मधुपुर हार पर BJP का मंथन, अनुशासन की चाबुक से भीतरघातियों पर कसेगी नकेल

मधुपुर हार पर BJP का मंथन, अनुशासन की चाबुक से भीतरघातियों पर कसेगी नकेल

गौतम चौधरी 

मधुपुर उपचुनाव में हार के बाद भारतीय जनता पार्टी अपने सांगठनिक संरचना को न केवल चाक-चौबंद करने में लगी है, अपितु दल के अंदर ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की भी योजना बना रही है, जिसके कारण लगातार भाजपा की किरकिरी हुई है। मसलन, प्रदेश भाजपा नेतृत्व उन नेताओं पर नकेल कसने की तैयारी में जुट गयी है, जिन्होंने हाल के दिनों में पार्टी लाइन से हटकर काम किया है और प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से प्रतिपक्षी सत्तारूढ़ गठबंधन को लाभ पहुचाया है। 

पार्टी सूत्रों से मिली खबर में बताया गया है कि झारखंड प्रदेश कार्यसमिति सदस्य सत्येंद्र सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने एक कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी उस तथ्यों की पड़ताल करेगी जिसके कारण मधुपुर में पार्टी के जीत का समीकरण बदल गया और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। यह कमेटी विक्षुब्धों के बारे में भी पता करेगी। यही नहीं यह कमेटी राज्य सरकार के एक प्रभावशाली आईएएस अधिारी की गतिविधियों की भी जांच करेगी। दरअसल, इस चुनाव में राज्य सरकार के एक प्रभावशाली सचिव ने राजनीतिक गतिविधि में भाग लिया और सत्तारूढ़ गठबंधन को बड़े पैमाने पर सहयोग पहुंचाया।  मधुपुर उपचुनाव में हार के कारणों की समीक्षा में भाजपा बड़े पैमाने पर बाहरी और भीतरी कारणों की जांच करने वाली है। इसमें भाजपा उम्मीदवार गंगा नारायण सिंह के खिलाफ कहां-कहां खुलाघात हुआ और कैसे भीतरघात हुआ, इस बारे में व्यापक रिपोर्ट तैयार करने की योजना बनी है।

रिपोर्ट के आधार पर पार्टी में सख्त अनुशासन का संदेश देने के लिए पूर्व मंत्री राज पलिवार के खिलाफ कार्रवाई की योजना भी बनी है। बस केवल घोषणा बांकी है।  पार्टी के आला नेता निर्दलीय उम्मीदवार अशोक ठाकुर और नोटा को मिले वोट को आधार मानकर जमीनी सच्चाई की पड़ताल कर रहे हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इन दिनों प्रदेश भाजपा की ओर से गठित कमेटी, मधुपुर विधानसभा क्षेत्र का लगातार दौरा कर रही है। सत्येन्द्र सिंह की अध्यक्षता वाली कमेटी मधुपुर विधानसभा उपचुनाव के उम्मीदवार गंगा नारायण राय एवं वहां सक्रिय रूप से लगे कार्यकर्ताओं से बात कर रही है। हार के बारे में पूरी तसल्ली से जांच की जा रही है। खासकर जिस कैरो प्रखंड इलाके से भाजपा ने जीत की सबसे अधिक आस लगा रखी थी, वहां  हार के कारणों पर खास तौर पर पड़ताल की जा रही है। इसके अलावा अल्पसंख्यक बहुल गांवों के भाजपा कार्यकर्ताओं से भी वोटिंग पैटर्न की जानकारी ली जा रही है। इसी तरह जिन गांवों के आधे लोग प्रदेश से बाहर रोजगार के लिए गए हैं, उन गांवों में भी 80-90 फीसदी मतदान की जांच प्रदेश भाजपा के द्वारा बनायी गयी कमेटी के द्वारा की जाएगी।  

भाजपा अपने हार के कारणों में समर्थक आधार वाले गांवों में कम वोटिंग प्रतिशत को भी कारण मान रही है। इसकी भी समीक्षा पार्टी की ओर से की जानी है। इसी तरह अल्पसंख्यकों वोटों के ध्रुवीकरण और हफीजुल हसन के खिलाफ किसी भी अल्पसंख्यक उम्मीदवार के चुनाव नहीं लड़ने के असर को भी पार्टी परखेगी। हार के मामूली अंतराल में मिसिंग लिंक को खोजने पर पूरा फोकस किया जा रहा है। 

प्रदेश भाजपा की रिपोर्ट में भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी और राज्य सरकार के महत्वपूर्ण विभाग के सचिव के पद पर तैनात अफसर की चुनाव में संदिग्ध भूमिका की भी खोज की जा रही है। इससे संबंधित तथ्यों से केंद्र सरकार के मंत्रियों को भी अवगत कराया जाएगा। उक्त अधिकारी पर खास समुदाय का वोट जुटाने के लिए विधानसभा क्षेत्र में बैठक करने का पुख्ता सबूत जुटाया जा रहा है।

इन तमाम मामलों में जब झारखंड प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पिछली बार की तुलना में इस बार हम लोग 40 हजार वोट ज्यादा लाए हैं। उपचुनाव में मामूली अंतर से हमारी पार्टी हारी है। इस चुनाव में चूक कहां हुई है, इसपर हमलोग समीक्षा कर रहे हैं। हम लोग इसकी गहराई तक जाने वाले हैं। आगे की रणनीति के लिए यह बेहद जरूरी है। 

कुल मिलाकर मधुपुर उपचुनाव की प्रतिछाया प्रदेश भाजपा पर लंबे समय तक रहने वाली है। भाजपा का आधार वोट बैंक, कथित उच्च वर्ग, व्यापारी समाज एवं शहरी मतदाताओं को माना जाता है। इस उपचुनाव में भाजपा को मत तो मिले हैं लेकिन आधार वोट में सत्तारूढ़ गठबंधन सी सेंध पार्टी को विचलित कर रहा है। अभी हाल ही में प्रदेश के दो उपचुनाव में भी भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है। उन दो उपचुनावों में भी भाजपा का आधार और पारंपरिक वोट बैंक के खिसकने के प्रमाण मिले हैं। इस बात से प्रदेश का भाजपा नेतृत्व चिंतित तो है लेकिन उस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। वर्तमान भाजपा नेतृत्व जिस रणनीति पर काम कर रहा है उससे राहत की उम्मीद कम ही है। दरअसल, भाजपा समाजवादी वोट बैंक को संभालने के चक्कर में खुद के पारंपरिक वोटों को खोती जा रही है, जो भविष्य में भाजपा के लिए घातक साबित होगा। 

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