कलीमुल्ला खान
भारत विविध संस्कृति, धर्म और परंपराओं का देश है। सांप्रदायिक सद्भावना भारत की पहचान में से एक है। यह हमारे देश के सामाजिक ताने-बाने की आधारशिला के रूप में कार्य करती है। हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फाइनेंशियल टाइम्स से धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार और सामाजिक परिदृश्य के बारे में बात की। इस हालिया साक्षात्कार में, देश में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारतीय समाज में किसी भी धार्मिक अल्पसंख्यक के प्रति कोई भेदभाव नहीं है। अल्पसंख्यकों के बारे में और कई सवाल पूछे गए जिसमें प्रधानमंत्री ने अपनी सकारात्मकता का परिचय देते हुए उन तमाम मुद्दो पर चर्चा की जिसके बारे में देश विरोधी ताकतें प्रचारित करती है।
धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वालों द्वारा कलह को बढ़ावा देने की बढ़ती कोशिशों के बीच, झारखंड के गिरिडीह जिले के एक छोटे से गांव में सांप्रदायिक सद्भाव और एकजुटता की एक दिल छू लेने वाली घटना सामने आयी। जहां मुस्लिम ग्रामीणों का एक समूह गांव के एम मात्र हिन्दू परिवार के एक सदस्य की मृत्यु पर उसका अंतिम संस्कार करने के आगे आए। बता दें कि इस गांव में ही जागो रविदास नाम का एक हिन्दू निवास करता था। उसकी मृत्यु हो गयी तब मुस्लिम परिवार के लोगों ने एक साथ मिलकर उसका अंतिम संस्कार किया। आश्चर्य की बात तो यह है कि मुस्लिम युवक हिन्दू परंपरा के अनुसार जागो की लाश को अपने कंधे पर उठाया और रामनाम सत्त है, का नारा लगाते हुए शमसान घाट ले जाकर उसका अंतिम संस्कार किया। जागो का अंतिम संस्कार पूरी हिन्दू रीति-रिवाजों के साथ किया गया।
मुस्लिम ग्रामीणों द्वारा प्रदर्शित करुणा और एकता के कार्य ने धार्मिक सीमाओं को पार कर समुदायों के बीच अटूट बंधन को उजागर किया। इस खूबसूरत भाव को व्यापक मान्यता और सराहना मिली है, जो बढ़ती असहिष्णुता और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की चुनौतियों के बावजूद क्षेत्र में प्रचलित एकता और भाईचारे की अंतर्निहित भावना को प्रदर्शित करता है।
गांव के ही एक मुस्लिम युवक ने बताया कि जब उसे जानकारी मिली कि जागो रविदास की मृत्यु हो गयी है तो उसने अपने मित्रों को इकट्ठा किया और उसके घर की ओर बढ़ गया। रास्ते में जो भी मिला उसको भी साल ले लिया। गांव के तमाम मुस्लिम युवकों ने जागो का अंतिम संस्कार पूरे हिन्दू विधान के अनुसार किया। उन्होंने कहा, हमने इस बारे में दोबारा नहीं सोचा। अपने दोस्त और पड़ोसी का अंतिम संस्कार करना हमारा कर्तव्य था। टेलीग्राफ इंडिया द्वारा जारी इस खबर की भूरि-भूरि प्रशंसा हो रही है। यह मानवीय मूल्य की पराकाष्ठा है। आज के दौर में इस भाव का प्रचार जरूरी है।
ऐसी जहां एक ओर पूरी दुनिया में विभाजन और नफरत सुर्खियों में हावी है, वहीं केरल के नन्नामुक्कू में राजन और कन्नमचथु वलप्पिल परिवार की कहानी सांप्रदायिक सद्भाव का उदाहरण बनकर सामने आया है। राजन, एक भटकता हुआ आदमी, पुथानाथनी में सड़क किनारे भोजनालय के मालिक मुहम्मद को मिला। करुणा से प्रेरित होकर, मुहम्मद ने राजन को भोजन और सहायता की पेशकश की और उसे नन्नामुक्कू में अपने घर ले गए। राजन धीरे-धीरे कन्नमचथु वलप्पिल परिवार का एक अभिन्न अंग बन गया, जिसमें मुहम्मद की छह बेटियां और एक बेटा शामिल था। परिवार ने राजन को गले लगा लिया और उसके साथ अन्य सदस्यों की तरह ही प्यार और सम्मान दिया।
सामाजिक मानदंडों और दबावों के बावजूद, परिवार में दया और करुणा का लोकाचार कायम रहा। राजन और कन्नमचथु वलप्पिल परिवार की कहानी हमारे लिए प्रेरणा से कम नहीं है। यह सभी प्रकार के आस्था से उपर की बात है। यह वह गुण है जो मानव को मानव बनाता है। विभाजन और राजनीतिक कलह के माहौल के बीच, भारत की अंतर्निहित एकता को प्रदर्शित करने वाली कहानियाँ, जैसा कि गिरिडिन और नन्नामुक्कू के मामले में दिखाया गया है, एकता और करुणा के उदाहरण के रूप में काम करती हैं।
ये कहानियां, नफरत से प्रेरित आख्यानों के खिलाफ खड़ी हैं और काशी, मथुरा बहस की तरह भड़काऊ बयानबाजी के बजाय, समकालिक भारत की सुंदरता को बढ़ा रही है। यही नहीं आम जनता को रोमांचित और जागृत कर रही है। मुसलमानों को शिक्षा और अपने उत्थान पर ध्यान देना चाहिए। असहिष्णुता के बारे में बहस में, ये उपाख्यान हमारी साझा मानवता और सहानुभूति की आवश्यकता की याद दिलाते हैं। वे हमसे विभाजन पर एकता को प्राथमिकता देने और असहिष्णुता की छाया से परे करुणा पर आधारित समाज की दिशा में एक रास्ता दिखाते दिख रहे हैं। यह दोनों उदाहरण, प्रधानमंत्री मोदी का हालिया बयान को सार्थक सिद्ध करता दिख रहा है साथ ही भारत में असहिष्णुता और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रचार करने वालों के लिए एक जोरदार तमाचा है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)