प्रवासी मज़दूरों-मेहनतकशों के ख़िलाफ़ कुप्रचार और कार्रवाइयों के ज़ोरदार विरोध की ज़रूरत

प्रवासी मज़दूरों-मेहनतकशों के ख़िलाफ़ कुप्रचार और कार्रवाइयों के ज़ोरदार विरोध की ज़रूरत

पिछले कुछ अरसे में पंजाब के कुछ पिछड़े तत्वों ने पंजाब में प्रवासी मज़दूरों विरोधी माहौल बनाने की कोशिश की है। अफ़सोस की बात है कि कुछ प्रगतिशील संगठनों ने भी इस माहौल के प्रभाव को गंभीरता से लेने के बजाय इसमें बढ़ोतरी करने का काम किया है। ये पिछड़े तत्व समय-समय पर पंजाब में बसे मज़दूरों में प्रवासी विरोधी नफ़रत या फ़िरकापरस्त नफ़रत भड़काकर, भाईचारा तोड़ने का काम करते रहते हैं। भले ही पिछले समय में और इस बार भी इनके इस प्रचार को पंजाब के लोगों ने कोई ख़ास तवज्जों नहीं दी, लेकिन फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि इसका कोई असर देखने को मिला ही नहीं। हाँ, ज़रूर ही इसका कोई बहुत ज़्यादा प्रभाव लोगों पर नहीं पड़ा।

कुछ समय पहले मोहाली के एक गाँव में एक नौजवान का क़त्ल कर दिया गया, इस क़त्ल को अंजाम देने वाले 3 प्रवासी थे। इसके बाद ये पिछड़े और जनविरोधी तत्व जो लोगों को आपस में लड़ाकर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकना चाहते हैं, ने प्रवासियों के ख़िलाफ़ प्रचार करना शुरू कर दिया। बिना शक किसी अपराधी को उचित क़ानूनी सज़ा मिलनी चाहिए, लेकिन ऐसी घटनाओं को बहाना बनाकर पूरे समूह को ही अपराधी घोषित कर देना ग़लत है और यह लोगों को आपसी मार-काट में झोंकने का काम करता है। कुछ समय पहले इंग्लैंड में भी एक बच्ची के क़त्ल के बाद वहाँ बसे विभिन्न प्रवासी भाईचारे को निशाना बनाया गया था।

यहाँ कुछ घटनाओं का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है, जहाँ सीधे-सीधे प्रवासी मज़दूरों के ख़िलाफ़ नफ़रत का प्रदर्शन पिछले दिनों पंजाब में देखने को मिला। 11 अगस्त को मोहाली के गाँव जंडपुर में बड़े-बड़े बोर्ड लगाए गए, जिन पर लिखा था कि प्रवासियों को 9 बजे के बाद अपने घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं है। ये बोर्ड गाँव की पंचायत ने लगवाए थे। यह सीधा-सीधा प्रवासी मज़दूरों की आने-जाने की आज़ादी पर रोक था। खन्ना के गाँव कौड़ी में 24 अगस्त को लाउडस्पीकरों के ज़रिए यह ऐलान किया गया कि प्रवासियों का दाख़ि‍ला गाँव में बंद किया जाता है। साथ ही गाँव के निवासियों से यह भी कहा गया कि वे अपने घर पर प्रवासियों को किराए पर ना रखें और ना ही उन्हें काम पर रखें। ख़ासतौर पर अपील में यह भी कहा गया कि प्रवासियों को ज़मीन ना बेची जाए।

ऐसी ही प्रवासी विरोधी मानसिकता का प्रदर्शन जवाहरके गाँव की पंचायत द्वारा 24 नवंबर को पास किए गए प्रस्ताव में भी हुआ। इस प्रस्ताव में यह दर्ज है कि गाँव के निवासियों को ना तो अन्य राज्यों से आए प्रवासियों से शादी करने की इजाज़त है और ना ही वे गाँव में रहने वाले किसी पंजाबी से शादी कर सकते हैं। प्रस्ताव के अनुसार गाँव का कोई भी निवासी जो इसका उल्लंघन करता है, उसे गाँव से निकाल दिया जाएगा। प्रस्ताव की व्याख्या करते हुए गाँव की सरपंच के पति ने कहा, “गाँव के पास एक बाज़ार है, जहाँ अन्य राज्यों से आए बहुत सारे प्रवासी रहते हैं और इस प्रकार की कितनी ही घटनाएँ हैं, जिनमें किसी प्रवासी ने गाँव की किसी औरत से शादी की है। जैसे कि सभी जानते हैं कि गाँव की लड़की गाँव की बेटी होती है। इसीलिए हमने यह प्रस्ताव पारित किया है।” लेकिन इस प्रकार के प्रस्ताव सिर्फ़ पंजाब में बसे कामगारों की साँझ को तोड़ने का काम करते हैं यानी इसका फ़ायदा सिर्फ़ और सिर्फ़ लुटेरे हाकिमों को ही होता है।

जवाहरके गाँव की पंचायत ने इस एक प्रस्ताव में कई तरह के रूढ़ीवादी फ़ैसलों की झड़ी लगा दी है। सबसे पहली बात तो यह है कि अन्य राज्यों से आए प्रवासियों के ख़िलाफ़ अंधी नफ़रत का प्रदर्शन है। यहाँ यह बात समझने की ज़रूरत है कि आज दुनिया के लगभग सभी देशों में ही पूँजीवादी उत्पादन संबंध स्थापित हो चुके हैं। इस व्यवस्था के तहत विभिन्न क्षेत्रों, देशों में समान विकास नहीं बल्कि असमान विकास होता है, यानी कुछ क्षेत्र पिछड़ जाते हैं और कुछ ज़्यादा तरक़्क़ी करते हैं। असमान विकास इस मुनाफ़े पर टिकी व्यवस्था के वजूद से जुड़ा नियम है। इस पिछड़े और विकसित क्षेत्रों/देशों में बँटवारे के कारण, पिछड़े क्षेत्रों/देशों से लोग अधिक वेतन, मुक़ाबलतन बेहतर जीवन स्थितियों की तलाश में विकसित क्षेत्रों, देशों की तरफ़ प्रवास करते हैं। इसके अलावा साम्राज्यवादी हुक्मरानों द्वारा छेड़े जाने वाले युद्ध, प्राकृतिक आपदाएँ भी प्रवास का कारण बनते हैं। अन्य कारण जैसे कि डैमों आदि के निर्माण से भी लोगों का उजाड़ा होता है, और लोग प्रवास के लिए मजबूर होते हैं। लेकिन ये पिछले कारण इस व्यवस्था में प्रवास का मुख्य कारण नहीं, बल्कि इसके वजूद से जुड़ा नियम है, यानी असमान विकास ही प्रवास का मुख्य कारण है। प्रवास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे पूँजीवादी उत्पादन संबंधों में रोकना असंभव है और इसे रोकने की कोशिशें भी पिछड़ापन है।

पंजाब के मेहनतकशों के भाईचारे को तोड़ने की कोशिश में लगे ये पिछड़े तत्व पंजाब में प्रवास की असल स्थिति बताने की जगह मनगढ़ंत आँकड़े देकर “पंजाब ख़ाली हो गया”, “यहाँ पंजाबी आबादी ख़त्म होने के कगार पर है” का झूठा प्रचार करने में लगे रहते हैं। असल हालात ये हैं कि पंजाब की आबादी इस समय लगभग तीन करोड़ बीस लाख है। प्रवासियों की बात करें तो इनकी पंजाब में संख्या लगभग 35 से 40 लाख है। इसमें मौसमी प्रवास भी शामिल है यानी ऐसे प्रवासी जो थोड़ा समय काम करने के लिए आते हैं और फिर वापस चले जाते हैं। ये पंजाब की आबादी का दस से बारह फ़ीसदी बनते हैं। जितने प्रवासी इस समय अन्य राज्यों से पंजाब में हैं, उतने पंजाबी तो सिर्फ़ दिल्ली में ही बसे हुए हैं। अगर अन्य राज्यों में बसे पंजाबी भी जोड़ लिए जाएँ, तो उनकी संख्या पंजाब में आए प्रवासी मज़दूरों से कहीं ज़्यादा है। इसके अलावा पंजाबी इस देश से बाहर भी बसे हुए हैं (लगभग 60 देशों में पंजाबियों ने प्रवास किया है)।

इसके साथ ही इस प्रस्ताव में सीधे-सीधे औरत विरोधी मानसिकता का भी प्रदर्शन होता है। गाँव की लड़की कहकर असल में औरत को मर्दों की संपत्ति, एक वस्तु के रूप में पेश किया जा रहा है, जिसकी अपनी कोई मर्जी नहीं, बल्कि उसे गाँव की इज़्ज़त के नाम पर अपने सभी फ़ैसले गाँव के धनी लोगों के अनुसार लेने पड़ेंगे। औरतों को अपनी मर्जी के अनुसार चाहे गाँव के किसी अन्य निवासी के साथ या अन्य राज्यों से आए प्रवासी के साथ शादी करने का पूरा अधिकार है, इस अधिकार को तो बेहद सीमित नागरिक आज़ादी देने वाला देश का संविधान भी मान्यता देता है। पुरुष प्रधान समाज में (ख़ासकर भारत जैसे देश में) जहाँ औरतों की आज़ादी पर पहले से ही काफ़ी दमनकारी पाबंदियाँ हैं, वहाँ इस तरह के प्रस्ताव औरतों की स्थिति को और भी भयावह बनाने का ही काम करते हैं।

तीसरी, सीधी-सी बात है कि जवाहरके गाँव की पंचायत के प्रस्ताव में प्रेम विवाह का विरोध किया गया है। गाँव के निवासियों को आपस में विवाह करवाने की इजाज़त ना देने का यह ही मतलब है, क्योंकि तयशुदा विवाह की काफ़ी बड़ी बहुलता में गाँव के निवासी का विवाह किसी अन्य गाँव/शहर के निवासी के साथ ही किया जाता है। प्रेम विवाह के विरोध में यह पूर्वाग्रह पंजाब के लोगों में उल्लेखनीय हिस्से में मौजूद है। इतना ही नहीं कई प्रगतिशील कहलाने वाले लोग भी टेढ़े-मेढ़े ढंग से इसका विरोध करने तक उतर आते हैं। क़बीलाई युग के खुले सेक्स संबंधों से मनुष्य के इन रिश्तों ने (उत्पादक शक्तियों और उत्पादन संबंधों के विकास के कारण) एक पति-एक पत्नी विवाह और विवाह किसी ग़ैर की मर्जी की जगह लड़का-लड़की की अपनी पसंद के साथ (यानी प्रेम विवाह) करवाने का उन्नत पड़ाव हासिल किया है। लेकिन जवाहरके गाँव की पंचायत जैसे लोग इतिहास का पहिया पीछे मोड़ने और “गाँव की बेटी”, “गाँव की इज़्ज़त” की बदबूदार सोच के तहत इंसानी आज़ादी कुचलने की कोशिश में लगे हुए हैं।

इस प्रस्ताव में और भी बातें हैं, जिनकी चर्चा यहाँ ज़रूरी नहीं है। ऐसे पिछड़े फ़ैसलों का जनता को लाज़मी ही विरोध करना चाहिए और अपने जनवादी अधिकारों की रक्षा के लिए ऐसे क़दमों को अपनी एकता के दम पर पीछे धकेलना चाहिए। आज इंसानी आज़ादी का प्रोजेक्ट मौजूदा बेड़ियों यानी पूँजीवादी उत्पादन संबंधों को तोड़कर समाजवादी उत्पादन संबंधों के निर्माण में है, ना कि मानव द्वारा तोड़कर गिराई गई बेड़ियों को फिर से अपने पैरों में डालने में।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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