गौतम चौधरी
ट्विटर ने हाल ही में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) कर्नाटक चैप्टर के ट्विटर अकाउंट को ब्लू टिक दिया है। आइए सबसे पहले ट्विटर का ब्लू टिक क्या है, उसको समझते हैं। जैसा कि हमस ब जानते हैं ट्विटर-एक लोकप्रिय सोशल मीडिया का बड़ा प्लेटफॉर्म है। इसका उपयोग व्यक्तियों/संगठनों द्वारा आभासी सार्वजनिक स्थान पर अपने विचारों, विचारधाराओं का प्रचार प्रसार के लिए किया जाता है। किसी भी हैंडल (ट्विटर अकाउंट) से जुड़ा एक ब्लू टिक खाते को वैधता ही प्रदान नहीं करता है अपितु यह एक प्रकार का प्रमाण-पत्र होता है कि जो तथ्य आभासी सोशल साइट पर डाला गया वह पूर्ण सत्य है और उसका सत्यापन ट्विटर प्रबंधन जानकारों की टीम के द्वारा किया जा चुका है। मसलन, इसे ट्विटर द्वारा ‘सत्यापित‘ करार दिया गया है। प्रचार पाने के लिए ट्विटर प्रबंधन से व्यक्तियों/संगठनों के द्वारा ब्लू टिक की अमूमन मांग भी की जाती है।
पीएफआई के कर्नाटक चैप्टर के एकाउंट को ब्लू टिक देकर ट्विटर ने न केवल भारतीय सुरक्षा एजेंशियों को को चुनौती दी है अपितु भारतीय समाज के आपसी संबंधों को बिगाड़ने की भी कोशिश की है। यह न तो व्यवसाय की नैतिकता है और ही सामान्य नैतिकता पर खड़ा उतरता है। इसके परिणामस्वरूप पूरे देश के बुद्धिजीवियों, सिविल सोसाइटी से जुड़े लोगों और देश एवं समाज की सुरक्षा के लिए चिंतित राष्ट्रवादियों ने विरोध प्रदर्शन किया है। देश की एकता और अखंडता के प्रति सजग सुरक्षा एजेंसियों ने इस पर संज्ञान भी लिया है। हालांकि कुछ लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि एक मात्र प्रतीक पर यह हंगामा क्यों है लेकिन उन लोगों को यह समझना चाहिए कि आभासी दुनिया में इस प्रकार की बातें अब बहुत महत्व रखने लगी है। जब से मामला सामने आया है, ट्विटर के प्रति आशंकाएं बढ़ने लगी है। ट्विटर प्रबंधन पीएफआई के निर्णय को सही ठहराने की कोशिश कर रहा है साथ ही यह भी साबित करने की कोशिश कर रहा है कि इस पूरे मामले में सरकार की ही गलती है। जबकि सत्यता इससे कई मील दूर है।
बता दें कि पीएफआई की राजनीतिक शाखा, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के इशारे पर बेंगलुरु में हिंसा हुई थी। धार्मिक असहिष्णुता के कारण हुई हिंसा इतनी तीव्र थी कि इसने पूरे पुलिस थाने को नष्ट कर दिया और करोड़ों की सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान किया गया। इससे पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों की मंशा साफ-साफ दिख रही है।
अपहरण से लेकर राजनीतिक हत्याओं तक, पीएफअई न केवल पूरे भारत में, बल्कि सीरिया सहित मध्य पूर्व के कई देशों में बदनाम है। यह संगठन आतंकवादी गतिविधियों में भी शामिल रहता है। यह भारत में आईएसआईएस जैसे वैश्विक आतंकवादी संगठन के लिए लड़ाके उपलब्ध कराता रहा है। इसकी गैर कानूनी गतिविधियों को लेकर एनआईए जांच भी कर रही है। पीएफआई प्रचार पाने और सस्ते राजनीतिक लाभ के लिए सांप्रदायिक वैमनस्यता भड़काने के लिए भी जाना जाता है। अभी हाल ही में पदम वन क्षेत्र में केरल के वन अधिकारियों द्वारा की गई एक अनुसंधान ने चैकाने वाले तथ्य प्रस्तुत किए हैं। पीएफआई वहा अपने कैडरों को आईईडी और बम बनाने का प्रशिक्षण दे रहा था।
ऐसे समय में जब ट्विटर भारतीय संघ के द्वारा बनाए गए नए संशोधित आईटी अधिनियम का पालन करने में आना-कानी कर रहा है, तब इस प्रकार की गतिविधि ट्विटर प्रबंधन की नैतिकता और तटस्थता पर सवाल खड़े कर देता है। एक घोषित चरमपंथी संगठन के पोस्ट पर ब्लू टिक देने का ट्विटर का निर्णय संदेह पैदा कर रहा है। सरकार देश के हित को ध्यान में रखते हुए ट्विटर से जवाबदेही चाहती है लेकिन ट्विटर देश के कानूनों को ठेंगा दिखाने पर आमादा है। यह स्वतंत्रता कही न कही हमारी सुरक्षा पर भारी पड़ रहा है।
पीएफआई जैसे संगठनों को वैधता प्रदान करके, ट्विटर ने साबित कर दिया है कि राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सोशल मीडिया दिग्गजों की गतिविधियों की जांच के लिए नए कानूनों की आवश्यकता है। अब हम फिर इस सवाल पर वापस आते हैं कि महज ब्लू टिक से एक चरमपंथी संगठन के हिंसक अतीत को भुला दिया जाएगा और उसे वैध मान लिया जाएगा? इसका उत्तर निश्चित रूप से नकारात्मक ही होगा। आखिरकार, वर्षों से हिंसा में संलिप्त इस संगठन को मात्र रंगों के प्रतीक से वैध नहीं ठहराया जा सकता है। ट्विटर को भी इस बात का ख्याल रखना चाहिए। साथ ही ट्विटर जैसे आभासी दुनिया के दिग्गज सामाजिक प्लेटफार्म को यह समझना चाहिए कि इस प्रकार के चरमपंथी संगठन किसी के लिए हितकारी नहीं होते हैं।