पंकज गांधी
अब की बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार मध्य वर्ग के लिए आवास योजना लाएगी, इस योजना के तहत मिडिल क्लास अपना घर बना या खरीद पाएगा। बकौल वित्त मंत्री सरकार किराए के घरों में रहने वाले लोगों के साथ-साथ झुग्गी-झोपड़ियों या अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लोगों के लिए अपना घर खरीदने या बनाने के लिए एक आवास योजना शुरू करेगी. इसके संकेत पिछले स्वतंत्रता दिवस के भाषण में पीएम मोदी ने दिया था कि सरकार ऐसी कोई योजना पर काम कर रही है. आवास एवं शहरी मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इसी साल जनवरी में बताया था कि होमलोन पर सब्सिडी देने वाली योजना पर काम हो रहा है और इस योजना का लाभ मिडिल क्लास को होगा।
वैसे भी इस बार स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इस घोषणा में घर बनाने या लेने वालों के लिए बैंक से लिए गए लोन पर ब्याज राहत की बात थी। आसन्न चुनावों को देखते हुए बजट में इसके घोषित होने की संभावना भी थी लेकिन घोषणा होने के बाद इसके क्रियान्वयन को लेकर बड़ी चुनौतियां है। आवास की जितनी चुनौतियां ग्रामीण स्तर पर है उससे कई गुना चुनौतियां शहरी स्तर पर है. भारत का ग्रामीण जीवन स्तर और रियल एस्टेट की लागत कमोबेश एक जैसी है. एक बढ़िया 2 कमरा हाल किचन आदि बनाने का घर जमीन मय सम्पूर्ण भारत में 30 लाख के आसपास ही आता है। ऊपर नीचे होगा तो कहीं पांच लाख ही होगा।
लेकिन शहरी स्तर पर इतनी एकरूपता नहीं है। मुंबई जैसे शहर में जहां 2BHK घर की कीमत औसत डेढ़ से 2 करोड़ है तो दिल्ली, नॉएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम में 50 से 75 लाख, कोलकाता में भी यही तो वही लखनऊ बड़ौदा में 40 से 50 लाख। ऐसे में एक यूनिफार्म नीति बनाने में दिक्कत आने की संभावना बढ़ गई है लेकिन यह भी सच है कि यदि इस दिक्कत का समाधान नहीं निकाला गया तो इस योजना की जो मूल आत्मा है, वह खत्म हो जायेगी। सबसे अधिक किराये के मकान में ऐसे ही शहरों में लोग रहते हैं. ऐसे में अगर बैंकों ने न्यूनतम होम लोन ब्याज दर की सीमा पूरे भारत के लिए शहर दर शहर की जगह एकरूप रख दी तथा एक अधिकतम ऋण सीमा की कैप लगा दी जैसे कि 50 लाख तक के ऋण वालों को ही रियायती छूट मिलेगी तो मुंबई वाले तो पूरे इस स्कीम से वंचित हो जायेंगे जबकि दिल्ली, नॉएडा गाजियाबाद गुरुग्राम और कोलकाता में एक बड़ा वर्ग इससे वंचित हो जायेगा। अतः सरकार को यहां ध्यान रखना चाहिए कि किराये से अपने घर का सपना लिए मुंबई में वह आबादी इससे वंचित ना होने पाये।
मेरा मानना है कि यदि सरकार मकान की किश्त और किराया एक समान सरकारी नीतियों और रिजर्व बैंक के क्रियान्वयन से कर दिया जाय तो रियल इस्टेट की इस समस्या को एक झटके में ही हल किया जा सकता है। साथ ही पैदा हुए अवसर का लाभ लिया जा सकता है, अन्यथा इस घोषणा का वह फायदा नहीं होगा जिस उद्देश्य से इसकी घोषणा की गई थी। हर व्यक्ति (ग्राहक) की दिली इच्छा है कि वह किराये के मकान की जगह जल्दी से जल्दी खुद के मकान में चला जाय और यदि ऐसे में उसे मौका मिले कि अपने वर्तमान किराया भार के बराबर ही किश्त देना पड़े तो रियल इस्टेट में बिक्री की बाढ़ आ जाएगी। हर उस जगह जहां किराया और किश्त का अंतर कम है, वहां आप देखेंगे कि लोग अपने घर में रहते हैं घर में निवेश करते हैं और जहां ज्यादा है, उस स्थान पर किराये के घर में ही रहते हैं। आज होम लोन की औसत ब्याज दर लोगों को 9 फीसदी पड़ती है जिस पर वह अगर 20 साल के लिए डेढ़ करोड़ रूपये लोन लेता है तो उसकी EMI 134,000 के आसपास पड़ती है और यदि दर 8.4 है तो करीब 129000 प्रति माह।
इसका अन्तर्निहित दूसरा प्रभाव देखिये इस म्डप् भार लेने की क्षमता उन्ही की हो सकती है जिनकी मासिक आय कम से कम दो लाख साठ हजार रुपया प्रति माह, 31 लाख रुपया सालाना के करीब हो तो ही आधी कमाई किश्त में दे सकते हैं जबकि औसत मुंबईकर की प्रति व्यक्ति आय इससे बहुत कम है। योजना बनाते वक्त मुंबईकरों के मध्य वर्ग की प्रति व्यक्ति आय, वर्तमान किराया भार को ध्यान में रख आगामी किश्त बनायेंगे तो ही योजना मुंबई और बड़े शहरों के नागरिकों को राहत देगी। यदि इसे बड़ौदा या विरार का बेस लेकर बनाया जायेगा तो वास्तविक उद्देश्य पाना मुश्किल होगा। इसीलिए मेरी राय में अधिकतम ऋण सीमा जैसी कोई मर्यादा से सरकार और रिजर्व बैंक को बचना चाहिए और बजाय इसके 2BHK और घर की साइज जैसे शर्तें लगानी चाहिये। भारत चूंकि संयुक्त परिवारों वाला देश हैं ऐसे में यह योजना 1BHK से बढ़ाकर 2BHK घरों तक जरूर करना चाहिये ताकि एक बड़ी आबादी कवर हो सके।
अब सवाल कि घर की किश्त किराये के बराबर कैसे होगी तो उसका फार्मूला है कि होम लोन प्रदाताओं को प्रगतिशील किश्त प्रणाली की अनुमति रिजर्व बैंक को देनी पड़ेगी जिसे कुछ कुछ आप बलूनिंग स्कीम जैसा समझ सकते हैं जो ऋण मार्किट में प्रचलन में भी है। इसमें किश्त वही रख सकते हैं जो किराये की राशि होगी और साल दर साल किराये की तरह किश्त बढ़ा सकते हैं, यह ठीक उसी तरह की सुविधा हो सकती है जो बहुत सी गाड़ियों के लोन में बलून स्कीम या ऐसी ही मिलती जुलती ऋण के रूप में अपनाई जाती है जिसमें लोन लेने वाला शुरू में न्यूनतम किश्त देता है और कुछ सालों के बाद बढ़ी हुई किश्त देता है जब उसकी आय सुधर जाती है। होम लोन में इससे प्रेरणा ले किराया बराबर किश्त कर सकते हैं। इसके लिए ऋण की अवधि को थोड़ा बढ़ाना पड़ेगा लेकिन लम्बे अवधि की चिंता क्यों करना आगे वक्त के साथ आय भी बढ़ेगी, बच्चे बड़े होंगे उनकी आय भी जुड़ेगी और किसी अनहोनी की दशा में तो आज के सभी होम लोन पर बीमा होता है तो बीमा कम्पनी पूरी राशि दे देगी और परिवार वालों के पास खुद का घर बच जायेगा।
इतनी लम्बी अवधि में आज के दर से खरीदी गई प्रॉपर्टी के मुकाबले लोगों के पास कुछ बड़ी राशि आ जाए तो लोग पूरा लोन या कुछ भाग लोन भर अपनी किश्त को कम करते हुए शून्य भी कर सकते हैं। कुछ सालों के बाद यह महंगा घर बेच कर कोई सस्ता जगह मकान ले सकते हैं इसमें पुराने घर पर हुई मूल्य वृद्धि का इस्तेमाल कर ऋणमुक्त घर के मालिक हो सकते हैं। इसीलिए मेरा मानना है कि इस विषय पर चिंतन करने वाले नीति नियंताओं, रिजर्व बैंक, बैंकों, वित्तीय संस्थानों और सरकार को किराये बराबर ही किश्त रखने की प्रस्तावित योजना लानी चाहिये, तथा इस चिंतन के समय आधार मुंबई का ही लेना चाहिए क्यूंकि सबसे अधिक इसकी जरुरत यहीं है और रियल एस्टेट पूरे देश में यहीं महंगा है। इससे सबको घर का सपना तो साकार होगा ही, रियल एस्टेट को बूस्टर डोज मिलेगा, साथ में जो सहायक उद्योग हैं सीमेंट, लोहा, बिल्डिंग मटेरियल लेबर सबको संजीवनी मिलेगी। लोगों पर किराया के बराबर ही किश्त होने से बड़ा लोड नहीं पड़ेगा और उनकी बचत बढ़ेगी जिसे वह विनियोग कर भविष्य की प्लानिंग कर सकते हैं।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)