रांची/ झारखंड प्रदेश भारतीय जनता पार्टी में अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पुराने और पार्टी के सिद्धांतों से बंधे कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी को बाहर से आए कुछ नेताओं ने अपने कब्जे में कर लिया है। इसका खामियाजा इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टी को उठाना पड़ सकता है।
यही नहीं अंदरखाने की एक खबर तो यह भी है कि राजमहल लोकसभा का टिकट अपने मनोनुकूल नहीं होने के कारण क्षेत्र के एक पार्टी विधायक और उनसे जुड़े जिले के पार्टी पदाधिकारी व कार्यकर्ता लगातार पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार, ताला मरांडी का विरोध कर रहे हैं। इसके कारण क्षेत्र में प्रचार का काम लगातार प्रभावित हो रहा है।
उस विधायक का एक सजातीय पुलिस पदाधिकारी से अंतरंग संबंध भी बताया जाता है, जो इन दिनों लगातार सतर्कता आयोग की निगरानी में है। उक्त विधायक के बारे में तो यहां तक कहा जा रहा है कि वे पार्टी लाइन से बाहर जाकर उक्त पुलिस अधिकारी का सहयोग कर रहे हैं। जानकार सूत्रों की मानें तो विधायक से संबंधित दोनों बातों की जानकारी प्रदेश के आला नेताओं को दी गयी, साथ ही केन्द्रीय स्तर पर भी इस मामले को पहुंचाने की कोशिश की गयी है, बावजूद इसके उक्त विधायक पर कोई दबाव नहीं बनाया गया है।
आम चुनावी मौसम ऐन वक्त झारखंड भाजपा के अंदरखाने इस बात की चर्चा जोरों पर है कि पार्टी में पांच ऐसे नेता प्रभावशाली हो गए हैं, जिन्हें न तो पार्टी के संगठन की मुकम्मल जानकारी है और न ही पार्टी की रीति-नीति के वाकफ हैं। जनाधार के मामले में भी ये फिसड्डी हैं। इन पांच नेताओं में वे भी शामिल हैं, जिन्हें प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने अपनी टीम में अहम स्थान मुकर्रर किया है। इन पांच पार्टी पदाधिकारियों में सब के पास अहम दायित्व भी सौंपा गया है लेकिन वे रांची में रह कर ही अपने क्षेत्रीय दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। इस बात की चर्चा लगातार पार्टी में हो रही है और इसकी जानकारी प्रदेश के महामंत्री संगठन कर्मवीर सिंह व प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी को भी दिया जा चुका है।
जब से इन पांचों को अहम दायित्व सौंपा गया है, तब से कुछ ऐसे नेता जो चुनावी मामलों में माहिर थे और पूर्व के चुनावों में अहम भूमिका निभाई, घर बैठ गए हैं। इसके कारण चुनाव प्रचार और प्रबंधन में जबरदस्त गतिरोध देखने को मिल रहा है।
विगत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रांची प्रवास के दौरान भी इसका असर दिखा। जानकारों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने के लिए कुछ अहर्ताएं तय की गयी थी और आम कार्यकर्ताओं को बताया गया था कि उसी अहर्ताओं के आधार पर पार्टी के नेता या कार्यकर्ता प्रधानमंत्री से मिलेंगे लेकिन इन्हीं पांच नेताओं में से एक ने उन तमाम नियम-कायदों को ताक पर रखकर प्रधानमंत्री से मिलने वालों की लिस्ट बनाई जिसमें कुछ नेताओं के निजी चालक भी प्रधानमंत्री से मिल लिए, जबकि पार्टी के कुछ महत्वपूर्ण व निष्ठावान कार्यकर्ता, जो लगातार पार्टी के लिए काम कर रहे हैं, प्रधानमंत्री से मिलने से वंचित रह गए। इस बात को लेकर उक्त नेता के प्रति पार्टी में भारी आक्रोश की बात कही जा रही है।
जानकारी में रहे कि विगत दिनों सतर्कता निदेशालय ने झारखंड में कई अभियान चलाए। उसमें से एक अभियान साहिबगंज जिले में भी चलाया गया। उस अभियान के दौरान प्रदेश सरकार के अहम कारींदों पर दबिश बनायी गयी। उसमें से पुलिस के एक महत्वपूर्ण अधिकारी भी शामिल हैं। जानकारों की मानें तो सतर्कता निदेशालय के अभियान को भाजपा के अंदर के ही कुछ नेता कमजोर करने में लगे हैं। उसमें भाजपा के एक बड़े पदाधिकारी के संबंधी का नाम भी शामिल है, जो अपने को पूर्व पत्रकार बताते हैं। उस संबंधी के बारे में जानकारों की राय है कि वे लगातार अपने एक सजातीय पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खास को सूचनाएं पहुंचाते रहे हैं।
दूसरी ओर सतर्कता निदेशालय के टारगेट में रहने वाले पुलिस पदाधिकारी को क्षेत्र के एक भाजपायी विधायक का सहयोग व सानिध्य प्राप्त है। विधायक जी लगातार उनके संपर्क में हैं और भाजपा की रणनीति की जानकारी उन्हें उपलब्ध कराते रहते हैं। इस कारण वह पदाधिकारी सतर्कता निदेशालय के दबिश में होने के बावजूद भी अजेय बना हुआ है। उसी विधायक के बारे में यह बात भी सामने आयी है कि राजमहल के भाजपा प्रत्याशी ताला मरांडी का वे लगातार विरोध कर रहे हैं। साथ ही उनसे जुड़े स्थानीय नेता और कार्यकर्ता भी ताला मरांडी के चुनाव प्रचार की हवा निकाल रहे हैं। इसके कारण ताला मरांडी की स्थिति दिन व दिन बिगड़ रही है।
ऐसे में प्रदेश भाजपा इस बार की चुनावी वैतरणी किस तरह पार करेगी, संदेह लग रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर तो जनता भाजपा के साथ दिख रही है लेकिन स्थानीय नेताओं की कारगुजारी से पार्टी लहूलुहान है। इसलिए झारखंड की सीटों पर यदि अप्रत्याशित फल प्राप्त हो तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
नेताओं का नाम खुलकर लिखिए । वैसे भी कई दिग्गज हार रहे हैं ।बाबूलाल जी तो शायद पैसा कमा लिए या फिर बदला निकाल रहे हैं