डॉ वीरेंद्र भाटी मंगल
चिपको आंदोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा से मेरा मिलना हुआ। सफेद चोला-पाजामा व सिर पर बंधा सफेद स्कार्फ व दाढी उनकी सदाबहार पहचान थी। जीवन पर्यन्त वे पर्यावरण के प्रति सजग व जागरूक रहे। बहुगुणा ने पर्यावरण की दृष्टि विशिष्ट कार्य कर देश ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर पर्यावरण प्रेमी के रूप में अपनी पहचान को व्यापक बनाया। चिपको आंदोलन के कारण वे विश्व स्तर पर वृक्ष मित्र के रूप में प्रसिद्ध थे। 1998 के दौर में वे एक बार जैन विश्वभारती लाडनूं में आये। दो दिन तक उन्होंने यहा प्रवास किया।
मैनें पाठ्यपुस्तकों में हमेशा चिपको आंदोलन व उनके संघर्ष को पढा था, इसलिए उनका नाम कभी अपरिचित नहीं रहा। उनके बारे में मन में हमेशा आदर व सम्मान का भाव था। जब मैं उनसे मिला, तब सर्दी का मौसम था, लेकिन वे अपने चिर-परिचित लिबास में वे मिले। 1973 में सुंदरलाल बहुगुणा ने उतराखण्ड के चमोली से चिपको आंदोलन की शुरुआत की थी। लकड़ी ठेकेदारों द्वारा पेड़ काटने की घटना से पैदा हुआ यह आंदोलन देश-विदेश में आज भी चर्चित है। मैं उस समय साप्ताहिक तेरापंथ टाइम्स का संपादन देख रहा था। मुझे उनके आगमन की जानकारी मिली तो जैन विश्वभारती के शुभम गेस्ट हाउस में पहुंचकर मिला।
वे बिल्कुल सहज, सरल व्यवहार के धनी थे, घर के किसी बुजुर्ग अभिभावक की भांति उनका व्यवहार लगा।
उस समय मैंने चिपको आंदोलन सहित अनेक सवाल पूछकर साक्षात्कार लिया। जो बाद में एक रिपोर्ट के माध्यम से प्रकाशित भी हुआ। लम्बे समय तक सवाल जबाब का सिलसिला चला। मेरे पास प्रकाशन हाउस का दिया एक माइक्रो कैसेट का छोटा रिकॉर्डर था, जो उस समय छोटे स्थानों पर पत्रकारों को सहज उपलब्ध नही था। बहुगुणा जी के साथ हुए साक्षात्कार को मैने रिकॉर्ड किया। उसके बाद बहुगुणा जी ने विश्वभारती के प्रांगण में एक पेड़ लगाया था, मैं भी उपस्थित रहा। उन्होंने अधिक से अधिक पेड लगाने व उनके सरंक्षण के लिए सबको प्रेरणा दी। बहुगुणाजी ने साक्षात्कार के दौरान बताया कि कैसे उन्होंने अहिंसक तरीके से चिपको आंदोलन चलाकर लाखों-लाखों पेड़ों को कटने से बचाकर पर्यावरण की रक्षा की। उन्होंने यह भी बताया कि जीवन का अधिकांश समय उन्होंने हिमालय के जंगलों में पेड़ो को कटने से बचाने के लिए लगाया है।
वे बहुत सादगी भरे व्यक्ति थे। उनकी सहजता इतनी थी की वे प्रत्येक कार्य स्वयं करने में विश्वास करते। साथ ही पर्यावरण की कोई हानि नहीं पहुचें वे इस बात का भी पूरा ध्यान रखते। उनके साथ बिताये गये दुर्लभ क्षण मेरे जीवन के लिए एक यादगार छवि बन गये। देश के इस बहुत चर्चित व्यक्ति को नजदीक से देखने के बाद जब बातचीत की तो मुझे लगा कि कोई व्यक्ति कितने भी बडे पद पर क्यों न हो, अगर उसमे सहजता सरलता व विन्रमता नही है तो वो बडा नही माना सकता है। जैन विश्वभारती से जुड़े होने के नाते मुझे यहां से बहुत कुछ सीखने को मिला, यहां आचार्यों व साधु-संतो के सान्निध्य के साथ जीवन जीने की एक कला मिली। सचमुच! सुन्दरलालजी बहुगुणा जैसे महान पर्यावरणविद् से मिलकर उनके जीवन को नजदीक से देखने का अवसर मिला। मेरे लिए यह बहुत बडी बात थी। मै केवल एक बार क्षणिक मिला था लेकिन जब 21 मई 2021 को उनकी मृत्यु की खबर सुनी तो लगा, जैसे कोई अपना चला गया। खैर जीवन के साथ मृत्यु शाश्वत है लेकिन व्यक्ति अपने जीवन में किसी के दिल में कोई जगह बना लेता है तो वो हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो जाता है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के खुद के हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)