झारखंड: विधानसभा में 91270 करोड़ का बजट पेश, भाजपा ने की आलोचना, साम्यवादियों की सराहना
रांची/झारखंड के वित्तमंत्री रामेश्वर उरांव ने विधानसभा में वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए बजट पेश किया। बजट का आकार 91270 करोड़ आकार का है, जो पिछले बजट की तुलना में 4900 करोड़ अधिक है।
हेमंत सरकार के द्वारा पेश बजट की भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने आलोचना की है, जबकि साम्यवादी दलों ने बजट की सराहना करते हुए कहा है कि यह बजट आम आदमी के हितों वाला बजट है।
बता दें कि पिछला बजट 86370 करोड़ रूपये का था। वित्त मंत्री उरांव ने बजट भाषण में दावा किया है कि बजट कृषि, रोजगार और गांव के विकास पर आधारित है।
बजट सत्र के चैथे दिन भी सदन की कार्यवाही भाजपा विधायकों के हंगामें के बीच शुरू हुई। कार्यवाही शुरू होने करीब पंद्रह मिनट बाद भाजपा विधायकों के हंगामे की वजह से सदन की कार्यवाही 12 बजे तक के ले स्थगित करनी पड़ी। भाजपा के तमाम विधायक भगवा टी शर्ट पहन कर सदन पहुंचे थे। टी शर्ट पर तरह-तरह की मांगें अंकित थी। भाजपा विधायक नियोजन नीति रद करने का विरोध कर रहे थे। भाजपा विधायक सदन में केरोसिन विस्फोट, बालू खनन, महंगाई आदि मुद्दे को लेकर विरोध कर रहे थे। विरोध जता रहे भाजपा विधायकों के पास मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी पहुंचे थे। सीएम के पहुंचते ही भाजपा विधायकों ने जय श्रीराम के नारे लगा दिए। भाजपा विधायकों के साथ कांग्रेसी विधायक इरफान अंसारी ने भी जय श्रीराम के नारे लगाए।
बारह बजे सदन की कार्यवाही शुरू होते ही वित्तमंत्री रामेश्वर उरांव ने बजट भाषण शुरू किया। बजट भाषण शुरू करते ही भाजपा सदस्यों ने फिर से हंगामा शुरू कर दिया है। वित्त मंत्री हंगामे के बीच बजट पेश किया। वित्तमंत्री ने कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 18,653 करोड़ रुपये आवंटित किया है। वित्तमंत्री ने कहा कि कोरोना की वजह से कृषि क्षेत्र को संवारना जरूरी है। बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों से बेरोजगार होकर लोग लौटे हैं, इन्हें रोजगार मुहैया कराना सरकार की प्राथमिकता है।
साम्यवादियों ने बजट की सराहना की
भाकपा-माले झारखंड राज्य सचिव जनार्दन प्रसाद ने झारखंड सरकार द्वारा पेश किए गए बजट को झारखंडी जनता की आशाओं के अनुरूप नहीं है लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मनरेगा की मजदूरी बढ़ाकर राज्य सरकार ने अपनी मजदूर हितैसी छवि बनाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि झारखंड की जनता की आकांक्षा थी कि राज्य सरकार चुनाव में किए गए वादे के अनुरूप खासकर विभिन्न विभागों में खाली पड़े पदों को भरने की योजना बनाएगी और रोजगार के लिए पलायन करने वाले यूवाओं को रोजगार का नया अवसर मुहैया करेगी। लौकडाउन की मार झेल रही झारखंड के साथ केंद्र की सरकार शौतेला व्यवहार की है। बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने की जरूरत है। मनरेगा में राज्य सरकार द्वारा मजदूरी में 33 रूपये की बढ़ोत्तरी स्वागत योग्य है लेकिन इसमें न्यूनतम मजदूरी की गारंटी की जानी चाहिए। शिक्षा बजट पर खासकर उच्च शिक्षा पर और अधिक जोर देने की जरूरत है ताकि झारखंड के छात्रों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा दी जा सके।इस पिछड़े राज्य में पंचायतों और प्रखंड स्तर पर स्वास्थ्य सेवा सुदृढ बनाने की भी जरूरत की प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कृषि क्षेत्र को मोदी सरकार अडानी अंबानी के हवाले करने पर तुली है इसीलिए राज्य सरकार राज्य के किसानों को वाध्यकारी विक्री से निजात दिलाने के लिए मंडी व्यवस्था का निर्माण और कृषि-वनोपज का उचित दाम की व्यवस्था बनानी चाहिए। झारखंड में खेती के विकास के लिए सिंचाई की सामग्रिक योजना बनाकर पलामू और संथाल परगना जैसे क्षेत्रों में विशेष पैकेज बनाकर सिंचाई का समुचित प्रबंध की योजना बनाई जानी चाहिए।
श्रमिक संगठन सीटू ने बजट को बताया संतुलित
सीटू के नेता प्रकाश विप्लव ने बजट को संतुलित बताया है। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी का असर, लाकडाउन, केंद्र सरकार द्वारा राज्य के आर्थिक हिस्से मे सेंधमारी और पिछली सरकार द्वारा अनियंत्रित व्यय के चलते राज्य के आर्थिक श्रोतों की स्थिति खराब रहने के बावजूद हेमंत सरकार के वित्तमंत्री रामेश्वर उरांव ने आज विधानसभा मे 91,277 करोड़ रुपये का जो बजट पेश किया उसे संतुलित बजट है। स्वास्थ्य और शिक्षा पर ज्यादा फोकस, ग्रामीण विकास के लिए बजट राशि मे वढोतरी स्वागत योग्य है लेकिन श्रम कौशल विकास और कल्याण तथा महिला बाल विकास व सामाजिक सुरक्षा के मद मे और बजटीय राशि का प्रावधान करना चाहिए था क्योंकि राज्य मे गरीबी और कुपोषण से निपटने में महिला बाल विकास और सामाजिक सुरक्षा विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए 5 नयी रोजगार योजना शुरू किए जाने की घोषणा स्वागत योग्य है।
भाजपा ने बजट को बताया अदूदर्शी
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने हेमंत सरकार के द्वारा प्रस्तुत बजट को अदूरदर्शी, विकास विरोधी, हवा हवाई, खोखला, वास्तविकता से कोसो दूर, अपारदर्शी, राज्य की जनता को निराश करने वाला बजट बताया है।
उन्होंने कहा कि हेमंत सरकार में राज्य के वित्तमंत्री रामेश्वर उरांव द्वारा विधानसभा में पेश किए गए बजट दीपक प्रकाश ने कहा कि इस बजट राज्य के युवाओं, किसानों, महिलाओं, गरीबो सब को निराश किया है। दीपक प्रदेश मुख्यालय में एक प्रेस वार्ता के दौरान अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे। उन्होंने कहा कि इसमे कुछ उम्मीद की किरण अगर है तो वह केंद्रीय सहायता से चलने वाली योजनाएं है।जिनका इस सरकार ने बड़ी चालाकी से नाम बदलकर अपना पीठ थपथपाने की कोशिश की है।
व्यूज
मधुपुर उपचुनाव: फिलहाल भाजपा का पलड़ा भारी
यदि रणनीतिक चूक हुई तो हार भी सकती है पार्टी
गौतम चौधरी
विगत दिनों झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रजनीति का मास्टर स्टोक लगाते हुए दिवंगत मंत्री पुत्र, हफीजुल हसन अंसारी को मंत्री बना दिया। इसके बाद उस कयास पर विराम लग गया है कि मधुपुर विधानसभा के उपचुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से कौन लड़ेगा। अब यह तय हो चुका है कि मधुपुर उपचुनाव में हाजी के लड़के हफीजुला हसन को ही जेएमएम अपना उम्मदवार बनाएगा। इधर भारतीय जनता पार्टी के अंतःपुर वाले खेमें की चर्चा पर विश्वास करें तो भाजपा एक बार फिर राज पालीवाल पर ही अपना दाव लगाने वाली है। कुल मिलाकर देखें तो इस बार के उपचुनाव में भी पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच ही मुख्य मुकाबला होगा।
दलों की स्थिति, ताकत और चुनाव का रूझान इस उपचुनाव को निःसंदेह प्रभावित करेगा। इसके लिए सबसे पहले हम चुनाव के रूझानों की ओर अपना रूख़ करते हैं। मधुपुर विधानसभा सीट झारखंड के देवघर जिले में आती है। 2019 में मधुपुर में लगभग 67 प्रतिशत वोट पड़े थे। इसमें से 38.40 प्रतिशत मत हाफिज को पड़े जबकि 28 प्रतिशत के करीब पालीवाल को वोट मिले। 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा से हाजी हुसैन अंसारी ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार राज पालीवाल को कुल 23069 वोटों के अंतर से हराया था। यह सीट भले देवघर जिला का अंग है लेकिन इसका लोकसभा क्षेत्र गोड्डा है। इस संसदीय क्षेत्र के सांसद फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे हैं। दुबे झारखंड के कद्दावर नेता माने जाते हैं। दुबे अपनी जगह बेहद मजबूत हैं। दुबे के बारे में यहां तक कहा जाता है कि वे संथाल परगना के अधिकतर सीटों पर प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं। विछले संसदीय आम चुनाव में उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के उम्मीदवार प्रदीप यादव को 184227 वोटों से हराया था।
यदि पीछे के रूझानों को देखें तो भाजपा का यहां पलड़ा भारी रहा है। 2005 से लेकर अबतक यानी 2019 के विधानसभा चुनाव तक ज्यादा प्रभाव भाजपा के राज पालीवाल का ही देखने को मिलता है। चुनावों में एक बात बेहद खास दिख रहा है। बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली पार्टी झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांतिक और सुदेश महतो के नेतृत्व वाली आजसू पार्टी भाजपा को क्षति पहुंचाती रही है। इस बार के उपचुनाव में यह दोनों पार्टियां भाजपा के साथ है। बाबूलाल की पार्टी एक तरह से भाजपा में विलय कर चुकी है जबकि आजसू पार्टी का भाजपा के साथ गठबंधन हो चुका है। 2019 के चुनाव में राज कुल 23069 वोट से पराजीत हुए थे, जबकि आजसू पार्टी के उम्मीदवार गंगा नारायण राय को 45620 वोट मिले। यहां बता दें कि 2019 विधानसभा में आजसू अकेले चुनाव लड़ी थी। वहीं झारखंड विकास मोर्चा के उम्मीदवार मोहम्मद सहीम खान को 4222 वोट मिले थे। सहीम का वोट तो भाजपा के पाले में आना थोड़ा कठिन लगता है लेकिन गंगा नारायण वाला वोट भाजपा को मिल सकता है। यदि यह वोट राज पालीवाल को मिलता है तो निश्चित रूप से राज का पलड़ा भारी होगा।
दूसरी ओर हेमंत के खिलाफ कोई खास आक्रोश नहीं दिख रहा है। कुल मिलाकर हेमंत अभी तक ठीक-ठाक सरकार चलाते रहे हैं और अपने आधार वोटरों को बांधे हुए हैं। इसलिए फिलहाल उनके वोट बैंक में सेंध संभव नहीं दिख रहा है लेकिन गठबंधन और जेवीएम के विलय के बाद भाजपा पूरे प्रदेश में मजबूत हुई है। यदि कोई बड़ा बखेड़ा नहीं हुआ तो मधुपुर की सीट भाजपा निकाल सकती है। हालांकि भाजपा के अंदर भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। कई धरे हैं और हर एक धरा, एक-दूसरे को कमजोर करने की फिराक में है। पिछले उपचुनाव में निरसा और दुमका की हाल के पीछे का कारण भी यही है। दूसरा, ऐन मौके प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश का सरकार गिरा देने वाला बयान भी भाजपा को क्षति पहुंचा गया। अभी भी भाजपा चेती नहीं है। गाहे-बगाहे अध्यक्ष अनड़गल बयानबाजी करते रहते हैं। हेमंत के रणनीतिकार इस बयानबाजी को अपने अपने हितों में जबरदस्त तरीके से उपयोग करते हैं। इससे भाजपा के खिलाफ पुराना वाला आक्रोश अभी बना हुआ ही है। इसके साथ ही लगातार बढ़ रही महंगाई और केन्द्र की नीतियों का भी उपचुनाव पर प्रभाव पड़ सकता है।
मधुपुर उपचुनाव में फिलहाल भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है लेकिन भाजपा के रणनीतिकार यदि कोई रणनीतिक चूक करते हैं तो वोट रहते भाजपा की मधुपुर में हार भी हो सकती है। इसलिए भाजपा को सतर्क रहकर सांगठनिक रणनीति के आधार पर चुनाव लड़ना चाहिए। यदि राजनीतिक बयानबाजी हुई तो फिर भाजपा की हार यहां भी हो सकती है।
इंटरव्यू
स्वदेशी और स्वावलंबर से ही राष्ट्र का निर्माण संभव: मनोज कुमार सिंह
गौतम चौधरी
आज के दौर में बिना किसी प्रशासनिक दायित्व के प्रतिभा और मेहनत के बदौतल कोई समाज और संगठन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर ले, यह असंभव तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन कठिन जरूर है। एक ओर काॅरपोरेट, पूंजी और बाजार का जोर हो और दूसरी ओर विशुद्ध सांगठनिक ताकत, ऐसे मौकों पर अमूमन या तो काॅरपोरेट के नुमाइंदे जीतते हैं, या फिर पूंजी व बाजार के एजेंट बाजी माल ले जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में झारखंड का एक ऐसा भी युवा संगठक है, जिसने अपनी मेहनत और लगन के बदौलत न केवल संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है अपितु अब भारत सरकार के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान, ‘‘खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग’’ के महत्वपूर्ण दायित्व को प्राप्त किया है। इस शख्स का नाम है मनोज कुमार सिंह। मनोज लम्बे समय से सामाजिक काम में सक्रिय रहे हैं। संघ, यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक से लेकर, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विभिन्न दायित्वों से होते हुए अभी हाल ही में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के माननीय सदस्य नियुक्त किए गए हैं। स्वदेशी, स्वाबलंबी और स्वाभिमानी मनोज, खांटी झारखंडी हैं। मृदुभाषी और सौम्य स्वाभाव के मनोज में विरोधियों को भी अपना बना लेने की ताकत है। विगत दिनों उनसे मुलाकात हो गयी। साक्षात्कार का कोई इरादा नहीं था लेकिन बात-बात में कुछ गंभीर विषयों पर चर्चा हो गयी। उन्हीं चर्चा को संपादित कर यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।
प्रश्न: प्रधानमंत्री मोदी पर काॅरपोरेट हितों का आरोप लगता रहा है। खादी आयोग विशुद्ध स्वदेशी और आर्थिक लोकतांत्रिक चिंतन है। यह दोनों विरोधाभासी नहीं है?
उत्तर: आरोप लगाने वाले तो किसी पर भी आरोप लगा देते हैं। यदि सचमुच हमारे प्रधानमंत्री ऐसे होते तो स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए रोजमर्रे के चीनी उत्पाद पर प्रतिबंध नहीं लगाते। कुछ दिन पहले तक चीन करोड़ रूपये का केवल अगरबत्ती का व्यापार हमारे देश में करता था लेकिन आज ऐसी बात नहीं है। हमारे प्रधानमंत्री ने आत्मबल का परिचय देते हुए चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया है। अब हमारे लघु, कुटिर उद्यमी इस व्यापार में उतरने लगे हैं। आज भी चुनौती है। आगरबत्ती बनाने के लिए स्टीक की जरूरत होती है। अबतक वह भी बाहर से आता था लेकिन कुछ पूर्वोत्तर और ओड़िशा आदि प्रांतों में इसका भी उत्पादन होना प्रारंभ हो गया है। हमलोगों के दबाव के कारण इस प्रकार के उत्पाद पर सरकार ने आयात शुल्क बढा दिया है। मोदी जी ने सोशल फाॅर वोकल का नारा दिया। खादी के लिए तो वे कृतसंकल्पित हैं। क्योंकि उन्हें भी पता है कि काॅरपोरेट पूंजी रोजगार नहीं दे सकती है। इसके लिए बड़े पैमाने पर लघु एवं कुटिर उद्योग ही लगाना होगा।
प्रश्न: खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के द्वारा स्वावलंबन की कौन-कौन सी योजनाएं चलाई जा रही है?
उत्तर: अभी सभी योजनाओं की मुकम्मल जानकारी नहीं दे पाउंगा। हाल ही में मुझे दायित्व सौंपा गया है। बहुत सारी चीजों का अध्ययन कर रहा हूं। वैसे थोड़ी-बहुत योजनाओं की जानकारी आपसे साझा कर रहा हूं। हमारे यहां ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए लघु, कुटिर उद्यमियों को मात्र चार प्रतिशत के ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराई जाती है। यह ऋण 25 लाख तक हो सकता है। आपके प्रोजेक्ट के आधार पर आपको ऋण प्राप्त होगा। इसके लिए आपको पहले प्रोजेक्ट बनवा कर जिला उद्योग विभाग या खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के प्रांतीय कार्यालय या फिर खादी बोर्ड से पास करवाना होगा। जब इन तीनों में से कोई एक एजेंसी आपके प्रोजेक्ट को पास कर देती है तो आप किसी भी बैंक से यह ऋण ले सकते हैं। इस प्रकार के ऋण पर चार प्रतिशत का ब्याज है और सामान्य लाभुकों को 25 प्रतिशत तक की रियायत दी जाती है जबकि अनुसूचित जाति एवं जनजातियों को 35 प्रतिशत तक सब्सिडी का विधान है।
प्रश्न: और कौन-कौन सी योजना चलाई जा रही है?
उत्तर: हमारी संस्था, बुनकरों के कल्याण के लिए। फिर उन्हें कच्चा माल मुहैया कराने के लिए। बुनकर जहां अपना कपड़ा बुनते हैं या फिर कच्चे माल व उत्पाद का भंडारण करते हैं, उस सेड के निर्माण के लिए भी संस्था पैसा उपलब्ध कराती है। यह नहीं हमारी संस्था उत्पादित सामानों की खरीद भी करती है। बिक्री को बढ़ावा देने के लिए भी संस्था सब्सिडी देती है।
प्रश्न: खादी एवं गामोद्योग आयोग रोजगार के क्षेत्र में क्या-क्या कर रही है?
उत्तर: बहुत काम हो रहा है। आपको आश्चर्य होगा कि हमारे द्वारा संरक्षण में देश के कुल 11 करोड़ लोग प्रत्यक्ष रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। यह कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा सेक्टर है। विदेशी व्यापार में हमारा योगदान 30 प्रतिशत से अधिक का है। आपने जो पहले प्रश्न किया है उसका मैं दूसरे तरीके से भी जवाब दे सकता हूं। इस सेक्टर को कोई नज़रअंदाज़ कर ही नहीं सकता है। यह बड़ा सेक्टर है। हमारे प्रधानमंत्री तो इस पर विशेष रूप से ध्यान दे रहे हैं।
प्रश्न: झारखंड के लिए कुछ खास?
उत्तर: ऐसे तो अलग से कुछ नहीं है लेकिन झारखंड के लोग उद्यमी है। कई लोग हमसे संपर्क कर रहे हैं। पत्तल, दोना, अगरबत्ती स्टिक आदि के कुटिर उद्योग यहां आसानी से लगाए जा सकते हैं। हमारा प्रदेश देश का महत्वपूर्ण सिल्क उत्पादक है। इस क्षेत्र में भी काम हो रहा है। लाह के क्षेत्र में भी हमलोग काम कर रहे हैं। अभी कौशल विकास और कई कलस्टरों का निर्माण होना है। झारखंड उसका भी हब बनेगा।
प्रश्न: राजनीति में आपकी अभिरूचि?
उत्तर: बिल्कुल नहीं है। यदि मौका मिला तो छोड़ना भी नहीं है। अभी तक सांगठनिक काम में ही रहा हूं। इसलिए संगठन खड़ा करना, लोगों की अच्छाई के लिए कुछ करना जीवन का लक्ष्य है। उसी काम में लगा हुआ हूं।
प्रश्न: हमारे पाठकों के लिए कुछ कहना चाहेंगे?
उत्तर: जरूर! देखिए, स्वदेशी के बिना स्वाबलंबन संभव नहीं है। यह दोनों छोटे, लघु एवं कुटिर उद्योग से ही आएंगे। इसलिए हमें अपने उपर विश्वास कर खुद का रोजगार करना चाहिए। उद्यमिता जरूरती है। खेती, बुनकरी, शिल्पकारी आदि हमारा पुराना हुनर रहा है। इस इल्म को हमें आगे बढ़ाना होगा। तभी दुनिया के सामने हम सिर उठाकर स्वावलंबी राष्ट्रवाद की बात कर सकते हैं।
बौक्स
मनोज कुमार सिंह
सन् 1980 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए। 1983 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े। परिषद में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए राष्ट्रीय कार्यकारी मंडल के सदस्य तक रहे। सन् 2000 में स्वदेशी जागरण मंच की शाखा भारतीय विपनण विकास केन्द्र के झारखंड, बिहार, ओड़िसा के समन्वयक नियुक्त हुए। 2009 में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रय परिषद के सदस्य नियुक्त हुए। सन् 2011 से झारखंड काइक्रो वेलफेयर डवलपमेंट सेंटर के निदेशक हैं। मनोज सिंह मूल रूप से डलटनगंज के रहने वाले हैं और भौतिकी विज्ञान में स्नातकोत्तर हैं। मनोज विधि स्नातक की भी डिग्री ले रखी है लेकिन प्रैक्टिस नहीं कर रहे हैं। भूआर्थिकी अध्ययन टीम के साथ मनोज 2014 में चीन भी जा चुके हैं।
व्यूज
झारखंड में फिर से तांडव मचाने की फिराक में माओवादी
सांगठनिक ढ़ाचों को कर रहे मजबूत
गौतम चौधरी
इन दिनों झारखंड में बड़ी तेजी से माओवादी चरमपंथियों के हमले बढ़ रहे हैं। इस बात को लेकर केन्द्रीय और स्थानीय सुरक्षा एजेंसियां अब गंभीर होती दिख रही है। केवल बीते एक महीने के ही आंकड़े लिए जाएं तो राज्य के सात जिलों में 10 बड़े माओवादी हमले हुए हैं। इन हमलों में एक ग्रामीण सहित एक जवान शहीद हुए। सात माओवादी पकड़े गए और तीन जवान बुरी तरह घायल हुए हैं।
बीते एक साल में जबर्दस्त तरीके से बढ़े मामले
तथ्य व आंकड़े बताते हैं कि 2019 की अपेक्षा अगस्त 2020 तक उग्रवाद व नक्सल प्रभावित इलाके में चरमपंथी वारदातों में बढ़ोतरी हुई है। झारखंड में अगस्त 2019 तक 85 नक्सल और उग्रवादी घटनाएँ हुई थीं, जबकि अगस्त 2020 तक 86 घटनाएँ हुई। अगस्त 2020 के बाद राज्य में माओवादी घटनाओं में अप्रत्याशित तरीके से इजाफा हुआ है। सबसे चैंकाने वाली बात यह है कि अगस्त 2020 तक नक्सल और उग्रवादी घटनाएँ तब बढ़ी, जब पुलिस ने सबसे अधिक अभियान और एलआरपी चलाए। यह खतरनाक संकेत हैं और ये आंकड़े साबित करने के लिए काफी है कि माओवादियों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है और वे फिर से अपनी ताकत बढ़ाने लगे हैं। आंकड़ों और तथ्यों की मिमांशा से साफ परिलक्षित होता है कि पुलिस अभियान और सक्रियता में कोई कमी नहीं है लेकिन चरमपंथियों पर जो दबाव पड़ना चाहिए उसमें कमी दिखई दे रही है। हाल के महीनों में राज्य में सक्रिय अलग-अलग नक्सली संगठनों ने लेवी के लिए दहशत फैलाने के उद्देश्य से वाहनों में आगजनी और फायरिंग की घटनाओं को अंजाम दिया है। उग्रपंथियों के मनोबल में बढ़ोतरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नक्सलियों ने पुलिस पर हमले की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई, हालांकि ये तमाम योजनाएं पुलिस की सक्रियता से नाकाम हुई है लेकिन इससे माओवादी खतरों को कमतर नहीं आंका जा सकता है।
बिहार के ख़ूँख़ार माओवादियों ने झारखंड को बनया पराहगाह
बिहार के कई बड़े माओवादियों ने बिहार-झारखंड के सीमावर्ती जिलों में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। इसके अलावा पुलिस के द्वारा लगातार अभियान चलाने के बाद भी चाईबासा जिले में माओवादियों का तांडव जारी है। यही नहीं माओवादी गतिविधियों पर नजर रखने वाले जानकारों का मानना है कि विगत कुछ महीनों में सरकार की कुछ नीतियों के कारण माओवादी समर्थकों में यह संदेश गया है कि रघुबर दास के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार की तुलना में हेमंत सोरेन की सरकार माओवादियों के प्रति लचीला रवैया अपना रही है। न्यूजविंग नामक हिन्दी की एक वेबसाइट का दावा है कि नक्सली अपने संगठन को दोबारा मजबूत करने के इरादे से झारखंड क्षेत्रों के अपने पुराने सहयोगियों से संपर्क करना शुरू कर दिए हैं। एक ओर पुलिस नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज करने और उन्हें आर्थिक क्षति पहुंचाने की कवायद कर रही है, वहीं माओवादी टूट चुके संगठन को फिर से संगठित करने के लिए लगातार वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। यही नहीं माओवादी नेतृत्व फिर से नए लड़ाकों की बहाली में जुट गया है। इसके साथ ही माओवादियों ने अपने कमजोर पड़ चुके राजनीतिक विंग को भी ज्यादा प्रभावशाली बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
झारखंड में सक्रिय माओवादी नेता
जैसे ही झारखंड की सरकार बदली माओवादियों ने अपने नेतृत्व में भारी फेरबदल किया। भाकपा माओवादी ने ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो (ईआरबी) सह पोलित ब्यूरो सदस्य प्रशांत बोस उर्फ किशन उर्फ बूढ़ा को हटा कर उनके स्थान पर रंजीत बोस उर्फ कंचन को ईआरबी का प्रमुख बना दिया। रंजीत बोस पार्टी के सेंट्रल मेंबर कमेटी के सदस्य हंै। बता दें सेंट्रल मेंबर कमेटी भाकपा माओवादी का सबसे प्रभावशाली समिति है। रंजीत बोस को झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में संगठन को मजबूत बनाने की ज़िम्मेदारी दी गई है। 65 वर्ष के रंजीत बोस की तीनों राज्यों में अच्छी पकड़ है। वह झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में कई पुलिस मुठभेड़ में संगठन का नेतृत्व कर चुके हैं। संगठन में इसी काम को देखते हुए रंजीत बोस को ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो के प्रमुख की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी है। झारखंड माओवादियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण प्रांत माना जाता है। जानकारों की मानें तो भाकपा माओवादी सेंट्रल मेंबर कमेटी में फिलहाल 9 सदस्य हैं। इसमें से पांच सदस्यों का मुख्यालय झारखंड में ही है। दैनिक भास्कर की वेबसाइट का दावा है कि प्रशांत बोस उर्फ किशन दा उर्फ मनीष उर्फ बुढ़ा, मिसिर बेसरा उर्फ भास्कर उर्फ निर्मल जी उर्फ सागर, असीम मंडल उर्फ आकाश उर्फ तिमिर, अनल दा उर्फ तुफान उर्फ पतिराम मांझी उर्फ पतिराम मराण्डी उर्फ रमेश और प्रयाग मांझी उर्फ विवेक उर्फ फुचना उर्फ नागो मांझी उर्फ करण दा उर्फ लेतरा सक्रिय रूप से झारखंड में संगठन को मजबूत करने में लगे हैं।
झारखंड में माओवादियों के दो बड़े केन्द्र
झारखंड में माओवादियों के दो बड़े सेंटर हैं। एक बूढ़ा पहाड़ और दूसरा पारसनाथ। इन दोनों स्थानों पर लगातार माओवादी गतिविधियों संचालित होती रहती है। पूर्ववर्ती सरकार के दिनों में माओवादी सिमट कर इन्हीं दो क्षेत्रों में रह गए थे लेकिन अब माओवादी पहाड़ और जंगलों से निकल कर अपने आधार वाले गांव में बैठक और जनसंगठनात्मक गतिविधि संचालित करने लगे हैं। सरकारी आंकड़ों में राज्य के 24 में 19 जिले उग्रवाद प्रभावित हैं। इनमें 13 जिले अति उग्रवाद प्रभावित हैं। जानकार सूत्रों की मानें तो राज्य में अभी भी 550 अतिप्रशिक्षित माओवादी सक्रिय हैं।
झारखंड में माओवाद की समस्या पुरानी
झारखंड में माओवादी की समस्या पुरानी है। राज्य बनने से पहले से यहां बड़े पैमाने पर माओवादी सक्रिय रहे हैं। राज्य बनने से लेकर अब तक पुलिस कार्रवाई में 846 माओवादी मारे गए हैं। लैंड माइंस विस्फोट और माओवादियों का पुलिस के साथ मुठभेड़ की लंबी लिस्ट है। यही नहीं माओवादियों के साथ लड़ाई में अबतक 500 से अधिक जवान शहीद हो चुके हैं। देश के कई राज्य माओवादी उग्रवाद की समस्या से जूझ रहा है। इन राज्यों में से झारखंड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा बुरी तरह इस समस्या से परेशान है। माओवादियों को प्राप्त बड़े पैमाने पर आर्थिक स्रोतों का पता लगाने के लिए न्यायमूर्ति एमबी. शाह के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया गया था। न्यायमूर्ति शाह आयोग ने साफ तौर पर माना कि इन राज्यों में गैर कानूनी तरीके से खनिजों के उत्खनन से मिलने वाले रकम का एक बड़ा हिस्सा माओवादियों को प्राप्त होता है। इसके साथ ही माओवादी तेनू के पत्ते और नासपाती के बागानों से भी बड़े पैमाने पर लेवी वसूलते हैं। यही नहीं माओवादी मझोले और छोटे व्यापारियों एवं नौकरी पेशे वालों से भी बड़े पैमाने पर लेवी लेते हैं। इन्हीं पैसे से माओवादी अपनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। इसपर रोक के लिए राष्ट्रीय जांच अभिकरण कई व्यापारियों के खिलाफ मामला भी दर्ज कर रखा है, बावजूद इसके माओवादियों को अभी भी बड़े पैमाने पर फंडिंग की बात सामने आयी है। इसपर रोक लगा पाने में न तो रघुबर सरकार सफल हो पायी और न ही हेमंत सरकार को सफलता मिल पा रही है।
माओवादी समस्या का भविष्य
माओवादी समस्या का आगे क्या होगा कहना कठिन है लेकिन फिलहाल माओवादी समस्या पर हेमंत सरकार का नरम रवैया राज्य की जनता पर भारी पड़ने लगा है। इस समस्या को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। यदि अभी इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह राज्य की शांति और विकास में बाधक साबित होगा।
बौक्स
1. माओवादियों द्वारा भर्ती, पुनरीक्षण और सुदृढ़ीकरण, आईईडी तकनीक का बेहतर उपयोग।
2. बिहार के रहने वाले अरविन्द सिंह की 72 वर्ष की आयु में विगत दो साल पहले मौत हो गयी। उनका स्थान खाली पड़ा था। अभी हाल ही में नई सांगठनिक संरचना के तहत बिहार का ही तेज तर्रार माओवादी नेता मिथिलेश मेहतो को झारखंड की कमान सौंपी गयी है। मिथलेश कई मामलों के माहिर हैं। संगठन खड़ा करने में अरविन्द सिंह जैसा ही मिथलेश अन्य नेताओं की अपेक्षा युवा भी हैं और जन मिलिया संगठन में बड़ी अहमियत रखते हैं। कमान मिलने के बाद जनवरी में वे झारखंड आए थे और फिर बिहार लौट गए। फरवरी में उनके आने और अपना काम संभाल लेने की बात बताई जा रही है। मिथलेश के आने से झारखंड में तेजी से माओवादी गतिविधि और हमले बढ़ने की संभावना जताई जा रही है।
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Gautam Chaudhary
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