इतिहास के आईने में बिहार और तिरहुत : सुगांव डायनेस्टी और विद्यापति

इतिहास के आईने में बिहार और तिरहुत : सुगांव डायनेस्टी और विद्यापति

पूर्वी चम्पारण जिला के सुगौली प्रखंड के सुगांव को दिल्ली के बादशाह गयासुद्दीन तुगलक (1320से1324) के कालखण्ड में तिरहुत की राजधानी होने का गौरव प्राप्त हुआ। तब तिरहुत के राजा हरिसिंह देव थे जिनकी राजधानी सीमारामपट्टन (सिमरौनगढ़) थी। यह वर्तमान में घोडासहन से पांच कोस उत्तर नेपाल में स्थित है तथा कर्णाट वंश के क्षत्रिय राजा नान्यदेवा ने इसे तिरहुत की राजधानी बनायी थी।वे 18जुलाई 1097 ईस्वी को राजगद्दी संभाले थे। इस वंश के राजाओं ने संस्कृत शिक्षा को काफी प्रोत्साहित किया था।इस वंश के अंतिम राजा हरिसिंह देव थे जिनपर 1324ईस्वी में गयासुद्दीन तुगलक ने हमला कर इस राज्य को नेस्तनाबूत कर दिया। तुगलक ने इस राजा के प्रधान पंडित कामेश्वर ठाकुर को तिरहुत का राजा घोषित कर दिया।

पंडित कामेश्वर ठाकुर ने अपनी राजधानी वहां से हटाकर सुगांव में बनायी जिसे इतिहास मे सुगांव डायनेस्टी और ठाकुर डायनेस्टी के नाम से जाना जाता है। यह सुगांव और कोई नहीं सुगौली प्रखंड का सुगांव डीह है जहाँ आज भी राजधानी के अवशेष बिखरे पड़े हैं। इस वंश ने सोलहवीं शताब्दी तक तिरहुत पर राज किया। कामेश्वर के पुत्र भोगेश्वर, इनके पुत्र गंगेश्वर, इनके पुत्र कीर्ति सिंह (नावल्द), तब राजा भोगेश्वर के छोटे भाई भव सिंह के पुत्र देव सिंह राजा बनाये गये। राजा देव सिंह के पुत्र महाराज शिव सिंह हुए जिनके दरबार में विश्व प्रसिद्ध कवि कोकिल विद्यापति संरक्षित थे और उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना यहां की। 1400 ईस्वी में महाराज शिव सिंह ने अपना सोने का सिक्का चलाया और दिल्ली सल्तनत जो तुगलक वंश का अंतिम राजा नसीरुद्दीन महमूद (1395 से1412 ईस्वी) था को कर -टैक्स देने से इनकार कर दिया। इस पर आक्रोशित बादशाह नसीरुद्दीन ने सुगांव राज पर हमला कर दिया और भारी रक्तपात की। बड़ी संख्या में सुगांव राज के सैनिक व नागरिक मारे गए तथा राज महल को भी तहस नहस कर दिया एवं शिव सिंह को गिरफ्तार कर दिल्ली ले गया। यह युद्ध 1401 ईस्वी में हुआ था।

इसी वर्ष विद्यापति दिल्ली दरबार पहुँच अपने गीत और काव्य से बादशाह को प्रसन्न कर, राजा शिव सिंह को कारागार से मुक्त करा, सुगांव वापस ले आए। इस बीच उनके छोटे भाई पद्म सिंह राजा की गद्दी पर रहे जिन्होंने पद्मपुर नामक गाँव बसाया और वहां यज्ञ कर उक्त गाँव ब्राह्मणों को दान कर दिया। उन्होंने वहां घुड़दौड़ पोखर का भी निर्माण कराया। वहीं पद्मपुर गाँव आज पदुमकेर गाँव के नाम से मशहूर है जो पताही प्रखंड में स्थित है। वह पोखर भी वहां दो सौ एकड़ में फैला हुआ है। पद्म सिंह ने महाराज शिव सिंह के आते ही राजमुकुट वापस कर दी। महाराज नसीरुद्दीन के आक्रमण और राज की बर्बादी एवं युद्ध के दौरान हुए खून-खराबी से काफी आहत हो चुके थे।

उन्होंने राजधानी बदलने का निर्णय लिया और दरभंगा के निकट गजरथपुर गाँव में राजधानी बनायी तथा उसका नाम शिव सिंह पुरम के नाम से विख्यात हुआ। 1404 ईस्वी में शिव सिंह यहां सुगांव से अपने लाव- लश्कर और माल-असबाब के साथ शिवसिंह पुरम चले गए। यहां से उनके वंशजों ने सोलहवीं शताब्दी तक तिरहुत पर राज किया। इस प्रकार राजा देव सिंह के कार्यकाल से लेकर महाराज शिव सिंह के कार्यकाल 1404ईस्वी तक महादेव के परम भक्त और महाकवि कोकिल विद्यापति सुगांव मे रहे जहाँ दानवाक्यावली, विभागसरा, पदावली समेत अनेक ग्रंथों की रचना की और गीत सृजित किया।

इस बात की पुष्टि चम्पारण गजेटियर, इतिहासकार पी सी राय चैधरी, फरिस्ता, बेदिबन अभिलेख, समेत अनेक ग्रंथों से होती है। दुर्भाग्य से हमारे जनप्रतिनिधियों और सरकारों ने कभी इस स्थल की खुदाई कराकर इस तथ्य की पड़ताल तक नहीं करायी जिससे हमारा गौरवशाली अतीत अनावृत नहीं हो पा रहा है। जंगल में जहाँ कभी किला हुआ करता था उसके द्वार पर राजा कामेश्वर ठाकुर द्वारा स्थापित भगवती स्थान जिसे द्वारदेवी के नाम से जाना जाता है लोगों की भक्ति का केन्द्र है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी और पर्यटन विकास मंत्री श्री प्रमोद कुमार जी को आवेदन पत्र दिए एक वर्ष हो गए पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

(यह आलेख, लेखक-पत्रकार संजय ठाकुर की अप्रकाशित इतिहास की पुस्तक, ‘विद्यापति और सुगांव (अतीत के आईने में चम्पारण) से प्राप्त किया गया है। इसमें एतिहासिक तथ्यों की कमी हो सकती है लेकिन इस लेख से तिरहुत के इतिहास का परत खुलता-सा प्रतीत होता है। आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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