गौतम चौधरी
ग्रामीण अंचलों में कई ऐसी प्रेम कथा सुनी-सुनाई जाती है, जिसका न केवल सांस्कृतिक व साहित्यिक महत्व है, अपितु वह मुक्ति और संघर्ष की पटकथा जैसा प्रतीत होता है। ऐसी ही एक कहानी, बस्तर के झिटकु और मिटकी की प्रेम कथा है। आज हम आप पाठकों के लिए बस्तर की प्रेमकथा लेकर आए हैं।
बस्तर में झिटकु-मिटकी की प्रेमकथा वर्षों से ग्रामीण परिवेश में रची बसी है। इस कथा की काल गणना किसी को पता नहीं लेकिन कई पीढ़ियों से यह कहानी कही और सुनी जा रही है। यह प्रमकथा, बस्तर के एक आदिवासी युगल, युवक-युवती की है।
बस्तर के विश्रामपुरी के एक गांव में सुकल नाम का एक महारा युवक रहता था। एक दिन उसकी मुलाकात मेले में पेंड्रावन गाँव की सुकलदाई नाम की युवती से हो गयी। पहली नजर में ही दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया। बात परिवार तक पहुंची, सुकलदाई सात भाइयों की एकलौती बहन थी। सुकलदाई की शादी को लेकर उनके सभी भाइयों ने विरोध कर दिया। वे नहीं चाहते थे कि उनकी बहन शादी कर उनसे दूर चली जाए। जैसे-तैसे परिवार वालों को राजी किया गया, अतः वे सुकल के साथ सुकलदाई का विवाह करने को तैयार हो गए और दोनों की शादी कर दी गई। सुकल उसी गांव में रहकर मवेशी चराने का काम करने लगा और दोनों के दिन खुशी से बीतने लगे।
कुछ साल बाद गांव में अकाल पड़ा। नौबत यह थी कि गांववाले रोजी-रोटी के लिए तरसने लगे और इस समस्या से निपटने के लिए ग्रामीणों ने खेती की सिंचाई के लिए श्रमदान कर तालाब तैयार किया, लेकिन बरसात में तालाब में पानी ठेहरा ही नहीं। इसी बीच बारिश का मौसम भी खत्म हो गया। तालाब सूखा का सूखा रह गया। तालाब में पानी कैसे ठहरे इसके लिए गांववालों ने आपस में मिलकर बैठक की। मीटिंग में शामिल तांत्रिकों ने यह ऐलान कर दिया कि जब तक तालाब में किसी व्यक्ति की बलि नहीं देंगे तब तक उसमें पानी नहीं रुकेगा। बलि की बात सुन ग्रामीण पीछे हट गए, लेकिन उस गांव में कुछ ऐसे भी युवक थे जो सुकलदाई को पाने की लालसा पाल रखे थे।
ऐसे युवकों ने सुकलदाई के सात भाइयों को भड़काना शुरू कर दिया। सुकल तो दूसरे गांव का है। रही बात सुकलदाई की तो उसकी उम्र ही क्या है कोई भी युवक उसे शादी कर लेगा। अगर सातों भाई मिलकर सुकल की बलि तालाब में देते हैं, तो गांव में उसका मान बढ़ जाएगा। सुकलदाई के भाई भी युवकों की बातों में आ गए।
एक रोज सातों भाइयों ने मिलकर अपने ही बहन के पति सुकल की कुल्हाड़ी से गला काट कर हत्या कर दी और उसके सिर को तालाब में फेंक दिया। कथा के अनुसार, इस घटना के बाद तेज बारिश हुई। इधर सुकलदाई अपने पति का इंतजार करते रही और इसी बीच उसने सपने में देखा कि, तालाब में उसके पति सुकल की सर कटी लाश पड़ी है।
नींद से जागने के बाद जब सुकलदाई तालाब पहुंची तो उसके होश उड़ गए, क्योंकि उसने जो सपने में देखा था, वो सच साबित हुआ। तालाब में उसके पति सुकल की लाश तैर रही थी। सुकलदाई को उनके भाइयों की करतूत का पता चल गया था। वह अपने भाइयों की घिनौने कृत्य से दुखी होकर उसी तालाब में कूद कर जान दे दी।
सुबह जब बारिश थमने के बाद ग्रामीण तालाब पहुंचे तब सुकलदाई कि बांस की टोकरी तालाब के किनारे मिली और उसकी लाश पानी में तैर रही थी। इस तरह दो जिस्म एक जान वाले इस प्रेमीजोड़े का अंत हो गया।
बहन की लाश तैरते देख भाइयों का सब्र टूट पड़ा और उन्होंने ग्रामीणों के सामने अपनी भूल स्वीकार कर ली और इस घटना के बाद से गांव में सुकल और सुकलदाई को झिटकु-मिटकी के नाम से जाना जाने लगा। मिटकी के सती होने के बाद से इस देव युगल झिटकू-मिटकी की पूजा की जाती है, ताकि किसी की प्रेम कहानी अधूरी न रहे। इस देव युगल के अनेक नाम हैं। मसलप, इन्हें डोकरा – डोकरी, डोकरी देव, गप्पा घसिन, दुरपत्ती माई, पेंड्रावडीन माई, गौडिन देवी और बूढ़ी माई आदि कई नामों से संबोधित किया जाता है।
बस्तर के इस क्षेत्र में झिटकू-मिटकी की मान्यता की अपनी परंपरा है। जिसकी गूंज पूरे देश में है। इनके वंशज आज भी पेंड्रावन गांव में रहते हैं तथा इन देव युगल पर चढ़ाया गया समस्त धन उन्हें समर्पित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई अन्य उस धन का उपयोग करेगा तो देवता उसका अनिष्ट कर देंगे। आज भी बस्तर के गांवों में लोग अपने मवेशियों के तबेले में खोडिया देव की पूजा करते हैं। यह पूजा भी झिटकू-मिटकी की प्रेमकथा से जुड़ी है। विश्रामपुरी के उसी गांव में वर्तमान समय में भी झिटकु-मिटकी के नाम से मंडई मेला का आयोजन किया जाता है।