गौतम चौधरी
भारत की पौराणिक लोक कथाओं में से एक, नर्मदा और सोणभद्र की प्रेम कहानी बेहद चर्चित और रोचक है। ये कहानी इतनी जीवंत है कि आज भी लोग इसे बड़े चाव और भाव से पढ़ना व सुनना-सुनाना पसंद करते हैं। कहते हैं नर्मदा ने अपने प्रेमी शोणभद्र को ऐसी सजा दी, जो वह आजतक याद रखे हुए है। लोककथाओं में वर्णित तथ्यों के अनुसार सोणभद्र ने नर्मदा को प्रेम में धोखा दिया था। कई कथाओं में सोणभद्र जान बूझकर ऐसा नहीं किया बताया गया है लेकिन कई जगह सोणभद्र को व्यभिचारी कहा गया है। मुझे लगता है सोणभद्र जिन क्षेत्रों से प्रवाहित होता है उस क्षेत्र में सोणभद्र के चरित्र को थोड़ा अच्छा करके दिखाया गया है लेकिन जिस क्षेत्र से होकर नर्मदा बहती है उस क्षेत्र में सोणभद्र को भयानक व्यभिचारी बताया गया है। तो आइए दोनों की अभिशप्त प्रेम कहानी के बारे में जानते हैं।
नर्मदा प्रेम में धोखा खाने के बाद आजीवन कुंवारी रहने का फैसला कर लेती है और यही प्रेमी सोणभद्र के लिए वह सजा तय कर देती है। कभी-कभी आत्मनिर्वासन खुद के लिए बेहतर और प्रतिपक्षी के लिए सजा बन जाता है। यही नर्मदा ने किया और आजीवन कुंवारी रही। नर्मदा की प्रेम कथा लोकगीतों और लोककथाओं में अलग-अलग मिलती है। जैसा की मैंने ऊपर में लिखा भी है लेकिन पात्र में कोई बदलाव नहीं है।
नर्मदा और शोणभद्र की शादी होने वाली थी। विवाह मंडप में बैठने से ठीक पहले नर्मदा को पता चला कि शोणभद्र की दिलचस्पी उसकी दासी जुहिला में है। दरअसल, जुहिला नाम की भी एक नदी है, जो जनजातीय क्षेत्र मंडला के पास बहती है। प्रतिष्ठत कुल की नर्मदा यह अपमान सहन न कर सकी और मंडप छोड़कर उल्टी दिशा में चली गई। शोणभद्र को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह नर्मदा के पीछे भागे लेकिन तबतक देर हो चुकी थी। नर्मदा लौटकर नहीं आयी और उसी दिन से सोणभद्र की उलटी दिशा में बहने लगी। नर्मदा आज भी उलटी दिशा में बहती हुई सिंध सागर यानी अरब सागर में जागर गिरती है। यदि भूगोल की बात करें तो भारत की लगभग सभी प्रमुख नदियां उत्तर-पश्चिम से पूरव-दक्षिण की ओर बहती है लेकिन नर्मदा पूरव से पश्चिम की ओर बहती है। कहते हैं आज भी नर्मदा एक बिंदु विशेष से शोणभद्र से अलग होती दिखाई पड़ती है।
राजकुमारी नर्मदा राजा मेखल की पुत्री थी। एक बार नर्मदा ने अपने पिता से जिद्द कर दी कि उसे गुलबकावली का पुष्प चाहिए। राजा मेखल ने अपनी अत्यंत रूपसी पुत्री के लिए यह तय किया कि जो राजकुमार गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प उनकी पुत्री के लिए लाएगा वे अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ संपन्न करेंगे। राजकुमार सोणभद्र गुलबकावली के फूल ले आए। अतः उनसे राजकुमारी नर्मदा का विवाह तय हुआ।
नर्मदा अब तक सोणभद्र के दर्शन न कर सकी थी लेकिन उसके रूप, यौवन और पराक्रम की कथाएं सुनकर मन ही मन वह भी उसे चाहने लगी थी। विवाह होने में कुछ दिन शेष थे लेकिन नर्मदा से रहा न गया उसने अपनी दासी जुहिला के हाथों प्रेम संदेश भेजने की सोची। जुहिला को ठिठोली सूझी और उसने नर्मदा के वस्त्राभूषणों में सजकर सोणभद्र से मिलने चल दी। सोणभद्र के पास पहुंची तो राजकुमार उसे ही नर्मदा समझने लगे और प्रेमालाप में व्यस्त हो गए। जुहिला की नियत में भी खोट आ गया। राजकुमार के प्रणय-निवेदन को वह ठुकरा न सकी। इधर नर्मदा का सब्र का बांध टूटने लगा। दासी जुहिला के आने में देरी हुई तो वह स्वयं सोणभद्र से मिलने चल पड़ी। वहां पहुंचने पर सोणभद्र और जुहिला को साथ देखकर वह अपमान की भीषण ताप में जल उठी। तुरंत वहां से उल्टी दिशा में चल पड़ी और फिर कभी न लौटने का प्रण ले दिया। सोणभद्र अपनी गलती पर पछताते रहे लेकिन स्वाभिमान और विद्रोह की प्रतीक बनी नर्मदा आजतक उलटी दिशा में बह रही है।
प्रेम में धोखा खाने के बाद नर्मदा ने हमेंशा कुंवारी रहने का प्रण कर लिया। युवावस्था में ही संन्यासी बन गई। रास्ते में घनघोर पहाड़ियां आईं। हरे-भरे जंगल आए। पर वह रास्ता बनाती चली गईं। कल-कल छल-छल का शोर करती बढ़ती गईं। मंडला के आदिमजनों के इलाके में पहुंची। कहते हैं आज भी नर्मदा की परिक्रमा में कहीं-कहीं उसका करुण विलाप सुनाई पड़ता है। नर्मदा नें बंगाल सागर की यात्रा छोड़ी और सिंध सागर की ओर दौड़ी। भौगोलिक तथ्य देखिए कि हमारे देश की सभी बड़ी नदियां बंगाल सागर में मिलती हैं लेकिन गुस्से के कारण नर्मदा अरब सागर में समा गई।
नर्मदा की कथा आज भी जनमानस में जीवंत है। चीर कुवारी नर्मदा का सात्विक सौन्दर्य, चारित्रिक तेज और भावनात्मक उफान नर्मदा परिक्रमा के दौरान हर संवेदनशील मन महसूस करता है। कहने को वह नदी रूप में हैं लेकिन चाहे-अनचाहे उनका मानवीकरण होता रहता है। नर्मदा और सोणभद्र की पौराणिक, लोककथा और यथार्थ के भौगोलिक सत्य का सुंदर समिश्रन है। यह जीवंत है और हमें सामान्य जीवन में अनुशासन का पाठ भी पढ़ाती है।