अमरदीप यादव
12 जनवरी 2006 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ए पीजे अब्दुल कलाम रामकृष्ण मिशन पोरबंदर में स्वामी विवेकानंद की 143वीं जयंती पर विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ वैल्यू एडुकेशन एंड कल्चर (विवेक) के उद्घाटन में बतौर मुख्य अतिथि थे। डॉ कलाम ने अपने संबोधन में कहा कि टाटा फाउंडेशन की एक प्रदर्शनी में उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बैंगलोर के निर्माण के लिए जमशेदजी नसरवानजी टाटा और स्वामी विवेकानंद के बीच हुए पत्राचार के पत्रों को देखा और वे एक साधु की दूरदृष्टि और व्यापक सोच का प्रशंसक हो गए।
25 जुलाई 2020 को रामकृष्ण आश्रम राजकोट के अध्यक्ष स्वामी निखिलेश्वरानंद सत्संग की प्रश्नोत्तरी सत्र में इस ऐतिहासिक संस्मरणों को विस्तार से बताते हैं कि इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंसेज, बेंगलूरु की स्थापना के पीछे विवेकानंद की प्रेरणा थी।
31 मई 1893 को दो भारतीय जापान के योकोहामा से कनाडा के वैंकूवर तक पानी के जहाज पर एक साथ यात्रा कर रहे थे। दोनों अपने क्षेत्रों में बहुत भिन्न थे, एक संन्यासी शिकागो धर्म सभा में भाग लेने जा रहे थे और उद्योगपति जमशेदजी शिकागो में एक औद्योगिक प्रदर्शनी के लिए जा रहे थे। इस दौरान विवेकानंद ने जमशेदजी को विज्ञान के प्रति अपनी व्यापक सोच को बताया कि विज्ञान का उद्देश बाहय दृश्यमान विविधता के मध्य विद्यमान एकत्व की खोज ही है। रसायनशास्त्र का अंतिम लक्ष्य ऐसे एक मूलतत्व की खोज है जिससे सभी पदार्थों के रहस्य का पता चल सके। भौतिक विज्ञान एकत्व ऊर्जा की खोज में रत है। यह आध्यात्मिक लगनेवाली बात पूर्णतः वैज्ञानिक है। यह भारतीय वैज्ञानिक जीवनदृष्टि है। इसी का प्रयोग जितना भौतिक विज्ञान में हुआ उतना ही धर्म में हुआ। अतः भारत का धर्म वैज्ञानिक है और विज्ञान धार्मिक। इनमें आपस में कोई विरोधाभास नहीं है। इसी कारण 19 वी शताब्दी के प्रारम्भ तक भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केवल उन्नत ही नहीं सर्वव्यापक थी। अंग्रेजों की नीतिओं इस समृध्द वैज्ञानिक परम्परा को नष्ट किया। ब्रिटिश शासन उच्च शिक्षा, अंतरराष्ट्रीय तकनीक और शोध प्रवाह भारत में स्थापित करना नही चाहते हैं। आपका प्रयास भारत में ऐसी अंतरराष्ट्रीय विज्ञान शोध संस्थान खोलने की होनी चाहिए, जमशेदजी इस विचार से काफी प्रभावित और प्रेरित हुए।
दोनों उसके बाद योकोहामा से वैंकूवर के कनाडाई बंदरगाह के लिए एसएस एम्प्रेस ऑफ इंडिया पर यात्रा शुरू किया। वे 25 जुलाई 1893 तक सहयात्री थे।
यात्रा के पांच वर्षों बाद नवंबर 23, 1898 को जमशेदजी टाटा ने स्वामी विवेकानंद को पत्र लिखकर यह स्मरण करवाया कि उस जहाज यात्रा की उनकी चर्चा अब सार्थक होगी क्योंकि टाटा ने भारतीय विद्यार्थियों के लिए एक विज्ञान शोध संस्था बनाने का निश्चय किया है। टाटा ने उस दौर में 2 लाख स्टर्लिंग पाउंड (30 लाख रुपए) की राशि इस कार्य के लिए समर्पित की है शेष 44 लाख के लिए आपके अपील की जरूरत है।
इसके समर्थन में बस्वामीजी का अपने द्वारा स्थापित किए ‘प्रबुद्ध भारत’ इस अंग्रेजी मासिक पत्रिका के अप्रैल 1899 के अंक में इस विषय पर एक संपादकीय प्रसिद्ध हुआ। ‘‘श्री टाटा की योजना’’ शिर्षक इस लेख का निचोड़ निम्नलिखित है।
भारत को अगर प्रगति करनी है अथवा संसार के बड़े-बड़े राष्ट्रों की कतार में अपने आपको बिठाना है, तो पहले हमें अनाज की समस्या हल करनी होगी। आज के इस तीव्र स्पर्धा के युग में खेती और व्यापार इन दो मुख्य क्षेत्रों में आधुनिक विज्ञान का उपयोग करना ही एकमात्र उपाय इस समस्या को सुलझाने का है। आज मनुष्य के हाथ में नए-नए यंत्र आ रहे हैं ऐसी स्थितियों में अपने पुराने साधन और पुराने मार्ग टिक नहीं पाएँगे। जो लोग अपनी बुद्धि के सहारे कम से कम शक्ति का उपयोग कर प्राकृतिक साधन सामग्री का अधिक से अधिक उपयोग नहीं कर सकेंगे उनका विकास रुक जाएगा। उनके भाग्य में पतन और विनाश ही होगा। उनको इससे बचाने के लिए कौन सा भी उपाय नहीं है।
प्राकृतिक शक्ति संबंधी ज्ञान प्राप्त करने का भारतीयों का मार्ग और प्रशस्त करना यह टाटा की योजना का ढाँचा है। यह योजना कार्यान्वित करने के लिए करीबन 74 लाख रुपए लगेंगे इसलिए कुछ लोगों को लगता है यह योजना एक कल्पनाविलास है। इसका जवाब यह है कि देश के एक उद्योगपति श्री टाटा अगर 30 लाख रुपये दे सकते हैं, तो देश के अन्य नागरिक मिलकर बचे हुए पैसे इकट्ठा नहीं कर सकते? यह योजना कितनी महत्वपूर्ण है यह सभी को मालूम है।
जमशेदजी के पत्र में वर्णित शोध संस्थान के लिए स्वामीजी ने भगिनी निवेदिता को भेजा था और उन्होंने मिलकर शोध संस्थान की विस्तृत योजना तैयार की। बंगलोर की पश्चिम दिशा में पांच किलोमीटर दूरी पर मैसूर के महाराजा श्री कृष्णराज वोडेयार चतुर्थ ने लगभग 4 एकड़ जमीन दान में दिया। जुलाई 1902 में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु हो गई और दो साल बाद जमशेदजी की मृत्यु हो गई, इस बात से अनित्य कि उनकी साझा दृष्टि पांच साल बाद साकार होगी। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की स्थापना 1909 में हुआ था और फरवरी 1911 में इसका नाम भारतीय विज्ञान संस्थान कर दिया गया। आज, यह भारतीय का गौरव है और दुनिया के प्रमुख शोध अध्ययन केंद्रों में से एक है।
(लेखक भाजपा ओबीसी मोर्चा झारखंड प्रदेश अध्यक्ष है।)