रांची/ तिल हमारे दैनिक उपयोग का अन्न तो है ही साथ ही इसका औषधीय एवं धार्मिक उपयोग भी बहुत है। इसकी खेती कर किसान भाई बढ़िया आमदनी कर सकते हैं। तो आइए हम इसकी बेहतर खेती की जानकारी आपको उपलब्ध कराते हैं।
खेत का चयन
हल्की रेतीली, दोमट भूमि तिल की खेती के लिए उपयुक्त होती हैं। खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 5.5 से 7.5 होना चाहिए। भारी मिटटी में तिल को जल निकास की विशेष व्यवस्था के साथ उगाया जा सकता है।
खेत की तैयारी कैसे करें
अच्छी पैदावार के लिए किसान भाई को उत्तम जल निकास वाली भुमि का चयन करना चाहिए। एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से व 3-4 जुताईयां कल्टीवेटर अथवा देशी हल से करना चाहिए। जुताई के समय 5 टन गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर खेत में मिला देना चाहिए।
बुवाई का समय
बुवाई का समय तापक्रम एवं भूमि में नमी की उपलब्धता पर निर्भर करता है। बुवाई करते समय यह अवश्य देख लेना चाहिए कि तापक्रम ज्यादा व भूमि में नमी कम तो नहीं है। तिल की बुवाई का उचित समय 1 जुलाई से 15 जुलाई तक है लेकिन हर हालत में अंतिम सप्ताह तक अवश्य कर देनी चाहिए। ग्रीष्मकालीन तिल की वुवाई जनवरी माह के दूसरे पखवाडे़ से लेकर फरवरी माह के दूसरे पखवाडे़ तक करना चाहिए।
उन्नतिशील प्रजातियों के बीज
टी.के.जी. 308, जे.टी -11 (पी.के.डी.एस. -11), जे.टी -12 (पी.के.डी.एस. -12), जवाहर तिल 306, जे.टी. एस.8, टा-4, टा -12, टा -13, शेखर, प्रगति, आर.टी.-351 और तरूण अन्नत्तिशील प्रजातियां हैं। इसे किसान भाई अपने खेत में लगा सकते हैं।
बीज-दर प्रति हेक्टेयर
एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 3-4 किग्रा. स्वच्छ एवं स्वस्थ बीज का चुनाव करना चाहिए। कम या ज्यादा होने पर उपज में बढ़ोतरी की बजाय कमी हो जाती है। बीज को बोने से पहले उपचारित अवश्य कर लेना चाहिए।
बीज सोधन
बीज जनित रोगों से बचाव के लिए किसान भाई 2 ग्राम धीरम या 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा. बीज की दर से शोधित करना चाहिए।
बोने की विधि
बीज को कम गहराई पर बोना चाहिए। बीज का आकार छोटा होने के कारण बीज को रेत, राख या सूखी हल्की बलुई मिट्टी में मिलाकर बोना चाहिए। छिटकवां विधि से बुवाई करने पर 1.6-3.80 प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। कतारों में बोने के लिए सीड ड्रील का प्रयोग अगर किया जाता है तो बीज दर घटकर 1-1.20 किग्रा प्रति एकड़ हो जायेगा। बोने के समय बीजों का समान रुप से वितरण करने के लिए बीज को रेत, सूखी मिट्टी या अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ 1ः20 के अनुपात में मिलाकर बोना चाहिए। कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 सेमी रखते हुए इसको लगभग 3 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए।
उर्वरक का उपयोग
संतुलित उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण के सन्तुति के आधार पर ही करना चाहिए। मिट्टी का परीक्षण न कराया गया हो तो 30 किग्रा. नत्रजन 20 किग्रा. फास्फोरस तथा 20 किग्रा. गन्धक प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालना चाहिए। इसके लिए आप 20 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर का भी प्रयोग कर सकते हैं। नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस व पोटाश तथा गंधक की पूरी मात्रा, बुवाई के समय बेसल ड्रेसिंग के रूप में तथा नत्रजन की शेष मात्रा निराइ-गुड़ाई के समय डालना चाहिए।
निराई – गुड़ाई कैसे करें
प्रथम निराई गुड़ाई, बुवाई के 15-20 दिन बाद, दूसरी निराई 30-35 दिन बाद करना चाहिए। निराई – गुड़ाई करते समय पौधे की थिनिंग (विरलीकरण) करके उनकी आपस की दूरी 10 से 12 सेमी. कर लेना चाहिए। एलाक्लोर 50 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर बुआई के 3 दिन के अन्दर प्रयोग करने से खरपतवारों का नियन्त्रण काफी हद तक हो जाता है।
फसल सुरक्षा
कीट, पत्ती व फल की सूण्डी से सुरक्षा के लिए निम्न में से कोई एक कीटनाशी रसायन का छिड़काव करने से इनका नियंत्रण हो जाता है।
1/डाइमेथोएट 30 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर, 2/ क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.25 ली. हेक्टेरय, 3/ मिथाइल – ओ- डिमेटान 25 ई.सी .1 ली प्रति हेक्टेयर का उपयोग करना चाहिए। तिल के पत्ते पीले पड़ जाते हैं। यह बीमारी पत्तियों का रस चूसते हैं तथा कीट के अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों सूख कर गिर जाती हैं। रोकथाम के लिए डाइमेथोएट 30 ई.सी. 1.25 ली प्रति हेक्टेयर, 2/ क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.25 ली प्रति हेक्टेयर, 3/ मिथाइल – ओ- डिमेटान 25 ई.सी .1 ली प्रति हेक्टेयर का छिरकाव करना चाहिए।