परमानन्द परम
इस भौतिक दुनिया में रहकर हम अपनी स्थूल इन्द्रियों से स्थूल ध्वनियों को ही सुन सकते हैं किन्तु कई बार ये श्रव्य आवाजें इतनी रहस्यमय होती हंै कि लाख छानबीन के बावजूद उनके उत्पन्न होने का कारण पता नहीं चल पाता। ये भौतिक ध्वनियां न जाने कहां से उत्पन्न होती हैं, लोगों को सुनाई पड़ती हैं और फिर स्वतः ही विलीन भी हो जाया करती हैं। कुछ ऐसी ही रहस्यमय ध्वनियों से संबंधित जानकारियां यहां प्रस्तुत हैं।
सुप्रसिद्ध अंग्रेज लेखक ’पाल ब्रंटन‘ ने अपनी प्रसिद्ध कृति ’इन सर्च आफ एनशियेण्ट इजिप्ट‘ में लिखा है कि नील नदी से महज तीन सौ दो किलोमीटर उत्तर में एक अत्यन्त प्राचीन खंहर है। यह कोई ढाई-सौ मीटर में फैला है। रात में यहां कोई जाता है तो उसे बच्चों के खिलखिलाने की आवाजें सुनायी पड़ती हैं। इस खण्डहर के दस किलोमीटर की परिधि में एक भी गांव नहीं है। फिर बच्चे कैसे खिलखिलाते हंै, यह गुत्थी आज भी अनसुलझी ही है।
मध्य एशिया के गोबी मरूस्थल के तकलामारान प्रदेश नामक स्थान पर यदा-कदा ऐसी मधुर ध्वनियां गुंजायमान होती हैं जिन्हें सुनकर लोग मंत्रामुग्ध हो जाते हैं। इसकी अवधि 15 से 20 मिनट तक रहती है, फिर स्वतः ही लुप्त भी हो जाती हैं। एक अमेरिकी रेडियो कंपनी ने इस संगीत को टेप करके रेडियो से प्रसारित किया तो कितने ही श्रोताओं की आंखों से अनायास आंसू बहने लगे। यह धुन इतनी कारूणिक थी कि अंतर्मन को छू जाती थी। इस संगीत के रहस्य का पता लगाने का पता अनेक लोगों ने किया किन्तु कोई सफल नहीं हो सका।
’वंडर बुक आॅफ दि स्टेªंज फैक्टर्स‘ नामक पुस्तक में नील नदी के तट पर स्थित कारनक के खण्डहरों में दो विशालकाय प्रतिमाओं की चर्चा की गई है। दोनों प्रतिमाओं के बीच की दूरी लगभग एक किलोमीटर है। इनमें से एक तो सामान्य पत्थरों की प्रतिमा जान पड़ती है किन्तु दूसरी प्रतिमा के निकट जाने से बोलने की कुछ अस्पष्ट ध्वनियां सुनााई देती हैं। विश्व के कई शोध वैज्ञानिकों ने वहां पहुंचकर इसका कारण जानने का प्रयास किया किन्तु सफल नहीं हो सके।
न्यूयार्क में एक बार लोग रेडियो प्रसारण सुन रहे थे। अचानक मूल कार्यक्रम बन्द हो गया और उसमें से ऐसी आवाजें आने लगीं जिसका अर्थ समझा नहीं जा सकता था। रेडियो स्टेशन से जब इस बात की जानकारी ली गई तो उन्होंने ऐसी आवाजों के प्रसारण से अनभिज्ञता जाहिर की। ऐसी आवाजें रेडियो पर अनेक बार सुनाई दी जिसे सुनकर रेडियो स्टेशन के अधिकारी खुद हैरान रह गये थे।
ब्रिटेन के प्रख्यात वैज्ञानिक ने 1896 में इंग्लैंड की प्रसिद्ध पत्रिका ’नेचर‘ के माध्यम से अपना संस्मरण प्रकाशित करवाते हुए लिखा था कि एक बार वे लाफनिध नामक विशाल झील के तटीय क्षेत्रा में दौरे पर गये थे। वहां उन्हें एक के बाद एक तोप चलने की आवाज सुनाई दी जबकि आसपास कोई मिलिट्री बेस भी नहीं था। उन्होंने इसकी जांच भी करवाई किन्तु कुछ पता नहीं चला।
सबसे आश्चर्य वाली बात तो यह थी कि ये आवाजें झील के अन्दर से आ रही थी। इससे भी आश्चर्य वाली बात यह थी कि इतने भारी विस्फोट से झील का पानी तनिक भी नहीं उछल रहा था और न ही कोई तरंग ही उत्पन्न हो रही थी।
इसी से मिलती-जुलती हृदय विदारक तीक्ष्ण आवाजें आस्टेªलिया के कई भागों में सुनी गयी थीं। इसकी चर्चा प्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक ए. स्टुअर्ट ने अपनी एक रचना ’एक्सपेडीशन इन टू दॅ इंटीटीरियर आॅफ सदन आस्टेªलिया‘ में लिखा है कि 7 फरवरी 1829 को वे डार्लिंग नदी के तट पर अपने मित्रा ड्यूम के साथ घूमने निकले ही थे कि अचानक ज्वालामुखी फटने की आवाजें आयीं लेकिन दूर-दूर तक किसी विस्फोट का कोई पता नहीं था। स्थानीय लोगों ने उन्हें बताया कि ऐसे प्राकृतिक विस्फोट की आवाजें वहां रह-रहकर सुनायी पड़ती रहती हैं।
यह सत्य है कि निरर्थक एवं निरूद्देश्य लगने वाली ध्वनियां अपने पीछे किसी न किसी रहस्य को अवश्य ही छिपाये हुए हैं।
(अदिति)