सरसंघचालक मोहन भागवत का झारखंड की राजधानी रांची में दस दिवसीय प्रवास, आखिर मामला क्या है?

सरसंघचालक मोहन भागवत का झारखंड की राजधानी रांची में दस दिवसीय प्रवास, आखिर मामला क्या है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नजर से देखा जाए तो संघ रांची को ईसाई मिशनरियों का सबसे बड़ा केंद्र मानता है। संघ और उसके अनुसांगिक संगठनों का मानना है कि देश में रहने वाले आदिवासी समाज के बीच जितने भी विवादित सवाल उठते हैं, चाहे वह अलग धर्म कोड की मांग हो, आदिवासी हिंदू नहीं है, डिलिस्टिंग आदि इन सब मुद्दो की जननी झारखंड की राजधानी रांची ही है।

संभवतः इन्हीं मुद्दों के कारण लोकसभा चुनाव में झारखंड के पांच आदिवासी आरक्षित सीटों से भाजपा को हांथ धोना पड़ा। हालांकि संघ हमेशा दावा करता रहा है कि उसका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है लेकिन यह सिर्फ कहने की बात है। दरअसल, संघ और राजनीति का संबंध उस सुतूरमुर्ग के समान है, जो आने वाले खतरे को भांप कर अपना सिर तो बालू में गाड़ लेता है लेकिन उसका पूरा शरीर बाहर दिखता रहता है।

खैर इस लेख का मकसद यह नहीं है हम संघ प्रमुख के रांची के दस दिवसीय दौरे का औचित्य तलाशने को कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि आज से मात्र तीन माह के पश्चात ही झारखंड में विधानसभा का चुनाव होो है और लोकसभा के चुनाव में जनता ने अपना रुख बता दिया है। स्वाभाविक है, जिसको लेकर संघ अवश्य चिंतित होगा। क्योंकि इससे पहले कभी भी संघ प्रमुख इतनी लम्बी अवधि के लिए रांची में नहीं रुके हैं।

चूंकि झारखंड में आदिवासी आबादी अधिक है और प्रदेश के आदिवासियों के बीच अलग धर्म कोड, आदिवासी हिंदू नहीं है, डिलिस्टिंग जैसे मुद्दे काफी चर्चा में हैं और संघ का मानना है कि इन मुद्दों का यदि कोई सार्थक ज़बाब जल्द नहीं ढूंढा गया तो न केवल आने वाले चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा बल्कि संघ से भी आदिवासी दूर हो जाएंगे और इसकी भरपाई लंबे समय तक संभव नहीं हो पाएगी।

विदित हो की संघ के अनुसांगिक संगठन होने का दावा करने वाला, जनजाति सुरक्षा मंच के द्वारा 24 दिसंबर 2023 को रांची के मोराबादी मैदान में एक लाख आदिवासियों की रैली कर धर्मांतरित लोगों को जनजाति सूची से बाहर करने की मांग, डिलिस्टिंग को लेकर किए गए आंदोलन ने झारखंड की राजनीति को गर्म कर दिया है।

इसके अलावा पिछले दिनों जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत के इस बयान से कि आदिवासी हिंदू है, से आदिवासी समाज के अगुवा काफी आक्रोशित हुए थे और रांची में गणेश राम भगत का पुतला तक जलाया गया था। बहरहाल देखना यह होगा कि झारखंड के इन ज्वलंत मुद्दों पर संघ क्या रणनीति बनाता है। मोहन राव शायद इन्हीं कुछ मुद्दों के साथ झारखंड की राजधानी रांची में जमें हैं। इसका असर होना अभी बांकी है।

(लेखक जसपुर में रहते हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से जुड़े हैं। आदिवासी विषय पर अच्छी पकड़ रखते हैं। आपके विचार निजी हैं। इससे जनलेख का कोई सरोकार नहीं है।)

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