गौतम चौधरी
झारखंड प्रदेश भारतीय जनता पार्टी, संसदीय चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए, केवल बहुसंख्यक ध्रुवीकरण के भरोसे ही नहीं है। भाजपा ने अपनी रणनीति में दो अन्य अहम योजनाओं को भी शामिल किया है। पहली योजना के तहत भाजपा, प्रदेश के वोटरों को पिछड़ा हिमायती होने का संदेश दे रही है। दूसरा, भाजपा के रणनीतिकारों ने पार्टी को विशुद्ध स्थानीय दिखाने की भी कोशिश की है। भाजपा की इन दो रणनीतियों को आसानी से नहीं समझा जा सकता है। इसके लिए झारखंड भाजपा के इतिहास को देखना पड़ेगा, साथ ही थोड़ी गहराई से भी विचार करना होगा।
अभी हाल ही में झारखंड प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के महामंत्री, आदित्य प्रसाद साहू द्वारा हजारीबाग के निवर्तमान सांसद जयंत सिंहा और धनबाद नगर विधायक राज सिंहा के साथ ही, पांच अन्य को कारण बताओ नोटिस जारी कर, पिछड़ों और कथित स्थानीय मतदाताओं को यह संदेश देने की कोशिश की गयी है कि भाजपा बाहरियों और अगड़ी जाति की पार्टी नहीं अब स्थानीय व पिछड़ों की पार्टी बन गयी है। अमूमन ऐन चुनाव के बीच इस प्रकार के निर्णय नहीं लिए जाते हैं। सामान्य समझ यही होगी कि भाजपा बेहद बचकाना हरकत कर रही है लेकिन ऐसा नहीं है। यह भाजपा की सोची-समझी रणनीति का अंग है। जयंत व राज के अलावे जिन पांच भाजपा नेताओं पर कार्रवाई की गयी है, वे सभी न केवल अगड़ी जाति के हैं, अपितु उनके पूर्वज या वे खुद, अविभाजित बिहार के किसी अन्य क्षेत्र से आकर झारखंड वाले इलाके में बसे हैं। इन्हें कथित तौर पर बाहरी भी कहा जाता है। यही नहीं भाजपा के दूसरे महामंत्री डॉ. प्रदीप वर्मा को भी चुनाव के ऐन मध्य, जमशेदपुर लोकसभा के प्रभार से मुक्त कर दिया गया है। हालांकि प्रदीप वर्मा बार-बार अपने को स्थानीय होने का दावा करते हैं लेकिन स्थानीय भाजपा नेता उन्हें भी उत्तर प्रदेश का ही मानते हैं। इस प्रकार झारखंड भाजपा कई मोर्चों पर ध्रुवीकरण की रणनीति पर काम कर रही है।
इस मामले में झारखंड भाजपा का इतिहास बहुत अच्छा नहीं रहा है। वर्ष 2000 में जब बिहार का विभाजन कर झारखंड का गठन किया गया तो उस समय भाजपा ने अपने आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाया। भले बाबूलाल मरांडी व्यक्तिगत तौर पर स्थानीयता और बाहरी का भेद न करते हों लेकिन स्थानीय बनाम बाहरी को लेकर झारखंड में जो गतिरोध उत्पन्न हुआ, उसका श्रेय मरांडी को ही जाता है। मरोडी के मुख्यमंत्रित्व काल में स्थानीय और बाहरी को लेकर कई स्थानों पर दंगे हुए। इसमें कथित तौर पर बाहरी कहे जाने वालों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। यही नहीं, बाद में चल कर भारतीय जनता पार्टी ने अपने राजनीतिक हितों को ध्याम में रख, न केवल स्थानीयता के प्रति अति गंभीर, सुदेश महतो के नेतृत्व वाली ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन पार्टी के साथ समझौता किया, अपितु घुर क्षेत्रवादी शिबू सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ समझौता कर कुछ वर्षों तक सरकार भी चलाई। इस मामले में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पैरोकार, भाजपा की मातृ संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी मौन स्वीकृति देखने को मिली थी।
बाबूलाल मरांडी लंबे समय तक पार्टी से बाहर रहने के बाद एक बार फिर भाजपा के अध्यक्ष बनाए गए हैं। प्रदेश भाजपा की दशा और दिशा बड़ी तेजी से बदलती दिख रही है। अर्जुन मुंडा व रघुवर दास के समय भाजपा का रूप समन्वयवादी दिख था लेकिन वर्तमान भाजपा एक बार फिर बाबूलाल के दौर में लौटती दिख रही है। यही नहीं, जयराम महतो वाले खतियानी आन्दोलन के पीछे भी प्रदेश भाजपा के एक खास लॉबी का हाथ बताया जा रहा है। हालांकि भाजपा के नेता इस आन्दोलन को झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ जोड़ते रहे हैं लेकिन जानकारों का कहना है कि जयराम महतो की राजनीति बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली झारखंड विकास मोर्चा से प्रारंभ हुई थी और आज भी महतो, भाजपा के कई शीर्ष नेता के संपर्क में हैं।
धनबाद के बहुचर्चित भाजपा प्रत्याशी ढुल्लू महातो भी बाबूलाल मरांडी के मानस पुत्र बताए जाते हैं। पहली बार बाबूलाल मरोडी ने ही उन्हें अपने झारखंड विकास मोर्चा पार्टी से टिकट दिया और वे बाघमारा से विधायक बने। महतो भी स्थानीयता को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। उनकी संवेदना कभी-कभी उन्हें कई विवादों में भी घसीटती रही है। इस प्रकार यदि वर्तमान भाजपा के द्वारा कुछ नेताओं पर कार्रवाई की अनुसंशा को यदि कोई सतही तौर पर देखता है और पार्टी की सामान्य अनुशासनात्मक प्रक्रिया से जोड़ता है तो वह भ्रम में है। झारखंड की वर्तमान भाजपा पूर्ण रूप से बाबूलाल की भाजपा है। यही कारण है कि अध्यक्ष बनने के बाद जब बाबूलाल ने प्रदेश की कार्यसमिति गठित की तो कुल 28 सदस्यों में से जेवीएम से भाजपा में आए 16 सदस्यों को उसमें शामिल कर लिया। यही नहीं, फिलहाल प्रदेश भाजपा की असली कमान उन्हीं के हाथ में है, जो झारखंड विकास मोर्चा से भाजपा में आए हैं और बाबूलाल मरांडी के खास हैं। साथ ही स्थानीयता को लेकर थोड़े तल्ख हैं और पार्टी में पिछड़े नेतृत्व के पैरोकार हैं।
स्थानीयता और बाहरी के अलावे अगड़़ा-पिछड़ा, भारतीय जनता पार्टी का सामाजिक अभियंत्रण का अंग बताया जाता है। हिन्दू और मुसलमानों के बीच का ध्रुवीकरण दिखता है लेकिन अगड़ा-पिछड़ा व स्थानीय-बाहरी यह सतह पर तो नहीं दिखता, लेकिन इसकी प्रतिछाया प्रकारांतर में अपनी छवि बनाए हुए है। यह प्रदेश भाजपा की रणनीति का अंग है। इसके माध्यम से भाजपा अपने आप को स्थापित करने की कोशिश कर रही है। इस काम में भाजपा को प्रदेश के विभिन्न कॉरपोरेट घरानों का भी सहयोग मिल रहा है। आदित्य प्रसाद साहू द्वारा पार्टी नेताओं पर की गयी हालिया कार्रवाई का असर क्या होगा, इसका तो बाद में आकलन होगा लेकिन भाजपा रणनीतिकारों के अंतरमन में यही है कि इस कदम से स्थानीय और पिछड़ी जाति के मतदाताओं में भाजपा के प्रति विश्वास पैदा होगा।