नस्तर
कुमार कौशलेन्द्र कौशल
मुख्यमंत्री जी! हेमंत बाबू! कोरोना आपदा की इस हृदय विदारक घड़ी में आपको कोसने की मेरी मंशा कत्तई नहीं थी। मुझे पता है कि आप बैचैन हैं और हर संभव जतन में जुटे हैं। हालांकि, पत्रकारिता का एक पाठ होता है- मैं यह बात सही नहीं मानता। अच्छी खबर भी खबर ही होती है।
चार्ल्स ग्रोनहाजन कहते हैं-‘‘हम हमेशा बुरे की ओर देखते हैं। अच्छे को भी देखें किंतु बुरे को भूलें नहीं।’’ भय फैलाना, हरदम नकारात्मक बने रहना अच्छा नहीं। किन्तु क्या आपको नहीं लगता कि कोरोना आपदा की आफतों के बीच आपके नाम से उपलब्धियों की पतंग उड़ाने में जुटा तंत्र धरातल पर आपको धाराशायी करने में जुटा है?
तंत्र के मंत्र पर अमल कर विपदा की इस घड़ी में पुष्प सुसज्जित एम्बुलेंस, आक्सीजन टैंकर और अस्पताल का फीता काटकर अथवा मीडिया प्रबंधन के बूते आल इज वेल की छवि बुलंद करने की कोशिशों के बूते आप कोरोना से निपट लेंगे क्या हेमंत बाबू?
आप झारखंड की एकमात्र आशा हैं। सूबे की जनता, जो कोरोना आपदा से जूझ रही है, उसे आपसे सरोकार है, क्योंकि आप उनके सरकार हैं। जिन लोगों को चैपट व्यवस्था ने न इलाज दिया और ना ही कायदे से लोक मुक्ति वो भी अपने नायक हेमंत को ही तलाश रहे थे।संवेदना का भी एक चेहरा होता है हेमंत जी। आपकी संवेदनशीलता को क्या पतंगबाज तंत्र ने बंधक बना लिया है, या फिर परिस्थितियों के सागर में फंसी आपके संवेदनशील स्वभाव की नाव ने अपनी दिशा बदल ली है?
पिछली दफा जब कोरोना लाॅकडाउन लगा था उस वक्त आपकी सरकार बने कुछ महीने ही हुये थे। बावजूद इसके आपने तत्काल अपने आवास के सामने सूचना भवन में 24’7 काल सेन्टर संचालित कर हजारों पीड़ितों को राहत मुहया कराया था। सबसे पहली रेलगाड़ी भी आपने ही चलवाई। और भी कई उल्लेखनीय कदम झारखंड की जनता को यह विश्वास दिलाने लगे थे कि ‘‘हेमंत है तो हिम्मत है।’’
अफसोस, इस दफा तो आप भी सेरेमोनियल पपेट चीफ मिनिस्टर-सा आचरण करते दिख रहे हैं। क्या संवेदनशील हेमंत सोरेन तक लगातार धधकती चिताओं की तपिश नहीं पहुंच रही? क्या अस्पतालों में बदहवास ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और दवाओं के लिए भागते लोगों की चित्कार नहीं पहुंच रही?
नाम गिनवाने या लाशों के आंकड़े बताने की मंशा नहीं है मुख्यमंत्री जी। आंकड़ों की बाजीगरी तो तंत्र करता है। वह कर भी रहा है। बताना सिर्फ इतना चाहता हूं कि तंत्र अपने हिसाब से चल रहा है, जबकि वक्त चाहता है कि उसमें हेमंत गति आये।
जनता क्या भोग रही है और आपसे क्या चाहती है, यदि यह जानना और जनता को राहत पहुंचाना चाहते हैं, तो तत्काल एक झारखंड हेल्प इमरजेंसी सर्विस कॉल सेंटर चालू करवाईये। उस हेल्पलाइन का नंबर बंद या बिजी न रहे, इस हेतु जितनी ज्यादा लाइनें हो सके, वो उपलब्ध करवाईये। इस कॉल सेंटर में झारखंड के किसी भी कोने से इमरजेंसी हेल्प के लिए आने वाली कॉल पर तुरंत संज्ञान लिया जाए।
बहुत बड़ी तबाही हो चुकी है, बहुत जानें जा चुकी हैं, अब जो जानें बचाई जा सकती हैं, उन्हें बचाने के लिए कुछ कीजिये सरकार। जमीनी स्थिति को तंत्र के चश्मे से नहीं पीड़ित लोगों की नजर से समझने की कोशिश कीजिये, हेमंत बाबू। ऐसा आपको बिना देर किए करना होगा। फिलहाल जो हेल्प नंबर जारी किए गए हैं और जो अन्य पोर्टल हेल्प डेस्क हैं, उनमें से किसी पर न बेड मिल रहे हैं, न रिस्पांस, सब सिर्फ दिखावे के लिए या ऊंट के मुंह में जीरे की तरह हैं।
धक्कम-धुक्की, चीख-पुकार चरम पर है, वैसे में किसी मरीज का दाखिला हो जाए, यह आसान नहीं। आपदा में भी अजीबो-गरीब खेल चल रहा है। अस्पताल में बेड मिल नहीं रहे तो ऑनलाइन कंसल्टेंसी या प्राइवेट डॉक्टर्स से लोग दिखा रहे हैं, लेकिन वहां से जिन दवाइयों, इंजेक्शन के नाम बताए जाते हैं वो कहीं मिल नहीं रहे हैं। ऑक्सीजन की जरूरत जिन मरीजों को बताई जा रही है, उनके लिए इंतजाम एक अलग जंग है, जिसमें न जाने कितने मरीज जंग हार चुके हैं।
सैंकड़ों ऑक्सीजन सप्लायर्स, वेंडर्स के नंबर्स व्हाट्सएप पर आ रहे हैं, मरीजों के परिवार के लोग हर नंबर, हर एड्रेस पर हताश-परेशान भागे जा रहे हैं, सौ में से नब्बे खाली हाथ लौट रहे, कुछ चंद घंटों की सांसें बटोर कर ला पा रहे हैं। औसत मृत्यु का आंकड़ा जो बताया जा रहा है इसमें सिर्फ वो शामिल हैं, जिनकी मौत अस्पतालों में हो रही है, जो कोविड एक्टिव हैं। बाहर जो बिना हॉस्पिटल में दाखिला मिले या बिना ऑक्सीजन के दम तोड़ रहे हैं, वो आंकड़ों की गिनती से बाहर हैं। कितने तो जान गंवा भी बैठे लेकिन उनकी टेस्टिंग तक नहीं हो पाई, आंकड़ों से वो भी बाहर हैं। भटक रहे लोगों को मुख्यमंत्री काल सेंटर से सही सूचना और त्वरित सहायता मिल सके, इसकी व्यवस्था कीजिये हेमंत जी। रांची और राज्य के अन्य जिलों में भी पत्रकार, सिविल सोसाइटी और अन्य संगठन से जुड़े लोग अपनी क्षमतानुसार आपदा की इस घड़ी में भरसक प्रयत्नरत हैं। उनसे सीधा संवाद कीजिये मुख्यमंत्री जी। वे आपके निंदक नहीं आपके आंख-कान और हाथ हैं।
हम जिन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं न हेमंत बाबू, उनमें से ज्यादातर को बचा सकते थे, पर ऐसा नहीं हुआ। ये सभी लोग कोविड से नहीं मरे, बल्कि जांच नहीं होने या ससमय रिपोर्ट नहीं मिलने से मरे, ऑक्सीजन के अभाव में मरे, अस्पताल में बेड नहीं मिलने से मरे, डॉक्टरों की कमी से मरे, इंजेक्शन की कालाबाजारी से मरे, व्यवस्था की लापरवाही से मरे।
आपका सीधा नायक हस्तक्षेप सुनिश्चित हो जाये ना तो हाहाकार जयकारे में बदल जायेगा और वह जयकारा उपलब्धियों की नाजुक डोर वाली पतंग नहीं होगी बल्कि अपने नायक के प्रति जनता का मजबूत स्नेह होगा। आप याद रखिएगा कि -जो अपने मन पर राज न कर सके वो दूसरे पर राज नहीं कर सकता।
मैं जानता हूं, आपकी संवेदनशीलता ही आपकी पूंजी है। अपने मन की करिये। सरकारी अस्पतालों के हालात, शमशानों की दशा और पीड़ितों का दर्द अपने चश्मे से देखिये। मैं बिल्कुल नहीं मानता कि व्याप्त वर्तमान कुव्यवस्था के दोषी आप हैं और भोज के समय व्यवस्था का कोहड़ा रोप रहे अथवा सूखा पड़ने के बाद चापाकल लगवा रहे क्योंकि सत्ता संभालते ही आपको कोरोना की आपदा मिली। आप विचलित हैं और सीमित संसाधन में भी आपदा से निपटने की छटपटाहट में हैं, किन्तु आपका तंत्र धरातल पर आपकी संवेदना को भी कुचलने से बाज नहीं आ रहा।
बावजूद इसके राष्ट्रकवि दिनकर की ये पंक्तियाँ याद रखियेगा –
‘‘सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते,विघ्नों को गले लगाते हैं, कांटों में राह बनाते हैं!’’
आपके नायक वाली छवि की बाट जोह रहा है झारखंड, देर न कीजिये। यदि इस आपदा में नायक हेमंत न दिखे तो ठीकरा तंत्र पर नहीं आपके सर फूटेगा। फरिश्ते आसमान से नहीं आते मुख्यमंत्री जी। झारखंड की जनता हेमंत सोरेन में फरिश्ता तलाश रही है। अपनी संवेदनशीलता को तंत्र की दिखावटी पंचायत का चेहरा मत बनने दीजिये।
(सोशल मीडिया से सभार। यह लेखक के निजी विचार हैं।)
नोट : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही हमारी पूंजी है। लोकतंत्र की ताकत सकारात्मक अभिव्यक्ति है। हम उसका सम्मान करते हैं।