समाचार मीमांसा
गौतम चौधरी
दरअसल, आज मैं एक समाचार की मीमांसा के लिए प्रस्तुत हुआ हूं। इन दिनों ‘दैनिक भास्कर’ अखबार ही पढ़ रहा हूं। मुझे लगता है, फिलहाल हिन्दी पट्टी में इससे बढ़िया कोई अखबार नहीं है। वैसे इस अखबर के संपादकीय पन्ने पर जिस दिन संपादकीय नहीं होता है, मुझे बहुत बुरा लगता है और ऐसा प्रतीत होता है कि मैंने नाहक समय और पैसा बरबाद कर दिया। खैर, अभी मैं समाचार-पत्र की व्याख्या पर कुछ भी लिखने के मूड में नहीं हूं। वैसे भी इन दिनों भारत के समाचार माध्यमों को भयंकर महामारी ने जकड़ लिया है। जब घोषित रूप से कई समाचार समीक्षक ही ऐसा कह रहे हैं, तो उस पर अलग से कुछ कहने का मतलब नहीं है। ऐसी विपरीत परिस्थिति में यदि कोई समाचार माध्यम अपनी पत्रकारिता धर्म का निर्वहन कर रहा है तो यह केवल काबिल-ए-गौर नहीं काबिल-ए-तारीफ भी है।
चलो, मूल मुद्दा पर आते हैं! आज हमने एक खबर पढ़ी है। उस खबर में बताया गया है कि अमेरिका के पुरूषों ने गूगल सर्च इंजन पर 16.5 करोड़ बार अपनी पत्नी को काबू करने और उसे प्रताड़ित का आडिया ढुढ़ा है। हालांकि इस खबर में एक छोटा-सा बौक्स भी लगा है कि महिलाओं ने अपनी सुरक्षा के लिए भी गूगल का ही सहारा लिया। दरअसल, न्यूजीलैंड स्थित ओटागो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह डेटा एकत्रित किया है। अखबार में छपी खबर में दावा किया गया है कि उक्त शोधकर्ताओं ने गूगल सर्वे ट्रैकिंग का अध्ययन किया है और उसी से इस बात का खुलासा किया गया है।
इधर जो बौक्स में लगी हुई छोटी-सी खबर है उसमें महिलाओं के पक्ष की बात रखी गयी है। मसलन, महिलाओं के पक्ष पर अध्येताओं का खुलासा और चौंकाने वाला है। कोरोना महामारी के कारण दुनिया भर में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान महिलाओं ने गूगल पर अपने बचाव के लिए भी सर्च किए हैं। केवल अमेरिका में महिलाओं ने 122 करोड़ बार पुरूष क्रूरता से बचाव के तरीके ढुंढे। आंकड़े बताते हैं कि ‘‘वह मुझे मार डालेगा’’ 1.07 करोड़ वार गूगल पर ढुंढ़ा गया। ‘‘वह मुझे मारता है’’ 32 करोड़ बार ढुंढ़ा गया। यह हाल दुनिया के सबसे सभ्य कहे जाने वाले देश संयुक्त राज्य अमेरिका का है।
यह केवल अमेरिका का ही चित्र नहीं है। सच पूछिए तो दुनिया में आज भी पुरुष मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं आया है। आए दिन भारत में भी महिलाएं गृह हिंसा का शिकार होती है। हालांकि भारत में बड़े पैमाने पर इसे धर्म, जाति और परंपरओं के नाम पर दबा दिया जाता है। महिलएं भी चुप रहती है क्योंकि बदनामी का उन्हें भी डर रहता है। खास कर मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग की महिलाएं तो तभी मामले को सार्वजनिक करती है जब पानी सर के उपर से गुजर जाता है।
हम में से कम ही लोगों को यह पता होगा कि जब यूरोप में चर्च का शासन था तो महिलाओं को डायन कह कर जिंदा जला देने की परंपरा थी। अभी हाल ही में मैंने शम्स ताहिर खान का एक वीडियो देख रहा था। वह बताता है कि रोम की किसी महिला ने 600 से अधिक पुरुषों की हत्या करवा दी। वह पुरुषों की क्रूरता के खिलाफ महिलाओं की मदद करती थी। इसलिए उसने एक प्रकार का जहर इजाद किया था और जिस किसी महिला को उसका पति या पुरुष पार्टनर तंग करता था उसे वह दे दिया करती थी। इस कारण महिला खूंखार हो गयी और उसके सिर 600 से अधिक पुरुषों के कत्ल का इल्जाम लगा।
महिलाओं पर अत्याचार के किस्से हर देश और हर समय के हैं। भारत में भी माहाराज ययाती ने अपनी एक पुत्री को एक ऋषि को भेंट कर दिया। उस ऋषि ने अपने गुरू को 800 घोड़े देने थे। इस कारण ययाति की पुत्री को उसने कई राजाओं और कई ऋषियों को भोग के लिए सौंपा और अंत में जब वह किसी काम की नहीं रही तो राजा ययाति को लौटा दिया। इस बीच उक्त ऋषि भी उस राजकुमारी के साथ अनैतिक संबंध बनाता रहा। इस्लाम में महिलाओं को बेहद पवित्र माना गया है लेकिन अफगानिस्तान, ईरान, सीरिया, सऊदी अरब आदि मुस्लिम देशों में जरा देखिए महिलाओं की क्या स्थिति है। भारत में तलाक के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करने का सिलसिला लम्बे समय से चल रहा है। यह इस्लाम के कायदे की गलत व्याख्या द्वारा संभव होता रहा है।
सच पूछिए तो सभ्यता की कसौटी ही स्त्री सम्मान है। कौन-सा समाज महिलाओं की कितनी इज्जत करता है, इसी आधार पर उसकी सभ्यता की उत्कृष्टता मापी जाती रही है। वर्तमान समय में भी हमें इस परंपरागत कसौटी का उपयोग करना चाहिए। हिन्दू मिथकों में इंद्र-अहिल्या की कथा बेहद रोचक है। एक बार गौतम की पत्नी अहिल्या के साथ देवताओं के राजा इंद्र ने छल से शारीरिक संबंध बना लिया। इस बात की जानकारी जब गौतम को हुई तो उन्होंने इसकी शिकायत उस समय के सबसे प्रभावशाली राजा जनक से की। जनक ने संपूर्ण आर्यावर्त के राजाओं का एक सम्मेलन बुलाया और इंद्र की पूजा बंद करवा दी। तिरहुत में महिलाओं का सम्मान आज भी बहुत महत्व रखता है। एक वैदिक ऋषि के नाम की चर्चा यहां करना उचित रहेगा। एक वैदिक ऋषि हुए हैं सत्यकाम जावाल। दरअसल, इनकी माता का नाम जावाल था और इनके गोत्र-कुल आदि का कोई पता नहीं था। गौतम के गुरूकुल में जब वह बच्चा पढ़ने आया तो उसने कहा कि मेरी मां कहती है कि उसके पिता के बारे में उसे जानकारी नहीं है। इस जवाब पर गौतम प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि तूने सत्य कहा इसलिए तुम्हारा नाम सत्यकाम होगा और तू अपनी माता के नाम से जाना जाएगा और जावाल तुम्हारा गोत्र होगा।
यही नहीं भारत के सबसे प्रभावशाली सम्राटों में से एक विक्रमादित्य चन्द्रगुप्त भी अपनी माता के नाम से ही जाने गए। उन्हें मगध कुल पर गर्व नहीं था। उन्हें वैशाली के लिच्छवी कुल पर गर्व था और वे जब कभी भी गर्वोक्ति करते थे तो यही कहते थे कि लिच्छवियों के दौहित्र यानी नाती हैं। यही कारण है कि भारत के इस सम्राट ने जो कीर्तिमान स्थापित किया वह दुनिया में किसी ने नहीं किया। जनक नंदिनी सीता को कौन नहीं जानता है। इसलिए जो समाज महिलाओं का सम्मान न करे उसे सभ्य कहलाने का कोई अधिकार नहीं है। वर्तमान दौर राक्षसी प्रवृति का दौर है। इसलिए दुनिया महिलओं को प्रताड़ित करने का गुर सिखने की कोशिश में है लेकिन याद रहे जब मधु-कैटभ ब्रम्हा के बनाए श्रृष्टि पर आक्रमण करता है तो देवी भगवती ही राक्षसों का संहार करती है। इसलिए महिलाओं का सम्मान करना सीखिए यह केवल महिला नहीं यह श्रृष्टि की धूरि है।