी कई लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से हिचकते हैं। इसके लिए जागरूकता अभियानों को और गति देनी होगी।
पुष्कर सिंह धामी की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम ने उत्तराखंड को सुशासन की राह पर ला खड़ा किया है। 150 से अधिक कार्रवाइयाँ, डिजिटल पहल और जनता की भागीदारी इस अभियान की ताकत हैं। लेकिन यह केवल शुरुआत है। भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने के लिए निरंतर प्रयास, प्रणालीगत सुधार और जन जागरूकता जरूरी है। धामी का संकल्प कि ष्देवभूमि में भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहींष्, एक नारा नहीं, बल्कि एक दृष्टि है। यह दृष्टि उत्तराखंड को न केवल भ्रष्टाचार मुक्त, बल्कि समृद्ध और पारदर्शी राज्य बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। क्या यह मुहिम देवभूमि को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का सपना पूरा करेगी? यह समय और सरकार की प्रतिबद्धता ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि धामी की यह जंग उत्तराखंड के लिए एक नई सुबह की शुरुआत है।
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