कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ कारगर उपाय है सामाजिक बहिष्कार

कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ कारगर उपाय है सामाजिक बहिष्कार

अमरदीप यादव

27 अप्रैल को राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में बिचैलियों द्वारा कोरोना संक्रमित मरीजों को बेड दिलाने के लिए मनमानी कीमत की मांग का ऑडियो वायरल हुआ, जिसके बाद पुलिस द्वारा 3 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दी लेकिन सवाल उठता है कि लोगों की नैतिकता इतनी गिर गयी कि अब मानवता की तिजारत करने लगे। यह कोई अकेला मामला नहीं है। 28 अप्रैल को रेमेडिसिवर इंजेक्शन की कालाबाजारी के एक हाई प्रोफाइल मामले में पुलिस ने एक सफेदपोश को और 5 मई को इसी आरोप में दो भाइयों को बिरसा चैक से पकड़ा गया। 8 मई को रांची के श्रद्धानंद रोड स्थित एक दवा दुकानदार को पुलिस ने ऑक्सीमेटर की कालाबाजारी करते रंगे हाथ गिरफ्तार किया और उसे जेल भेज दिया।

उपरोक्त मामलों में संज्ञान लेते हुए 13 मई को माननीय झारखंड उच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति, डॉ रवि रंजन और और न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने राज्य सरकार को मौखिक टिप्पणी में कहा कि रेमडेसिवीर और कोरोना इलाज की अन्य जरूरी दवाओं की कालाबाजारी की जांच में कोताही नहीं बरतें और निष्पक्ष जांच करें। माननीय न्यायालय ने आगे कहा कि मामले की मॉनिटरिंग की जा रही है अगर जांच में किसी प्रकार की कोताही या गड़बड़ी मिली तो इसकी जांच सीबीआई जैसी स्वतंत्र एजेंसी से भी करायी जा सकती है।

माना कानून के हाथ लंबे है, तो क्या ऊंट के मुंह में जीरा वाली कार्यवाई से वृहत पैमाने की कालाबाजारी बंद होगी? संक्रमण के इस दौर में इलाज के लिए सेवा और वस्तु मुहैया कराने वाला वर्ग आपदा को अपने मुनाफे के अवसर में बदलने लगा है। जिस कारण आज इंसान की महामारी से और कालाबाजारी से इंसानियत की मौत हो रही है। चाहे धनाढ्य सफेदपोश व्यपारी हो या मध्यमवर्गीय दुकानदार हर कोई इलाजरत परिवारों से आर्थिक दोहन, ऐसे कर रहा है, मानो वे अपने कफन में जेब सिलाने के लिए धन एकत्रित कर रहा हो।

वैसे तो इंसान पहले भी नैतिकता का पतन और इंसानियत की मौत का चश्मदीद गवाह रोजमर्रा की जिंदगी में भी रहा है क्योंकि वो ऐसी व्यवस्था में जीता है जहां लाखों-करोड़ो की लेन देन करने वाली बैंकों में मात्र 2 रूपये की कलम रस्सी से तथा सार्वजानिक प्यायू का ग्लास और ट्रेन के शौचालय का मग भी जंजीर से बंधा रहता है। लेकिन वैश्विक महामारी के दौर में कुछ लोगों ने मानों नैतिकता दफन ही कर दिया है। आज फल, सब्जी, मांस, मछली, अंडा विक्रेता, डॉक्टर, फार्मा कंपनियां, मेडिकल स्टोर आदि जिसको जहां मौका मिल रहा है सब अपने हिसाब से नकाबपोश बनकर लूटकांड को अंजाम दे रहा है। कई जिलों में कफनखसोटो द्वारा शव के दाह संस्कार के लिए लकड़ी, चंदन का टुकड़ा, तिल, घी, बांस, कलावा और कफन की भी कालाबाजारी की खबरें प्राप्त हो रही है। ऐसी दुखदायी घटनाओं को देख प्रश्न उठता है कि जब जिंदगी और मौत के बीच दूरी मिटाने के लिए इंसान को लूटना और इंसानियत की हत्या करना इंसान का कृत्य बन जाएं तो इसमें दोष किसका माने, परिस्थितियों का, व्यवस्था का, शिक्षा का, सरकार का या संस्कार का?

कमोबेश इसमें सभी सामूहिक जिम्मेदार है और यह सामाजिक व कानूनी दोनों श्रेणी का अपराध है। भारत सरकार द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति, रखरखाव निवारण अधिनियम 1980 और लीगल मेट्रोलोजी (डिब्बाबंद वस्तु) नियम, 2011 लागू किया है, जिसकी देखरेख उपभोक्ता मामले का विभाग करता है। जिसमें समुदाय को वस्तुओं की आपूर्ति में बाधा को रोकने के उद्देश्य से दोषी व्यक्ति को आर्थिक जुर्माना, अधिकतम 6 महीने की अवधि के लिए जेल और 7 साल की सजा का भी प्रावधान है। दोनों की धारा-3 में खाद्य पदार्थों, दवाओं, स्वच्छता उत्पादों, संयत्रों समेत अन्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, बिक्री, आपूर्ति, वितरण आदि के मूल्य पर नियंत्रण करने हेतु राज्योंध्केंद्र शासित प्रदेशों के गृह, आपदा, खाद्य आपूर्ति, विधिक माप-विज्ञान नियंत्रक, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य आदि विभागों को जमाखोरी और कालाबाजारी कर रहे व्यापारियों के खिलाफ कार्यवाई का अधिकार दिया गया है।

मूल्य संतुलन बनाए रखने के लिए 20 अप्रैल 2021 को केंद्र सरकार ने विभिन्न मंडियों में आवश्यक वस्तुओं की आमद के साथ मूल्य का विवरण और राज्य सरकार ने कालाबाजारी रोकथाम हेतु शिकायत के लिए 06517122723 और 18002125512 नंबर भी जारी किया है। 12 मई को जमशेदपुर कांफ्रेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स यूनिट ने केंद्र सरकार से मांग किया है कि ऐसे अपराधों के लिए पहले से ज्यादा कड़े कानून का अध्यादेश लाया जाए और फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन कर आरोपियों को जल्द ही सजा दिलवाई जाए। इन सब के अलावा दोषियों को सामाजिक दंड भी जरूरी है। अब नागरिकों को भी एक क्रांति लानी होगी जिसमें उनसे तय मूल्य से अधिक कीमत लेने वाले प्रतिष्ठानों का वे खुद पर्दाफाश करें। वे नाम पर्ची/बिल के साथ सोशल मीडिया समेत अन्य सार्वजनिक मंचों पर कालाबाजारियों के कृत्य को उजागर करें और उनसे व्यापारिक लेन-देन का बहिष्कार की अपील करें। हो सके तो ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार भी किया जाए।

(लेखक झारखंड प्रदेश भारतीय जनता पार्टी पिछड़ा जाति मोर्चा के अध्यक्ष है। लेखक के विचार निजी हैं। इनके विचारों से जनलेख प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।)

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