जंग-ए-आजादी के महान रणनीतिकार मौलवी मोहम्मद जाफर  थानेसरी

जंग-ए-आजादी के महान रणनीतिकार मौलवी मोहम्मद जाफर  थानेसरी

स्वातंत्र समर में मुस्लिम नायक भाग-1

इफ्तेखार अहमद

मौलवी मोहम्मद जाफर थानेसरी महान स्वतंत्रता सैनानी थे। आजादी के परवाने मौलवी जाफर थानेसरी का जन्म 1837 में हुआ था। शुरुआत से उनके दिलों में आजादी की तड़प थी। बचपन की दहलीज पार करने के बाद मौलवी जाफर थानेसरी अपने कुछ साथियों के साथ दिल्ली आ गये और आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए। उन दिनों दिल्ली उस आंदोलनकारियों का केंद्र हुआ करता था। यह वही समय था जब फिरंगियों ने कलकता से बदल कर अपनी राजधानी दिल्ली को बनाई। अब दिल्ली पर अंग्रेजों का पूर्णरूपेण कब्जा हो चुका था। स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार किया जाने लगा।

अब मौलवी को लगा वे दिल्ली में सुरक्षित नहीं हैं। मौलवी मुहम्मद जाफर थानेसरी भाग कर थानेसर, जिसे अब कुरुक्षेत्र के नाम से जाना जाता है। जाफर साहब ने सरहदी प्रांत के स्वतंत्रता सेनानियों से संपर्क स्थापित किया तथा उन्हें राइफलें, सामान और नकदी भिजवाने का काम पूरा किया। गजन खां नामक गद्दार ने डिप्टी करनाल के कमिशनर को इसकी सूचना दे दी। इसी दौरान मुहम्मद जाफर के मित्र ने अपने नौकर को करनाल भेजा। नौकर थानेसर रात को पहुंचा और सोचा कि अहले सुबह मौलवी को इसकी सूचना देंगे। सुबह होने से पहले अंग्रेज कप्तान पासंज तलाशी का वारंट ले कर मौलवी साहब के घर पहुंच गया। सोने से पहले मौलवी मुहम्मद जफर संस्कृत भाषा में मुहम्मद शफी ठेकेदार अम्बाला को एक पत्र लिख चुके थे, जिसमें स्वतंत्रता सेनानियों को रुपया भेजने की बात लिखी थी। वह पत्र उनके कमरे में मिला परन्तु स्वयं वे फिरंगियों को चकमा देने में कामयाब हो गए। 12 दिसंबर 1863 पपली, अम्बाला, पानीपत होते हुए जफर दिल्ली पहुंचे और फिर वहां से अलीगढ़ चले गए।

कप्तान पासंज ने उनके भाई मुहम्मद सईद को मारपीट कर उनका पता मालूम कर लिया और फिर मौलवी थानेसरी को अलीगढ़ से गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के साथ ही यातनाओ का दौर शुरू हुआ। मौलवी साहब को एक छोटे से अंधेरे कमरे में रखा गया। खाने में दो रोटियां जिसमें आटा के साथ रेत भी मिला होता था और साग के उबले डंठल मिलता था। पांव में बेड़ियां और गले में लोहे की हंसली पहना दिया गया था। पहनने के लिए पजामा इतना छोटा होता था कि घुटने मुश्किल से ढंके होते थे। मौलाना को नमाज पढ़ने में भी बहुत मुश्किल होती थी। दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों की कारगुजारियों को जानने के लिए मौलवी साहब को बहुत निर्दयता के साथ मारा जाता था और कभी पूरी रात मार खाते गुजर जाती थी।

मौलवी साहब पर मुकदमा शुरू हुआ। मुकदमा एडवर्ड हावर्ड की अदालत में लगी थी। 2 मई 1864 को जायदाद की कुर्की और फांसी की सजा सुनाई गई। पुनः एडिशनल कमिश्नर की अदालत में अपील हुई जिसमें उनकी फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दी गयी। इस अपील का फैसला 16 सितम्बर 1864 को सुनाया गया।

मौलवी मुहम्मद जाफर थानेसरी ने अपनी किताब ‘‘काला पानी’’ में लिखा है, ‘‘जिस दिन फांसी की सजा का आदेश सुनाया जाने वाला था, एडवर्ड हावर्ड ने मुझे संबोधित करते हुए कहा कि तुम बहुत बुद्धिमान, शिक्षित, कानून जानने वाले और नगर के नंबरदार, रईश हो, परन्तु तुमने अपनी सारी बुद्धिमानी और कानूनदानी को सरकार के विरोध में खर्च किया। अब तुम्हें फांसी दी जाएगी, जायदाद जब्त होगी, तुम्हारी लाश भी तुम्हारे घरवालों को नहीं मिलेगी और तुम्हें फांसी पर लटका देख मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। मौलवी साहब ने जवाब दिया, ‘‘जान देना और लेना भगवान का काम है, आपके बस में नहीं वह प्रभु सब कुछ जाननेवाला है। कहीं मेरे मरने से पहले आपको ही न मार दे।’’ इस उत्तर से वह बहुत क्रोधित हुआ मगर फांसी देने से अधिक वह मेरा किया कर सकता था।’’

कुछ स्वतंत्रता सेनानी, जैसे-काजी मियां जान कैद में ही मर गए। कैद में स्वतंत्रता सेनानियों से कठिन से कठिन काम लिया जाता था। मौलाना याहिया अली रहट खीचते थे। मौलवी जफर को कागज काटने का काम दिया गया। मौलवी मुहम्मद जफर को अंबाला जेल से 11 जनवरी 1866 को पोर्ट ब्लेयर ले जाया गया। मौलवी 20 वर्ष बाद 9 नवम्बर 1883 को स्वदेश वापसी वापस आए। कुछ दिनों तक पुलिस की निगरानी में रहे। फरवरी 1888 की निगरानी समाप्त हुई।

मौलवी जाफर थानेसरी जहां भी जाते हिन्दू मुसलमान सब आदर करते। सत्य किसी को ज्ञात नहीं है। संभवतः थानेसरी, 1905 इस दुनिया को छोड़ कर सदा के लिए खुदा को प्यारे हो गए। ऐसे महान योद्धा को सादर प्रणाम।

नोट : बहुत जल्द आगे फिर दूसरी कड़ी लेकर जनलेख के पाठकों के समक्ष हाजिर होउंगा।

One thought on “जंग-ए-आजादी के महान रणनीतिकार मौलवी मोहम्मद जाफर  थानेसरी

  1. बहुत ही ज्ञानवर्धक और प्रेरक आलेख है, जो समाज को नयी दिशा दे सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »