गौतम चौधरी
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की घोषणा के बाद अब यह तय हो गया है कि इस साल के 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) एवं अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो जाएगी। इधर अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में एक बार फिर से तालिबान के सिर उठाने की आशंका को बल मिलने लगा है। यदि अफगानिस्तान में तालिबान की ताकत फिर से बढ़ती है तो उसका प्रभाव भारत और पाकिस्तान पर पड़ना तय है। वैसे भी तालिबान का बेस पाकिस्तान ही रहा है। हालांकि जिस अमेरिका ने अपने हितों के लिए तालिबान को खड़ा किया इसके लड़ाके उसी के लिए भस्मासुर साबित हुए। 2400 सैनिक और 150 लाख करोड़ रूपये खर्च करने के बाद अब अमेरिकी प्रशासन को लगने लगा है कि अफगानिस्तान अभियान उसके लिए वियतनाम साबित हुआ है। तालिबान के तेबर और बयानों से यह साफ लगने लगा है कि अफगानिस्तान एक बार फिर से गृहयुद्ध का दंश झेल सकता है। अफगानिस्तान में यदि तालिबान मजबूत होता है तो वहां कथित तौर पर पाकिस्तान की स्थिति मजबूत होगी। यही नहीं अफगानी तालिबान के सहयोग से पाकिस्तान का सीमावर्ती इलाका भी बुरी तरह प्रभावित होगा।
याद रहे जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन हुआ तो उसने बड़े पैमाने पर हजारा समुदाय के शिया मुसलमानों की हत्या की थी। इसी साल जनवरी में बलूचिस्तान में 11 हजारे शिया समुदाय के लोगों की निर्मम हत्या ने इस बहस को और तेज कर दिया है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्र में अल्पसंख्यक कहे जाने वाले समुदायों के खिलाफ एक बार फिर से अभियान प्रारंभ होगा और जिस प्रकार तालिबानी राज में इनके नरसंहार किए गए उसी प्रकार का दौर फिर से प्रारंभ हो जाएगा। इसका एक छोटा नमूना पाकिस्तानी तालिबानियों ने जनवरी में प्रस्तुत कर दिया।
बता दें कि 3 जनवरी 2021 को पाकिस्तान स्थित बलूचिस्तान के माच प्रांत में पाकिस्तानी तालिबानियों ने 11 हजारा शियाओं की निर्मम हत्या कर दी। यही नहीं कथिक तालिबानी मुजाहिदों ने न केवल इन हजारों की हत्या की अपितु घटना की वीडियो रिकार्डिंग की और बाकायदा उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट भी कर दिया। मारे गए सभी शिया हजारे बेहद गरीब थे और स्थानीय कोयला खदानों में दिहाड़ी मजदूरी कर अपना परिवार पाल रहे थे। इस घटना पर भारत के शिया मुसलमानों ने जबरदस्ती प्रतिक्रिया व्यक्त की है। साथ ही दुनिया भर के शिया मुसलमानों का आह्वान कर इस घटना की निंदा करने की अपील की है।
इस घटना पर हैदराबाद के शिया मौलवी, मौलाना डॉ निसार हुसैन ने आरोप लगाया कि 1987 से 2005 के बीच पाकिस्तान में शियाओं सहित चार हजार अल्पसंख्यकों को तालिबान द्वारा मार दिया गया है। इन नरसंहारों के लिए उन्होंने वहाबी विचारधारा को जिम्मेदार ठहराया है। अपने बयान में उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा और मानवाधिकार संगठनों द्वारा विभिन्न प्रस्तावों के बावजूद, पाकिस्तान सरकार अल्पसंख्यकों के जीवन की रक्षा करने में विफल रही है। शिया मौलाना, अली हैदर फरिश्ते ने अपने बयान में कहा कि हजारा शियाओं की हत्या इस्लाम के उच्च और आदर्श मूल्यों के खिलाफ है। उन्होंने अपने बयान में कहा कि क्या हजरत अली के अनुयायी मुसलमान नहीं थे और क्या वे इंसान नहीं थे। उन्होंने अपराधियों को मृत्युदंड देने की मांग की ताकि एक मजबूत संदेश दिया जा सके। मौलाना शेन हैदर जैदी ने एक बयान में आईएसआईएस एवं तालिबान समर्थकों द्वारा कथित तौर पर मारे गए हजारा शिया पीड़ितों के परिवारों के लिए न्याय की मांग की। उन्होंने कहा कि अपराधियों ने उक्त आतंकी कृत्य का वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, जो न केवल इस्लाम विरोधी है अपितु मानवता को कलंकित करने वाला है। उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से न्याय की मांग कर मारे गए हजारों के परिवारों के साथ एकजुटता व्यक्त की।
इधर इदारे उलेमा-ए-हैदरी, दारुलशिफा हैदराबाद ने मौलाना मिर्जा इमाम अली बेग के नेतृत्व में मारे गए हजारा शियाओं के प्रति संवेदना प्रकट की गयी। मौलाना इमाम अली बेग ने घटना की निंदा करते हुए आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की और कहा कि शिया चाहे जिस देश में भी रहते हैं, उन्हें आगे आकर मानवता के खिलाफ कथित आतंकवादियों के इस घृणित कार्य की निंदा करनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग आतंक, अन्याय के खिलाफ चुप रहते हैं, वे उक्त अपराध में समान रूप से दोषी हैं।
तेलंगाना युवा सम्मेलन, हैदराबाद के सैयद हामिद हुसैन जाफरी ने भी इसकी करी निंदा की और कहा कि शोक संतप्त परिवार को पाकिस्तान सरकार मुआवजा दे। इस मामले में उन्होंने भारत की सराहना करते हुए कहा की यहां धर्म, भाषा, संस्कृति आदि में इतनी विविधता होने के बावजूद भी लोग शांति से रहते हैं, जबकि पाकिस्तान एक इस्लामिक राज्य है लेकिन वहां इस्लाम में विश्वास करने वाले भी सुरक्षित नहीं हैं। यह पाकिस्तानी इस्लामी गणराज्य की असफलता है। उन्होंने आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा कि आखिर पाकिस्तान किस प्रकार का इस्लामी गणराज्य राज्य है, जहां शिया हजारे सुरक्षित नहीं हैं।
बलूचिस्तान के सरहदी क्षेत्र में लगातार हत्याएं हो रही है। हत्याएं भी उन लोगों की हो रही है जो इस्लाम को तो मानते हैं लेकिन शिया हैं यानी हजरत अलि को मानने वाले हैं। अब पाकिस्तान के इन क्षेत्रों में भी अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान से लौटने का डर सताने लगा है। खासकर महिलाओं के बीच इसको लेकर व्यापक डर है। महिलाओं को लगने लगा है कि अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान जिस प्रकार महिलाओं पर अत्याचार किए गए थे उसी प्रकार का अत्याचार एक बार फिर से दुहराया जाएगा। इसका असर पाकिस्तान के इस क्षेत्र पर भी पड़ेगा। इसलिए अमेरिकी सैनिकों के लौटने से पहले भारत को इस आसन्न खतरों के लिए सावधान हो जाना चाहिए। साथ ही रूस आदि देश के साथ मिलकर एक ठोस नीति बनानी चाहिए। हालांकि अभी पाकिस्तान को इसका फायदा दिख रहा होगा लेकिन तालिबान का अफगानिस्तानी उभार पाकिस्तान के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए समय रहते पाकिस्तान को भी इसका हल ढूंढ लेना चाहिए।