गौतम चौधरी
राजनीतिक हलकों में हाल के वर्षों में हेट स्पीच यानी अभद्र भाषा एक खास प्रकार का आदर्श बन गया है। दरअसल, इसे वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला देते हुए कुछ लोग जायज ठहराने लगे हैं लेकिन यह किसी कीमत पर सही नहीं है। वास्तविकता यह है कि यह उस समुदाय के अस्तित्व की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है जिसको लक्ष्य कर अभिव्यक्त किया जाता है। आजकल हेट स्पीच इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनलों पर समाचार बहस का हिस्सा बन गया है। समाचार माध्यमों के विभिन्न वाहिनियों पर जानबूझकर हिंदू-मुस्लिम को एक-दूसरे के खिलाफ अंतहीन युद्ध के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिसका कोई संभावित समाधान संभव ही नहीं है। हालांकि, ये समाचार वाहिनियों पर बहस करवाने और करने वाले भूल जाते हैं कि भारतीय संविधान समानता के सिद्धांत को कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध है एवं प्रत्येक को बंधुत्व के बंधन में बांधे रखने के लिए प्रोत्साहित करता है।
जब हम हेट स्पीच वाली वहसों पर नजर दौराते हैं तो हमारे सामने कई प्रश्न खड़े होते हैं, जिसमें से सबसे बड़ा सवाल क्या सचमुच दोनों समुदाय एक-दूसरे को नष्ट करने के लिए तत्पर हैं? सच पूछिए तो ऐसा कुछ भी नहीं है। वास्तविकता यह है कि इतिहास की पुनर्व्याख्या और घृणास्पद भाषणों के माध्यम से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को सही ठहराने की कोशिश मात्र की जा रही है। नफरत की इस राजनीति में, धर्म दूसरे के विमर्श को वैधता प्रदान करने के लिए एक लामबंद करने वाला उपकरण बन जाता है। धार्मिक नेता भी इस नकारात्मक अभियान का हिस्सा बन जाते हैं, विभाजनकारी बयान देते हैं, जो ध्रुवीकरण की प्रवृत्ति को हवा देता है। फिलहाल के दिनों में जो राजनीतिक और समाजिक स्तर पर विभाजनकारी बयान देने और समाज को ध्रुविकृत करने की कोशिश कर रहे हैं उनके उपर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने लगाम लगाने की कोशिश की है। विगत दिनों माननीय सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने इस प्रकार के विभाजनकारी बयानों पर न केवल गंभीर टिप्पणी की अपितु तीन प्रदेश की पुलिस को सख्त लहजे में हिदायत दी कि तय किए गए समय के बीच हेट स्पीच देने वालों के मामले में कार्रवाई नहीं हुई तो उसे न्यायालय की अवमानना समझी जाएगी। मसलन, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नफरत भरे भाषणों के खिलाफ दाखिल किए गए एक याचिका पर अपनी टिप्पणी में कहा कि यह देश के भविष्य के लिए और हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरनाक है।
सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने कहा कि भारत का संविधान नागरिकों के बीच एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और बंधुत्व की परिकल्पना प्रस्तुत करता है, जो व्यक्ति की गरिमा का आश्वासन देता है और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सरकारों को इसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का आदेश दिया। जिस दिन माननीय न्यायालय ने नफरत फैलाने वाले भाषणों के नियमन के लिए दिशानिर्देश स्थापित करने के लिए न्यायालय से अनुरोध करने वाली कुल ग्यारह रिट याचिकाओं की पीठ द्वारा सुनवाई की जा रही थी। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने समाचार वाहिनियों पर पर अनियंत्रित घृणास्पद भाषणों पर गंभीर चिंता व्यक्त की और यह टिप्पणी कि हमारा देश कहाँ जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने अभद्र भाषा के खिलाफ सख्त नियमों की आवश्यकता पर जोर दिया है।
शीर्ष अदालत के फैसले का काफी महत्व है, क्योंकि यह देश में बढ़ते ध्रुवीकरण और नफरत की गति को रोकने के लिए एक मिसाल कायम करने की क्षमता रखता है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि केवल निहित स्वार्थ वाले लोग, जैसे राजनेता, नफरत की राजनीति से लाभान्वित होते हैं। सत्तारूढ़ के दिल में मंशा है कि राष्ट्र को अस्थिरता के खतरों से बचाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर भारत के अल्पसंख्यकों के संविधान में विश्वास को पुष्ट किया है। इसे सभी नफरत फैलाने वालों के लिए एक सबक और राष्ट्र प्रेमियों के लिए एक प्रेरणा के रूप में देखा जाना चाहिए।