गौतम चौधरी
अभी हाल ही पड़ोसी बांग्लादेश में राजनीतिक उथलपुथल के कारण अशांति उत्पन्न हो गया। इस अशांति के कारण पूरे बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया। खासकर हिन्दू अल्पसंख्यक जनता के व्यापारिक प्रतिष्ठान, धार्मिक स्थालों को निशाना बनाया गया। दुनिया के समाचार माध्यमों में छपी खबर के अनुसार कई हिन्दू अल्पसंख्यकों की हत्या की गयी और महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। जैसा कि मैं व्यक्तिगत रूप से इस्लाम को जानता हूं और इस्लामिक विद्वानों की व्याख्या को सुना और पढ़ा है उसके अनुसार इस्लाम की यह प्रकृति और प्रवृति कभी नहीं रही। इस्लाम के पवित्र ग्रंथों में इस बात की हेदायत दी गयी है कि इमान वाले अपने आसपास के अल्पसंख्यक, महिला, वृद्ध और बच्चों की हिफाजत करें। यदि ऐसा वे नहीं कर पाते हैं तो इस्लाम के पाक मान्यताओं को वे नहीं मानते हैं और ऐसे में उन्हें अपने आप को मुसलमान कहलाने का कोई अधिकार नहीं है। इस्लाम को गैर जरूरी फितने को हतोत्साहित करने की बात कही गयी है।
इस्लामी धर्मग्रंथों में समाज के भीतर व्यवस्था और न्याय बनाए रखने के महत्व पर जोर देने वाले कई संदर्भ हैं। हिंसा या अराजकता से घृणा करते हुए, सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पैगंबर मुहम्मद ने हमेशा बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से विवादों को हल करने की वकालत की है। कुछ शांतिप्रिय मुस्लिम विद्वानों का साफ कहना है कि किसी भी मुसलमान के लिए कानून अपने हाथ में लेना और हिंसक विद्रोह में शामिल होना इस्लाम के सिद्धांतों के विपरीत है। अब जब छात्रों की मांगें पूरी हो गई और शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार को उखाड़ फेंक दिया गया, तो छात्र और आम जनता के लिए सामान्य स्थिति बहाल करने पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। छात्रों को अपनी पढ़ाई पर लौटना चाहिए और राष्ट्र को फिर से स्थिर बनाने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
इस्लाम शिकायतों को दूर करने के साधन के रूप में शांतिपूर्ण और रचनात्मक बातचीत को प्रोत्साहित करता है। शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि वे अहिंसा, कानून और व्यवस्था के प्रति सम्मान के इस्लामी मूल्यों के अनुरूप होते हैं। बांग्लादेश में शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुआ छात्रों का विरोध प्रदर्शन परिवर्तन लाने के लिए अहिंसक आंदोलनों का एक उदाहरण हो सकता था लेकिन यह देखते ही देखते हिंसक हो गया। यह याद रखना जरूरी है कि इस्लाम धैर्य, संयम और संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान करता है। जबकि क्रांति का उद्देश्य शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के माध्यम से वास्तविक शिकायतों को संबोधित करना था। बाद में कुछ मौकापरस्त और कट्टरपंथी तत्वों ने आंदोलन को अपने हित में उपयोग करना प्रारंभ कर दिया। इसके कारण बांग्लादेश का आन्दोलन बदनाम हुआ। इन समूहों के कुछ वर्ग अपने राजनीतिक एजेंडे पर जोर देने के लिए मौजूदा स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश करने लगे। जिससे हिंसा बढ़ गई, खासकर अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ यह बेहद आक्रामक हो गया।
एक मुस्लिम-बहुल राष्ट्र के रूप में, बांग्लादेश की अपनी हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक आबादी की रक्षा करने की जिम्मेदारी है। इस्लाम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उचित व्यवहार सिखाता है। शांतिपूर्ण और समावेशी समाज को बढ़ावा देने के लिए, सभी नागरिकों की सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित करना, चाहे उनकी धार्मिक संबद्धता कुछ भी हो, आवश्यक है। यह प्रदर्शित करने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि इस्लाम के वास्तविक अर्थ को समझा जाए। केवल बांग्लादेश के भीतर बल्कि भारत जैसे पड़ोसी देशों के साथ सद्भाव को बढ़ावा देना भी बांग्लादेश की वर्तमान सरकार के लिए जरूरी है। बांग्लादेश के वर्तमान रणनीतिकारों को इस विषय पर बिना कियी पूर्वाग्रह के गंभीरता से विचार करना चाहिए।
उथल-पुथल के बीच बांग्लादेश में कुछ मुसलमानों के हिंदू मंदिरों और पूजा स्थलों की रक्षा करना सराहनीय कदम है। इसे सत्ता प्रतिष्ठान के द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इस प्रकार की करवाई अधिकांश लोगों की हिंसा से बचने और अपने साथी नागरिकों की रक्षा करने की इच्छा को उजागर करता है। कभी-कभी, अराजकता के समय में हिंदुओं पर हमले ऐतिहासिक शिकायतों और अवसरवादी उद्देश्यों से भी प्रेरित होते हैं। बांग्लादेश में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए सभी समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करना जरूरी है।
इस्लाम राज्य या किसी समुदाय के खिलाफ हिंसा की इजाजत नहीं देता। शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की प्राथमिकता इस्लामी शिक्षाओं के अनुरूप है और अब जब मांगें पूरी हो गई हैं, तो छात्रों और नागरिकों के लिए सामान्य स्थिति में लौटने एक बेहतर विकल्प है। आखिरकार, किसी भी समाज की प्रगति के लिए शिक्षा और रचनात्मक जुड़ाव महत्वपूर्ण हैं। अल्पसंख्यकों की रक्षा करना न केवल एक इस्लामी कर्तव्य है, बल्कि पड़ोसी देशों में शांति को बढ़ावा देने और अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए भी आवश्यक है। इस चुनौतीपूर्ण समय में, इस्लाम के सिद्धांतों को कायम रखना और सभी नागरिकों के लिए न्याय सुनिश्चित करना एक इस्लामिक राष्ट्र का भी सर्वाेपरि कर्तव्य होना चाहिए।