गौतम चौधरी
समय के साथ महिलाओं ने अपने ज्ञान और आत्म-जागरूकता को समुन्नत बनाया है। साथ ही अपनी उन्नति को भी सुगम बनाया है। महिलाओं के पास आधुनिक दुनिया में अपनी आकांक्षाओं को विकसित करने और साकार करने के कई अवसर हैं। हैदराबाद की तैयबा बेगम खेड़ीव जंग इसका सबसे बड़ा उदाहरण प्रस्तुत की हैं। तैयबा बेगम जैसी महिलाओं के बारे में पढ़ना और उनके बारे में जानना हर किसी को प्रेरित करता है। वह पहली मुस्लिम महिला स्नातक थीं, जिन्होंने जीवन भर सभी महिलाओं की शिक्षा के लिए दृढ़ता से लड़ाई लड़ी। उनके उत्कृष्ट जीवन की एक झलक अपने शैक्षिक अधिकारों के लिए लड़ने वाली हजारों भारतीय मुस्लिम महिलाओं को प्रेरणा दे सकती है।
तैयबा बेगम ऐसे समय में बड़ी हुईं जब शिक्षित होना महिलाओं के लिए बिल्कुल भी सही माना जाता था। उन्होंने 1894 में मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री पूरी की। ऐसा करने वाली वह पहली मुस्लिम महिला थीं। एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में, उन्होंने ब्रह्म समाज के वार्षिक महिला सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने अंजुमन-ए-ख्वातीन-ए-इस्लाम का नियंत्रण भी ग्रहण किया, जो उन दिनों बेगम रुकैया सखावत हुसैन द्वारा महिलाओं की शिक्षा और कौशल में सुधार करके महिलाओं के लिए मुक्त का रास्ता बन गया था। उन्होंने 1905 में एक उपन्यास ‘अनवारी बेगम’ भी लिखी। उपन्यास, हैदराबाद के घरों में निवास करने वाली मुस्लिम महिलाओं के जीवन पर केन्द्रित है। यह उपन्यास उन महिलाओं के सामाजिक सुधारों का समर्थन करता है और जीवंत है। तैयबा बेगम को भारतीय लोक संगीत में योगदान के लिए भी जाना जाता है।
1907 में, तैयबा बेगम ने, सरोजिनी नायडू और लेडी अमीना हैदरी जैसी महिलाओं के साथ, हैदराबाद के निजाम को हैदराबाद में महबूबिया गर्ल्स स्कूल स्थापित करने की अनुमति देने के लिए राजी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने लेडी हैदरी के साथ कई सामाजिक परियोजनाओं में सहयोग किया। उसी दौरान उन्होंने मैडम हैदरी के साथ मिलकर लेडी हैदरी क्लब की स्थापना भी की। उन दिनों तैयबा बेगम ने एक बड़ा काम और किया। वंचितों के लिए एक पुस्तकालय और एक स्कूल प्रारंभ कर दिया। उन्होंने हैदराबाद में महिलाओं के लिए जिन आठ स्कूलों की स्थापना की उनमें से दो आज भी बेहद महत्वपूर्ण विद्यालयों में से है। तैयबा बेगम एक ऐसी उदाहरण हैं, जिससे आज की महिलाएं कुछ सीख सकती हैं। उनके नक्शेकदम पर चलते हुए आज की महिलाओं को खुद को सशक्त बनाना चाहिए।
भारत सरकार भी महिला सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित किए हुए है। इसके अलावा, भारतीय संविधान का अनुच्छेद -16 महिलाओं को समान अवसर की गारंटी देता है। महिलाओं के उन्नयन की कोई सीमा नहीं है। जीतने के लिए उनके पास पूरा आकाश है और हारने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए केवल मुस्लिम महिलाओं को ही नहीं अन्य महिलाओं को भी अपने स्व के लिए अपना रास्ता चुनना चाहिए। इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है कि पुरूष प्रधान समाज महिलओं के लिए आज भी अवसर छोड़ने को राजी नहीं है लेकिन संघर्ष से ही सबकुछ प्राप्त होता है। भारत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब महिलाओं ने मिसाल प्रस्तुत की है।
आप यदि पूरे सल्तनत काल को देखें तो बेगम रजिया सुल्तान का शासन काल बेहद लोकप्रिय था। लखनउ की बेगम हजरत महल ने फिरंगियों के खिलाफ संघर्ष की मिसाल कायम की। महिलाओं के विकास की कोई सीमा तय नहीं की जा सकती है। अगर तैयबा बेगम गर्भवती होते हुए बाढ़ पीड़ितों की मदद कर सकती हैं तो फिर आज की महिलाएं ऐसा क्यों नहीं कर सकती। वर्तमान समय देश के संक्रमण का हैं। देश दुनिया के सामने ताकतबर बन कर उभर रहा है। कई दिशाओं में विकास अपने गति को बनाए हुए है। यह सही वक्त है। इस समय मुस्लिम महिलाओं के लिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करने का है।