भारत दर्शन/पर्यटन/ गुजरात जाएं तो अहमदाबाद के एतिहासिक स्थल को देखना न भूलें

भारत दर्शन/पर्यटन/ गुजरात जाएं तो अहमदाबाद के एतिहासिक स्थल को देखना न भूलें

गुजरात में प्रगति और समृद्धि का आगमन चालुक्य (सोलंकी) राजाओं के समय में हुआ। वैसे इस प्रदेश का इतिहास ईसा पूर्व लगभग 2 हजार साल पुराना है। इतिहास गवाह है कि महमूद गजनवी द्वारा कई बार लूटपाट के बाद भी चालुक्य राजाओं ने अपनी प्रजा की समृद्धि को बनाए रखा। यद्यपि इस गौरव काल के बाद गुजरात को मुसलमानों, मराठों और अंग्रेजों के शासन काल में बुरे दिन देखने पड़े थे फिर भी अतीत के साक्ष्य हिन्दू राजाओं के दौर के वैभव की कहानी स्वयं कहते हैं।

गुजरात कई आकर्षक दर्शनीय स्थलों की झांकी प्रस्तुत करता है। इस ‘इंद्रधनुषी राज्य’ में प्राकृतिक सौंदर्य तो भरपूर है ही, वन्य प्राणी अभयारण्य, उत्तम वास्तुकला के कारण गुजरात व्यापारियों को भी खासा आकर्षित करता है। अहमदाबाद गुजरात के प्रमुख शहरों में से एक है। सर थामस री ने इसे हिन्दुस्तान का सर्वाधिक सुंदर शहर कहा था, वहीं कपड़ा मिलों के कारण इसे ‘भारत का मैनचेस्टर’ भी कहा गया। आज भी अपने पारंपरिक स्वरूप को बनाए रखते हुए इस शहर ने नवीनता को भी सहजता से अपनाया है।

साबरमती आश्रम गांधीजी की कर्मस्थली रहे इसी स्थान से 1930 में डांडी मार्च की शुरूआत हुई थी। गांधीजी के द्वारा आरंभ की गई सारी रचनात्मक गतिविधियां आज भी जारी हैं। यहाँ पर हैंडीक्राफ्ट संेटर और एक चरखा फैक्टरी है तो ‘हृदय कुंज’, जहाँ गांधीजी रहा करते थे, को अब एक संग्रहालय बना दिया गया है। हर शाम बापू के जीवन पर आधारित एक ‘साउंड एंड लाइट शो’ भी आयोजित किया जाता है। वहाँ की सरकार ने साबरमती के तट को लंदन की टेम्स नदी की तर्ज पर संवार दिया है। ठीक टेम्स की ही तरह बैठने की जगह, लाइटें, पार्किंग, साफ-सफाई और शीघ्र ही वहाँ क्रूज चलाने की तैयारी है।

विश्व के सर्वश्रेष्ठ संग्रहालयों में से एक है। यहां पर 17वीं शताब्दी एवं उस के बाद निर्मित वस्त्रों का दुर्लभ संग्रह है। यहां पुरानी बुनाई की मशीनें, जरी, कढ़ाई आदि का काम देखने योेग्य है।

डाक टिकट संग्रह के शौकीनों के लिए खासी रूचि के हैं, यहाँ पर चित्रित पांडुलिपियों एवं मिनिएचर पेंटिंग्स का भी अच्छा संग्रह है।

अहमदाबाद रेलवे स्टेशन के निकट झूलती मीनारें व एक मस्जिद है जो हमेशा से ही पर्यटकों के लिए आकर्षण का कंेद्र रही है। इनकी एक मीनार को हिलाने से दूसरी मीनार अपने आप हिलने लगती हैं। वर्ष 2000 में आए प्रलयंकारी भूकंप से इन मीनारों को काफी क्षति पहुंची थी। इसके बाद ही इन मीनारों तक पर्यटकों के जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

भद्रा फोर्ट का निर्माण अहमद शाह ने करवाया था। वास्तुकला के सुंदर उदाहरण इस प्राचीन किले में अब सरकारी दफ्तर बने हुए हैं। इसी किले के सामने तीन दरवाजे के नाम से एक सुंदर द्वार है जिस का इस्तेमाल सुलतान महल में होने वाले कार्यक्रमांे को देखने के लिए करता था। मराठों ने इसे जीत कर इस में भद्रकाली का मंदिर बनवाया और किले को भद्रा फोर्ट नाम दिया।

पीले बलुआ पत्थर से बनी जामा मस्जिद भारत की खूबसूरत मस्जिदों में से एक है। इसमें 260 स्तम्भ और 15 गुंबद हैं। इसकी दीवारों पर हिन्दू स्थापत्य कला के सुंदर नमूने देखने को मिलते हैं।

सरखेज अहमदाबाद शहर की बाहरी सीमा पर है। यहाँ स्मारकों में बना सीढ़ी वाला कुआं पर्यटकों को खासा आकर्षिक करता है। यह जगह नक्काशीदार पत्थर की जालियों के कारण विश्वप्रसिद्ध है।

कांकरिया झील अहमदाबाद आने वाले पर्यटकों का लोकप्रिय पिकनिक स्थल है। इसका निर्माण 1451 में करवाया गया। इस झील के चारों तरफ बने हरे-भरे बाग इस की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। पास ही चिडि़याघर, एक्वेरियम और बालवाटिका आदि हैं। हर वर्ष दिसम्बर के अंत में यहाँ एक कार्निवाल आयोजित किया जाता है, जिसमें भाग लेने के लिए देश-विदेश से लोग अहमदाबाद आते हैं। इस कार्निवाल के अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप एवं प्रतिष्ठा के कारण इसे लगातार खूबसूरत बनाने का कार्य चल रहा है। यहां 14 जनवरी मकर संक्राति के अवसर पर पतंगबाजी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है। जब हम वहाँ गए तो उत्सव की तैयारियां जोरों पर थी। इसके अतिरिक्त नारायण स्वामी का मंदिर, हाथी सिंह जैन मंदिर, अहमदशाह की दरगाह, धारिया का गंुबद, आदि भी दर्शनीय स्थल हैं। अहमदाबाद सूती वस्त्रों और पारंपरिक गहनों के लिए भी विख्यात है। यहां के मुख्य बाजारों में कालुपुर, सी.जी.रोड, आश्रम रोड, ला गार्डन, रिलीफ रोड, चोखा बाजार प्रमुख हैं।

अपने अहमदाबाद प्रवास के दौरान प्रसिद्ध गांधी आश्रम में ‘साहित्यालोक’ के तत्वावधान में आयोजित साहित्यिक गोष्ठी में जाने का अवसर भी मिला। 1967 से स्थापित एवं पंजीकृत यह संस्था लगातार मासिक गोष्ठियां आयोजित कर स्थानीय साहित्यकारों को महत्त्वपूर्ण मंच प्रदान करती है तो देश के अन्य भागों से आने वाले साहित्यकारों को क्षेत्रा के साहित्यकारों से मिलन कराती है। संस्था के अध्यक्ष के अनुसार गत चार दशकों में यहाँ नवोदित रचनाकारों से स्थापित कवियों तक सभी को अपनी रचनाएं प्र्रस्तुत करने का अवसर मिला है। देश के अनेक प्रतिष्ठित साहित्यकारों से समृद्ध इस संस्था द्वारा मुझे संगोष्ठी की अध्यक्षता करने का सम्मान प्रदान किया जाना अविस्मरणीय है।

गुजरात राज्य के गठन के समय साबरमती नदी के पश्चिमी तट पर नई राजधानी बनाई गई जिसे गांधीनगर कहा गया। महात्मा गांधी के नाम पर बसा यह शहर चंडीगढ़ की तरह भारत का दूसरा सुनियोजित शहर है जो विभिन्न सेक्टरों में बंटा काफी खुला और वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। इस आधुनिक शहर को बसाने की योजना 1960 में बनी तथा 1970 में यहाँ राज्य के सचिवालय ने काम करना आरंभ किया। गांधीनगर के हर सेक्टर में बाजार और सामुदायिक केंद्र है। यहां विधानसभा, सेक्टर 28 का चिल्ड्रंस पार्क, सेक्टर-9 का सरिता उद्यान, डियर पार्क और अक्षरधाम मंदिर तो उल्लेखनीय हैं ही लेकिन नवग्रह पार्क की चर्चा किये बिना गांधीनगर की बात अधूरी रहेगी।

इस पार्क में विभिन्न औषधीय पौधे हैं तो नौ ग्रहों, नक्षत्रों से संबंधित वृक्षों तथा अन्य चीजों को इस ढंग से प्रस्तुत किया गया है कि खेल-खेल में काफी जानकारी मिल सकती है। हरे-भरे इस पार्क में बैठने के लिए काफी स्थान है तो अनेक छतरियां भी हैं जहाँ बेंच और कुर्सियां आपके स्वागत और विश्राम के लिए उपलब्ध हैं।

गांधी नगर जिले के अडालच नामक स्थान पर बना त्रिदेव मंदिर अपनी भव्यता के लिए जाना जाता है। इस मंदिर में दादा भगवान नामक संत जोकि हिन्दू-जैन समन्यवक मत के अधिष्ठाता थे के दर्शन की झलक मिलती है। इस अपेक्षाकृत नए मत के अति विशाल मंदिर परिसर के शांत वातावरण में दादा भगवान के जीवन दर्शन से संबंधित प्रदर्शनी है तो रंग-बिरंगे फूल और फव्वारे भी हैं। इसी परिसर में बने विशाल भोजनालय में शानदार गुजराती भोजन जिसमें अनेक व्यंजन ही नहीं, छाछ, पापड़ और सलाद भी शामिल है, मिलता है, वह भी भरपेट। गांधीनगर विश्वविद्यालय के प्रो. राकेश पटेल के विशेष आग्रह पर हम इस मंदिर का अवलोकन कर धन्य हुए।

गांधीनगर एक खूबसूरत और आधुनिक नगर है। देर रात तक यहाँ के पार्को में भीड़-भाड़ और रौनक रहती है। देर रात तक बसों की सुविधा उपलब्ध रहने के कारण आवागमन सुचारु रूप से चलता रहता है। वैसे टैक्सी और आटो रिक्शा भी उपलब्ध हैं लेकिन इनका किराया महानगरों से अधिक होने के कारण बाहर से आने वालो को असुविधा का सामना करना पड़ता है। आवश्यकता है गांधीनगर के रेलवे स्टेशन को भव्य बनाते हुए इसे देश के प्रमुख नगरों से जोड़ा जाए।

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